श्रेष्ठ साहित्य का संकलन करना भी साहित्य सृजन से कम नहीं - पं. विश्व मोहन भट्ट

श्रेष्ठ साहित्य का संकलन करना भी साहित्य सृजन से कम नहीं - पं. विश्व मोहन भट्ट

Ananya soch

अनन्य सोच।  ग्रेमी अवार्ड विजेता पद्मभूषण पंडित विश्व मोहन भट्ट का कहना है की श्रेष्ठ साहित्य का संकलन करना भी साहित्य सृजन से कम नहीं होता है. भट्ट ने ये बात शहर के प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी रवि कामरा के साहित्य संकलन "ढाई आखर प्रेम का " के पचासवें अंक के लोकार्पण पर कही. भट्ट ने इस अवसर पर संकलन की चुनिंदा रचनाओं का अपनी उपज से मौके पर ही संगीत रचना करके उन्हें अपनी आवाज़ में सुनाया भी. रवि कामरा का साहित्य प्रेम जितना गहरा है, उतना ही अनोखा भी. बीते चालीस वर्षों से अधिक समय से वे देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित शायरी, कविताएँ, सूक्तियाँ और विचारों को ना केवल सहेजते आ रहे हैं बल्कि 2021 से हर महीने इस संकलन को पुस्तक की तरह पीडीएफ फॉर्मेट में जारी कर सैकड़ों साहित्य प्रेमियों तक पहुंचा भी रहे हैं. उनका यह कार्य केवल एक शौक नहीं, बल्कि एक आत्मीय साधना बन चुका है. कामरा का यह संग्रह हजारों साहित्यिक रचनाओं से समृद्ध है, जिसमें बशीर बद्र, जावेद अख्तर, गुलज़ार साब ,कैफ़ भोपाली, सुदर्शन फाकिर, शीन काफ निज़ाम, वसीम बरेलवी जैसे मशहूर शायरों की बेमिसाल पंक्तियाँ हैं, वहीं अनाम रचनाकारों और समकालीन लेखकों की रचनाएँ भी उसी संवेदना के साथ शामिल की गई हैं. 

हौले-हौले परवान चढ़ता गया रवि कामरा का शौक

रवि कामरा कहते हैं, "कविता का शौक शुरू से था, इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर्स करते समय भी पोएट्री में सबसे अधिक रूचि थी. उन्होंने कहा की मानवीय रिश्तों के बारे में या मन के स्पंदन से कुछ पढ़ लेता तो बस वो रूह को छू जाता. 

दोस्त कविता पढता-- कामरा सुनते 

एक दोस्त के संग बिताया गया वह साहित्यिक समय, जहाँ दोस्त कविता कहता था और कामरा सुनते थे, धीरे-धीरे एक संग्राहक की भूमिका में बदल गया। जहाँ लोग डायरी में दिल की बातें लिखते हैं, वहाँ कामरा ने अखबारों और पत्रिकाओं की कतरनों से अपनी लाल बही को सजाना शुरू किया. यह सफर 1982-83 में शुरू हुआ था, जब 'धर्मयुग' जैसी पत्रिकाएँ शिखर पर थीं, और सोशल मीडिया का नामोनिशान भी न था. 

समय बदला, माध्यम बदले, पर शब्दों से प्रेम वही रहा

समाज में कविता मंचों, भाषणों और सोशल मीडिया के ज़रिये अधिक सुलभ होने लगी. रवि कामरा को यह अनुभव हुआ कि वे जैसे किसी शब्द-समंदर के किनारे चल रहे हैं जहाँ हर मोती सहेजने लायक है. 

जंगल में मोर नाचा किसने देखा 

जो भी मुक्तक, शेयर या विचार उनकी रूह को छूता, वे उसे सहेज लेते। इस तरह सैकड़ों-हज़ारों रचनाएँ इकट्ठा होती गईं। फिर एक दिन लगा— “जंगल में मोर नाचा किसने देखा” बात तो तब बने जब ये शब्द मित्रों के मन तक पहुँचें। बस इसी विचार से जन्म हुआ एक विशेष श्रृंखला का—"ढाई आखर प्रेम", जो हर महीने एक PDF संकलन के रूप में वितरित किया जाने लगा. इसकी शुरुआत मई 2021 में कोविड लॉकडाउन के दौरान हुई। अब यह यात्रा पचासवें अंक तक आ पहुँची है, जिसका विश्व मोहन भट्ट ने लोकार्पण किया.