international dog day: लीज़ा और लैला – मेरी जिंदगी का अनमोल हिस्सा"
सुधीर माथुर। कल मनाया जाएगा international dog day

Ananya soch: international dog day
अनन्य सोच। इंटरनेशनल डॉग डे सिर्फ़ एक दिन नहीं, बल्कि इंसान और उसके चार पैर वाले साथी के रिश्ते का जश्न है. मेरे लिए यह दिन बेहद खास है, क्योंकि यह मुझे मेरी जिंदगी की दो अनमोल धरोहरों – लीज़ा और लैला – की याद दिलाता है. ये दोनों सिर्फ़ मेरे पालतू डॉग्स नहीं, बल्कि मेरे परिवार का सबसे अहम हिस्सा हैं. पिछले ग्यारह सालों से वे मेरे साथ हैं और मेरे जीवन को प्यार, अपनापन और ख़ुशियों से भरती रही हैं. लीज़ा और लैला के बिना मेरा दिन अधूरा लगता है. जब मैं घर पर होता हूँ, तो वे हर पल मेरे आस-पास रहती हैं. चाहे मैं काम कर रहा हूँ या आराम, उनकी मौजूदगी हमेशा मुझे सुकून देती है. रात को भी वे मेरे कमरे में सोती हैं और जब मैं बाहर से लौटता हूँ, तो उनका अपने अंदाज़ में स्वागत करना मेरे दिन की सबसे सुंदर घड़ी होती है. उनकी मासूम आंखों और हाव-भाव में एक ऐसी भाषा छिपी होती है, जिसे शब्दों की ज़रूरत नहीं होती. यह भाषा सीधी दिल से दिल तक पहुँचती है.
जानवरों की ख़ामोशी में भी एक गहरी भावनात्मक शक्ति होती है. अक्सर मुझे लगता है कि वे बहुत कुछ कहना चाहती हैं, बहुत कुछ समझती हैं, लेकिन इंसानों की तरह बोल नहीं पातीं. फिर भी उनकी हर नज़र, हर हरकत, उनके प्यार और अपनापन को व्यक्त कर देती है. यही उनकी सबसे बड़ी खूबी है कि वे बिना शब्दों के भी हमें समझा देती हैं कि सच्चा रिश्ता कैसा होता है.
हर त्योहार, हर खुशी, यहाँ तक कि हर मुश्किल घड़ी में भी लीज़ा और लैला ने मेरा साथ निभाया है. उनकी मौजूदगी ने मुझे यह सिखाया कि इंसान और जानवर का रिश्ता सिर्फ़ मालिक और पालतू का नहीं होता, बल्कि आत्मीयता और निस्वार्थ प्रेम का होता है. यह ऐसा जुड़ाव है, जिसमें स्वार्थ या शर्तें नहीं, सिर्फ़ अपनापन और भरोसा होता है.
मेरे जीवन में लीज़ा और लैला इस सच्चाई का सबसे सुंदर उदाहरण हैं. वे मुझे यह एहसास कराती हैं कि प्यार और वफ़ादारी की सबसे शुद्ध मिसालें कभी-कभी इंसान नहीं, बल्कि जानवर बनते हैं. सच कहूँ तो, उनके बिना मेरी जिंदगी अधूरी है और उनके साथ ही यह जीवन पूर्ण और ख़ुशहाल लगता है.
-ये लेखक के विचार है.