The Sabarmati Report movie: अनन्य सोच एक्सक्लूसिव... विवादास्पद विषयों पर फ़िल्में हर बार कामयाबी की गारंटी नहीं होती 

नवल शर्मा। गोधरा कांड की कमजोर प्रस्तुति है साबरमती रिपोर्ट्स  फिल्म विक्रांत मैसी की शोहरत को भुनाने में नाकाम!  फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ पूरी तरह से फिल्म ‘12वीं फेल’ से लाइमलाइट में आए विक्रांत मैसी की शोहरत को भुनाने की कोशिश करती है, लेकिन चूंकि विक्रांत मैसी निर्देशक के कलाकार है, लिहाजा जो काम विधु विनोद चोपड़ा उनसे निकलवा ले गए, वह धीरज सरना के बस में दिखा नहीं। 2002 में शुरू होने वाली ये फिल्म डेढ दशक का सफर तय करती है। इस दौरान विक्रांत मैसी के बालों का रंग बदलने के अलावा उनकी देह भाषा या बोलने के लहजे में खास फर्क दिखता नहीं है। ऋद्धि डोगरा दबंग अंग्रेजी पत्रकार के रूप में हैं और राशि खन्ना एक ऐसी पत्रकार के रूप में जो सच की जीत के लिए लगी हुई है। फिल्म पहले सीन से ही बार बार दोहराती रहती है कि ‘सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित कभी नहीं’। दोनों का अभिनय अपनी अपनी जगह ठीक हैं।  र्देशक धीरज सरना टेलीविजन जगत के निर्देशक रहे हैं और कुछ दृश्यों को छोड़ दिया जाए, तो वे कहानी को एक धागे में पिरोने में सफल नहीं रहे। इंटरवल तक कहानी मुद्दे पर पहुंच ही नहीं पाती। जिस ढंग से फिल्म की शुरुआत होती है, दर्शक को लगता है कि कहानी बढ़ने के साथ-साथ कुछ सनसनीखेज खुलासे होंगे और दर्शक सच को जान पाएंगे, लेकिन फिल्म में ऐसा कुछ भी नया नहीं मिलता, जो लोगों को पहले से पता न हो।

The Sabarmati Report movie: अनन्य सोच एक्सक्लूसिव... विवादास्पद विषयों पर फ़िल्में हर बार कामयाबी की गारंटी नहीं होती 

Ananya soch: 

अनन्य सोच। बॉलीवुड में निर्माता हमेशा सफलता का फ़ार्मूला तलाशते रहते हैं। कोई एक फ़िल्म हिट हुई और वे उसकी तरह की दूसरी फ़िल्मों में लग जाते फिर चाहे कहानी अच्छी हो या न हो. कई बार तो किसी विषय पर पूर्व में बन चुकी फ़िल्म के बावजूद नये मसालों और अपनी ओर से नये एंगल से उसे फिर से बना डालते हैं. इधर, कंट्रोवर्शियल कथाओं , घटनाओं पर फ़िल्में बनाकर मोटी कमाई का लालच एक बार फिर सिर चढ़कर बोल रहा है. विवेक अग्निहोत्री की कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर बनी “द कश्मीर फ़ाइल्स” की अपार कामयाबी के बाद “द केरल स्टोरी” बन चुकी है. सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित और विपुल शाह द्वारा निर्मित हिंदी भाषा की इस फ़िल्म का कथानक केरल की तीन महिलाओं की कहानी है जो धर्मान्तरित होकर मुसलमान बन जाती हैं और चरमपंथी इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया में शामिल हो जाती हैं. यह फिल्म "लव जिहाद" पर आधारित थी और दावा किया जाता है कि केरल की हजारों महिलाओं को इस्लाम में परिवर्तित किया गया है और आईएसआईएस में भर्ती किया गया है. यह फ़िल्म 4 मई 2023 को नाटकीय रूप से रिलीज़ हुई, और एक व्यावसायिक हिट बन गई, जो 2023 की दूसरी सबसे अधिक कमाई करने वाली हिंदी है. हालांकि, आलोचकों ने इस्लामोफोबिक प्रचार के रूप में काम की विशेषता बताते हुए अत्यधिक नकारात्मक समीक्षा की. फिल्म को मुख्य रूप से केरल और तमिलनाडु में लंबी मुकदमेबाजी और विरोध का सामना करना पड़ा. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी फिल्म निर्माताओं पर राज्य को बदनाम करने और संघ परिवार के एजेंडे को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। ख़ैर!

अब खबर है कि विवेक अग्निहोत्री दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों पर “दिल्ली फ़ाइल्स” बना रहे हैं. दो भागों में बनने वाली इस फ़िल्म का पार्ट वन “बंगाल चैप्टर” के नाम से रिलीज़ होगा जिसमें पश्चिम बंगाल की हिंसा को दिखाया जाएगा. विवेक अग्निहोत्री ने हाल ही अपने पोस्ट में लिखा, 'अपने कैलेंडर पर निशान लगा लें- 15 अगस्त, 2025। कई सालों के गहन शोध के बाद 'द दिल्ली फाइल्स' की कहानी इतनी शक्तिशाली है कि इसे एक भाग में समेटा नहीं जा सकता. हम आपके लिए 'द बंगाल चैप्टर' लाने के लिए उत्साहित हैं- दो भागों में से पहला, जो हमारे इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अनावरण करता है. कृपया हमें आशीर्वाद दें और अपने कैलेंडर पर निशान लगा लें- 15 अगस्त, 2025.

तो यहाँ हम बात कर रहे हैं विवादग्रस्त विषयों पर बॉलीवुड में बनने वाली फ़िल्मों की जिसकी ताज़ा कड़ी है इसी शुक्रवार को रिलीज़ हुई “साबरमती रिपोर्ट्स” जिसका निर्माण किया है बालाजी टेलिफ़िल्म्स की शोभा कपूर और एकता कपूर ने. धीरज सरना द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म की कहानी को चार- चार लेखकों अर्जुन भांडेगाँवकर, अविनाश सिंह तोमर, विपिन अग्निहोत्री और ख़ुद धीरज सरना ने मिलकर लिखा है. लेकिन हिन्दी के लेखक होने के बावजूद उनकी हिन्दी कहानी में कई कमज़ोरियाँ और ग़लतियाँ है. पत्रकारिता का मजबूत पक्ष दिखाने का दावा करने के चक्कर में फ़िल्म जगह जगह लड़खड़ाती है. फ़िल्म की प्रोडक्शन डिजाइन में बहुत लोचे हैं. गोधरा स्टेशन पर मराठी में टिकट घर लिखा होना अटपटा लगता है। जली हुई ट्रेन के डिब्बों के भीतर के दृश्य भी स्वाभाविक नहीं लगते. फिल्म परदे पर जितनी भी लिखी हुई हिंदी आती है, कभी भी पूरा एक वाक्य सही नहीं लिखा है. और, वो भी उस फिल्म में जो बार बार हिंदी पत्रकारिता की प्रतिष्ठा बढ़ाने का दम भरती नजर आती है. फ़िल्म में विक्रांत मैसी, राशि खन्ना , ऋद्धि डोगरा , नाजनीन पाटनी और बरखा सिंह आदि ने प्रमुख किरदार निभाये हैं. यह फिल्म गोधरा कांड पर है। इसी घटना पर अभी जुलाई में एक फिल्म रिलीज हुई ‘एक्सीडेंट या कॉन्सपिरेसी गोधरा’.रणवीर शौरी और मनोज जोशी ही फिल्म के दो सबसे नामचीन सितारे थे. फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ देखते समय न सिर्फ इस फिल्म की खूब याद आती है बल्कि ये भी कि एक ही विषय पर एक ही समय में दो फिल्में बनाना महज संयोग तो नहीं हो सकता.ख़ैर आजकल फ़िल्मों और राजनीति का घालमेल सबको पता है 

तो अब आते हैं फ़िल्म की कहानी पर. 27 फरवरी 2002 की सुबह गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन के कुछ ही दूरी पर साबरमती एक्सप्रेस की दो बोगियों को आग के हवाले कर दिया गया था क्योंकि उसमें अयोध्या से आ रहे कारसेवक थे, जिसमें 59 लोगों की जिन्दा जलने से मौत हो गयी थी. यह फिल्म उसी घटना पर है,लेकिन इस कहानी को मीडिया की नजर से कहा गया है. इस फिल्म के स्क्रीनप्ले की बात करें तो एक बड़े से न्यूज़ चैनल  में फिल्म बीट पर काम कर रहे  समर (विक्रांत मैसी ) को गोधरा के पास ट्रैन में लगी आग में चैनल की स्टार जर्नलिस्ट मनिका राजपुरोहित  (रिद्धि डोगरा ) के साथ बतौर कैमरामैन भेज दिया जाता है. जहां पर वह खुद से कुछ पीड़ितों के बयान भी  रिकॉर्ड कर लाता है, लेकिन सच की कीमत पहले ही उसके चैनल की स्टार जर्नालिस्ट ने लगा ली है. ऐसे में समर को भारी कीमत अदा करनी पड़ती है.उसका सबकुछ उससे छीन जाता है और  कहानी पांच साल आगे बढ़ जाती है. नाना कमीशन की वजह से एक बार फिर गोधरा का मुद्दा चर्चा में आ जाता है. मनिका अपना नाम बचाने के लिए एक नयी कहानी गढ़ने का फैसला करती है, जिसके लिए वह ट्रेनी अमृता (राशि खन्ना )को गोधरा भेजती है , लेकिन अमृता के हाथ समर के द्वारा ली गयी वह फुटेज लग जाती है.अमृता क्या सच का पता लगाएगी। समर को किस तरह से वह फिर इसमें  शामिल करती है.क्या समर मनिका राजपुरोहित के साथ साथ गोधरा के सच को सामने ला पायेगा। यही आगे की कहानी है.

फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ बताती है कि इस हिंदी पत्रकार की नौकरी जाने पर वह सुबह शाम शराब के नशे में धुत रहता है। घर में काम करने आने वाली सहायिका के पर्स से पैसे चुराता है। घर चलाने के लिए डबिंग का काम करता है और पैसों के लिए ही इस नई पत्रकार के साथ गोधरा जाने को तैयार हो जाता है। ध्यान रहे कि ये हिंदी पत्रकार है। फिल्म बार बार ये दोहराती चलती है कि हिंदी के पत्रकारों की समाज में कोई इज्जत नहीं है। उनकी बात कोई सुनता नहीं है। दरअसल ये सारा सेटअप उस क्लाइमेक्स के लिए होता है जब अंग्रेजी चैनल की रिपोर्टिंग को एक हिंदी चैनल में लौटा यही पत्रकार गलत साबित करता है। नानावटी आयोग की रिपोर्ट, गुजरात हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उद्धरण देती इस फिल्म में भी फिल्म ‘एक्सीडेंट या कॉन्सपिरेसी गोधरा’ की तरह दर्शकों को यही याद दिलाने की कोशिश है कि अयोध्या से लौट रहे 59 रामभक्तों को गोधरा में जिंदा जला दिया गया था। उनके नाम भी फिल्म बताने की कोशिश करती है लेकिन 10-12 नाम परदे पर आने के बाद ये सिलसिला भी टूट जाता है.