साहित्य में संवेदना का होना जरूरी है

Ananya soch
अनन्य सोच। आज जयपुर आर एस क्लब में वरिष्ठ लेखक राजेंद्र कुमार शर्मा के ऐतिहासिक उपन्यास “हाड़ा एक विहंगम गाथा” का विमोचन किया गया. इस अवसर पर लेखक राजेंद्र कुमार शर्मा के पुत्र और तकनीकी शिक्षा निदेशक राजेश कुमार शर्मा ने कहा कि लेखक ने इस किताब को लिखने में चार दशक का समय लगाया है. हाड़ा राजवंश की यह गाथा उनके छात्र जीवन से ही उनके मस्तिष्क में थी जिसे आपने गहन अध्ययन और शोध के बाद अब चौरासी वर्ष की आयु में लिखा है. लेखक की हाड़ा वंश के साथ निजी संबंध हैं. उन्होंने कहा कि वे आज भी प्रतिदिन नियमित रूप से लिखते हैं. उन्हें हाड़ाओं की यह गाथा मुँह जुबानी याद है.
वरिष्ठ साहित्यकार और कवि डॉ नरेंद्र शर्मा “कुसुम” ने इस अवसर पर कहा कि “मैंने कृति और कृतिकार दोनों को पढ़ा है. इसके लेखक राजेंद्र कुमार शर्मा बेहद सुलझे हुए लेखक हैं। इनकी हर किताब अनूठी है। यह कृति “हाड़ा एक विहंगम गाथा” क्लासिक पुस्तक है जो वृंदावन लाल वर्मा और हजारी प्राद द्विवेदी की पंक्ति में लेखक को खड़ा करती है. साहित्य में संवेदना का होना बहुत ज़रूरी है। लेखक और कृति दोनों को संवेदनशील होना चाहिए. भाषा का लालित्य अपनी जगह है और शब्दों का सौंदर्य का अलग पक्ष है. उन्होंने कहा कि यह इतिहास की कृति है और इसमें इतिहास सजीव हो उठा है.”
भाषाविद श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक की भाषा बेहद पठनीय है. पुस्तक आपको बांधे रखती है. लेखक शर्मा के पास घटनाओं और चरित्रों को रोचकता से प्रस्तुत करने की क्षमता है. उनकी शैली भी अनुपम है और दृश्यों को चित्रित करने की कला में भी दक्ष हैं. इसमें सभी पात्र चाहे वो राजा हों या चाकर या फिर घोड़े जैसे जानवर सबका वर्णन जीवंतता से किया गया है. यह किताब वर्षों तक याद रखी जाएगी.
साहित्यकार डॉ सुषमा सिंघवी ने कहा कि हाड़ा राजवंश की यह गाथा बहुत अनोखी बन गई है.
राजेंद्र बोड़ा ने कहा कि इस उम्र में व्यक्ति साहित्य का सृजन कर रहा है और उनका सृजन ऐसा जो आपसे छूटता नहीं है. इस लेखक की पाठक को बांधे रखने की यही क्षमता उपन्यास की सबसे बड़ी ख़ासियत है. हाड़ाओं का इतिहास वीरता और बलिदान से भरा है. लेखक ने इसे पठनीय बना दिया है.
शिवचंद्र माथुर ने कहा कि लेखक के साथ मेरा तीस साल पुराना रिश्ता है।/.मैंने इनकी सभी रचनाओं को पढ़ा है। इनकी पहली पुस्तक की रचना का मैं साक्षी रहा हूँ. इतिहास लेखन आसान नहीं होता लेकिन लेखक ने अपनी सरस अभिव्यक्ति से इसे पठनीय बना दिया है. यह किताब इतिहास, भूगोल और समाज विज्ञान का मिला-जुला उद्धरण है.
इस अवसर पर पद्मश्री उस्ताद अहमद हुसैन ने कहा कि लेखक और उनका परिवार तबियत से फ़क़ीराना और तहज़ीब से सूफ़ियाना है. इतिहास से समृद्ध ऐसी किताबें लिखने के लिए कई रातें जागकर काटनी पड़ती हैं और सैंकड़ों किताबें पढ़नी पड़ती हैं तब कहीं जाकर कोई विहंगम गाथा बनती है. उन्होंने कहा कि किताबें लिखने के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती यदि लेखक कुछ करने की ठान ले और यही किया है लेखक राजेंद्र कुमार शर्मा ने. उस्ताद मोहम्मद हुसैन ने कहा कि लेखक की कड़ी मेहनत से ही यह संभव हुआ है.
चिकित्सा विशेषज्ञ एस एस अग्रवाल ने कहा कि लेखक जीवट के धनी है। बेहद जिंदादिल इंसान है। कई गंभीर शारीरिक बीमारियों के बावजूद लेखक का आत्म विश्वास और समर्पण प्रशंसनीय है. उनकी जिजीविषा उन्हें एक महान लेखक बनाती है.
हाड़ा वंश के धनंजय सिंह ने कहा कि इतिहास की किताबें सामान्यतया बहुत जटिल होती हैं और उन्हें पढ़ने में अरुचि होती है लेकिन यह किताब बहुत अच्छी है जिसे सहज सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है.
इस अवसर पर लेखक राजेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि मेरे पास कहने को ज़्यादा कुछ नहीं है. इंटर मीडियट में पढ़ते वक्त एक रात सभी छात्र अपनी मांगों के लिए नारेबाजी कर रहे थे. तभी तत्कालीन राजा बहादुर सिंह वहाँ से कहीं जा रहे थे। छात्रों की नारेबाज़ी को सुनकर वे वहाँ रुके और मांगों को पूरा करने का आश्वासन दिया. उसी रात मैं हाड़ा राजाओं के आकर्षण का दीवाना हो गया और तब से ही मैं इनके इतिहास पर लिखना चाहता था जो अब जाकर पूर्ण हुआ है. उन्होंने कहा कि इतिहासकारों ने बूंदी और हाड़ा शासकों पर बहुत कम लिखा है और यही वजह इस विषय पर मेरे लिखने का कारण बनी.