प्रेमचंद का साहित्य श्रम के पसीने की ख़ुशबू से महकता है 

प्रेमचंद का साहित्य श्रम के पसीने की ख़ुशबू से महकता है 

Ananya soch

अनन्य सोच। प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा आज कानोडिया महिला पी जी महिला महाविद्यालय के सभागार में प्रेमचंद जयंती का आयोजन किया गया. दो सत्रों में आयोजित कार्यक्रम के पहले सेशन में प्रेमचंद के कथेतर साहित्य पर चर्चा हुई. वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हेतु भारद्वाज ने प्रेमचंद के भाषणों , लेखों , संपादकीयों के साथ ही उनके महत्वपूर्ण निबंधों व उनके लिखे पत्रों पर बात की. उन्होंने हंस व जागरण के संपादन पर भी बात की। उनका कहना था कि प्रेमचंद का कथेतर साहित्य भी उनके कथा साहित्य की तरह ही क्रांतिकारी व बेहद महत्वपूर्ण है। उनका यह लेखन समाज को नई दृष्टि देने वाला है. उन्होंने प्रेमचंद के साहित्य के महत्व को बताते हुए कहा कि वहाँ आपको ग़रीबी, ग़ुलामी, महिलाओं की दुर्दशा और किसानों की चिंता दिखाई देती है. आज की सच्ची मानवता यही है कि हम अपने जीवन में प्रेमचंद की कम से कम एक रचना तो अवश्य पढ़ें. पढ़े जाने से ही हमारे जीवन में बदलाव आएगा.प्रेमचंद का साहित्य कृषक, मज़दूर, वंचित वर्ग के श्रम के पसीने की ख़ुशबू से सराबोर है. 

इस अवसर पर शिक्षाविद व लेखक डॉ सत्यनारायण व्यास ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना अपने समय में था. आज भी गोदान के होरी व धनिया जैसे किसान दंपत्तियों और कफ़न के घिसू व माधव सरीखे श्रमिकों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आ पाया है. आज किसान अपने हक़ों के लिए आंदोलनरत हैं और पुलिस के दमन का शिकार है. ग़रीबी और क़र्ज़ के बोझ से आत्महत्या कर रहा है. उन्होंने कहा कि सच्ची प्रगतिशीलता यही होगी कि आज का लेखक वंचित ,शोषित और दलित की आवाज़ को अपने साहित्य में उठाए. शृंगार और प्रेम की जगह श्रम और क्रांति को प्रमुखता दें तो ही प्रेमचंद की विचारधारा आगे बढ़ सकेगी. वरिष्ठ कथाकार चरण सिंह पथिक ने प्रेमचंद के साहित्य में आम आदमी के जीवन के चित्रण की चर्चा की. उन्होंने कहा कि प्रेमचंद हमेशा प्रासंगिक रहेंगे. विश्व के किसी भी साहित्य इतिहास में जब कथा साहित्य की बात होगी तो वो बिना प्रेमचंद के अधूरी ही कही जायेगी. 

कानोडिया महाविद्यालय की निदेशक डॉ रश्मि चतुर्वेदी ने कहा कि प्रेमचंद ने सरल व सहज भाषा में साहित्य को जन जन तक पहुँचाया. सौंदर्यबोध के साथ नैतिकता को साहित्य में लाने का कार्य प्रेमचंद ने किया. उन्होंने छात्राओं से प्रेमचंद के प्रगतिशील आंदोलन को आगे बढ़ाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी इस परंपरा को जीवित रख सकती है। इस सत्र का संयोजन डॉ अजय अनुरागी ने किया. 

इस अवसर पर महाविद्यालय के हिन्दी, अंग्रेज़ी व विज्ञान संकाय की बीस छात्राओं ने प्रेमचंद की कहानियों के अंश प्रस्तुत किए. 

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में रूपा सिंह, श्रद्धा आढ़ा, राजेंद्र सजल और शोभा गोयल ने कहानी पाठ किया. इन कहानियों पर विशाल विक्रम , रजनी मोरवाल, उर्मिला साध व चरण सिंह पथिक ने टिप्पणियाँ की. वरिष्ठ आलोचक राजाराम भादू ने अपने समापन वक्तव्य में इन कहानियों पर विस्तृत समाहार प्रस्तुत किया. सत्र का संचालन डॉ शीताभ शर्मा ने किया.