Comedy drama khela: गुमशुदा नाक के मंचन के साथ हास्य खेला नाट्य समारोह संपन्न

Comedy drama khela: गुमशुदा नाक के मंचन के साथ हास्य खेला नाट्य समारोह संपन्न

Ananya soch: Comedy drama khela

अनन्य सोच, जयपुर। Comedy drama khela: कला, साहित्य, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, जवाहर कला केन्द्र और क्यूरियो ए ग्रूप ऑफ परफोर्मिंग आर्ट सोसायटी, जयपुर की सहभागिता में कला संसार के तहत आयोजित खेला हास्य नाट्य समारोह एवं संवाद प्रवाह का शनिवार को समापन हुआ. अंतिम दिन भारतेंदु नाट्य अकादमी के प्रशिक्षक मनोज कुमार मिश्रा के निर्देशन में मंचित 'गुमशुदा नाक' ने जहां दर्शकों को खूब गुदगुदाया. वहीं संवाद प्रवाह में साहित्यकार अंशु हर्ष ने नाटक के अभिनेता रमन कुमार के साथ नाटक पर साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध चर्चा की, युवा रंगकर्मी योगेंद्र सिंह परमार ने सूत्रधार की भूमिका निभाई.

गुमशुदा नाक निकोलाई गोगोल ने लिखा है. ईश्वर ने शरीर बनाते समय नाक का स्थान और भूमिका तय की, लेकिन सांस लेने के लिए बनी नाक अब इज्जत की बात बन गई. नाटक शुरू होता है पिल्लू नाई के घर से. पिल्लू सुबह नाश्ते के लिए ब्रेड काटता है तो प्लेट में कटी नाक आ गिरती है. पत्नी के ताने देने पर पिल्लू इस नाक को छिपाने के लिए शहरभर में भटकता है. जैसे ही वह नदी में नाक बहाने लगता है पुलिस उसे पकड़ लेती है। इधर उच्च पदाधिकारी जिसकी नाक गुमी है. वह नींद से जागने पर नाक को तय स्थान पर नहीं पाकर बौखला उठता है. मुंह छिपाए इधर—उधर वह नाक की तलाश में फिरता रहता है. क्योंकि यह उच्च पदस्थ व्यक्ति की नाक है तो उसके भी नखरे जुदा है. यह नाक अब खुद एक अधिकारी का रूप धारण कर चुकी है. जब वह पदाधिकारी अपनी नाक से मिलता है तो आग्रह करने पर भी नाक अपने स्थान पर जाने से मना कर देती है. अधिकारी को सांस की नहीं इज्जत फिक्र है वह थाने जाता है गुमशुदा नाक की रिपोर्ट लिखवाने, वहां उसकी खिल्ली उड़ती है.

वह गुमशुदा नाक का इश्तिहार निकलवाने अखबार के दफ्तर जाता है. वहां भी कोई उसकी बात पर विश्वास नहीं करता है. कुछ दिनों बाद नाक स्वत: दोनों गालों के बीच तय स्थान पर आ जाती है. पदाधिकारी बहुत खुश होता है. अंत में बाल काट रहा पिल्लू पदाधिकारी को नींद से जगाता है. नाक के गुम होने का वाक्या सपने में होना जानकर पदाधिकारी राहत की सांस लेता है. नाटक में नाक के किस्से को दिखाने के लिए निर्देशक ने बेहतरीन प्रयोग किया. सभी पात्रों ने मुखौटे लगाए होते हैं, हर शख्स का मुखौटा अलग, अलग होती है उसकी नाक. अंतिम दिन की यह नाट्य प्रस्तुति प्रसिद्ध तमाशा गायक स्व. गुरु गोपी जी भट्ट को समर्पित रही.

-नाटक गुमशुदा नाक पर संवाद प्रवाह

'जिंदगी की तरह नाटक में भी कोई रीटैक नहीं होता है, कहानी को लिखने में जितनी मेहतनत लगती है. उतने ही परिश्रम से रंगकर्मी उसे मंच पर साकार करते हैं, दर्शकों को तन्मयता से नाटक देखने चाहिए जिससे इनमें छिपी जीवन ऊर्जा से वे रूबरू हो सके. साहित्यकार अंशु हर्ष ने शनिवार को गुमशुदा नाक नाटक के मंचन के बाद संवाद प्रवाह के दौरान यह बात कही. चर्चा में नाटक में अभिनय करने वाले रमन कुमार भी मौजूद रहे. साथ ही सूत्रधार की भूमिका युवा रंगकर्मी योगेन्द्र सिंह परमार ने निभाई. रमन कुमार ने बताया कि निकोलाई गोगोल के लिखे नाटक का भारतीय परिप्रेक्ष्य में नाट्य रूपांतरण कर इसका मंचन किया गया. उन्होंने कहा कि ग्रीक थिएटर को सबसे प्राचीन थिएटर माना जाता है वास्तव में उससे पहले से भारत के मंदिरों में नाट्य शास्त्र के अनुरूप ​नाटक होते रहे. उन्होंने यह भी कहा कि दर्शक नाटक की समीक्षा कर कोई सुझाव दे तो उस पर भी अमल करने का प्रयास किया जाना चाहिए है, कोई कमी बताएगा उसे सुधारकर ही हम बेहतरी की ओर बढ़ सकते हैं. अंशु हर्ष ने कहा कि कला की हर विधा ईश्वर का वरदान है, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भी कलाएं भले हि भिन्न हो अभिव्यक्ति एक सी ही रहती है. व्यंग्य से भरे नाटक 'गुमशुदा नाक' को देखकर उन्होंने कहा कि इस तरह के नाटक आसानी से बड़ी कठिन बात समझाने में सक्षम होते हैं.