कलाकारों ने सजाए साठ से अस्सी के दशक की दिलकश रचनाओं के स्वर
संगीत गुरू राजीव भट्ट के निर्देशन में जीवंत हुआ स्व. महेन्द्र भट्ट का रचना संसार
अनन्य सोच, जयपुर। शहर के अनेक कलाकारों ने शनिवार को आयोजित कार्यक्रम ‘सुरीली सांझ’ में संगीत गुरू राजीव भट्ट के निर्देशन में स्व. महेन्द्र भट्ट की साठ से अस्सी के दशक में रची गई संगीत रचनाएं पेश कीं।
‘सुरीली सांझ’ नामक ये कार्यक्रम दर्शक संस्था की ओर से मालवीय नगर स्थित दर्शक कॉलेज ऑफ म्यूज़िक एंड आर्ट्स के मुक्ताकाशी मंच पर आयोजित किया गया।
कार्यक्रम संयोजक प्रोमिला राजीव ने बताया कि इस मौके पर हेमन्त भट्ट, शिखा भट्ट, देवव्रत भट्ट, मीरा भट्ट, पीयूष कुमार, शिखा भट्ट और रेखा भट्ट ने महेन्द्र भट्ट द्वारा साठ से अस्सी के दशक के बीच मिर्ज़ा ग़ालिब, शकील बदायुनी, कौसर, अर्श, प्रकाश सक्सेना और बी.के. पुरी जैसे शायरों और गीतकारों की रची गई संगीत रचनाएं पेश कीं।
इसके अलावा इस मौके पर राग यमन की सरगम पर आधारित संगीतमय रचना की भीे इन कलाकारों ने विशेष प्रस्तुति देकर वहां मौजूद संगीत प्रेमियों का दिल जीत लिया।
इन रचनाओं की प्रस्तुति रही खास
देवव्रत भट्ट की आवाज़ में कौसर की रचना ‘दिल की धड़कन सुनाई देती है, सारा आलम अजीब लगता है’, पं. हेमन्त भट्ट की आवाज़ में प्रकाश सक्सैना की रचना ‘मिला न मुझको जहां में किसी का प्यार’, शिखा भट्ट की आवाज़ में "बेवफा याद ना आ", रेखा भट्ट की आवाज़ में कृष्णा मोहन की रचना ‘क्या ये भी ज़िंदगी है राहत कभी ना हो’, पियूष कुमार की आवाज़ में मिर्ज़ा ग़ालिब की रचना ‘हम इश्क के मारों को इतना ही फसाना है,’ नीलम भट्ट श्रीवास्तव की आवाज़ में बी.के. पुरी की रचना ‘नशीली रात है, दिलकश समा है’ तथा राजीव भट्ट की आवाज़ में कौसर की नज़्म ‘आख़री रात है कल सुबह ना पाओगे हमें’।
-इन कलाकारों ने की संगत
रचनाओं के दौरान तबले पर सावन डांगी, गिटार पर पवन बालोदिया, वॉयलिन पर प्रशान्त अजमेरा तथा की-बोर्ड पर पीयूष कुमार ने संगत की।