फ़रवरी प्यार का महिना और वैलेंटाइन दिवस (Valentine day) प्यार को साबित करने का दिन

फ़रवरी प्यार का महिना और वैलेंटाइन दिवस (Valentine day) प्यार को साबित करने का दिन

अनन्य सोच, जयपुर। आचार्य आचार्य prerna a jain के अनुसार फ़रवरी प्यार का महिना और वैलेंटाइन दिवस (Valentine day) प्यार को साबित करने का दिन, प्यार के इजहार का दिन, जो कि भारत में पश्चिमी संस्कृति से आया है, और कुछ हमे सामाजिक माध्यम ने सिखाया है कि वैलेंटाइन डे कैसे मनाया जाता है। पर क्या आप को भी लगता है कि जैसा हम देख रहे है सब कुछ वैसा ही है? प्यार.....प्रेम तो किसी से भी हो सकता है। फिर सिर्फ जनता हमारे प्रेमी  प्रेमिका को ही क्यो? हमारे गुरु से, भाई से, बहन से, माता- पिता से और भी कई  रिश्ते हैं, क्या हम उन सब से प्रेम नही करते? क्या हम इनके प्रति समर्पित नही है? सिर्फ इसलिए कि यह सारे रिश्ते हमारे तय है, जन्म से ही हमारे साथ जुड़े हुए है और  जो चिज इश्वर ने हमे दी है हमे उसकी कदर नही होती है? और हमारे प्रेमी/प्रेमीका को हमने चुना है, हमारी मर्जी 'सामिल है इसलिए उसे विशेष अनुभूति (Special feel) करवाना जरूरी है। 

प्रेम का दुसरा नाम समर्पण है, सम्मान है, त्याग है, विश्वास है , अर्पन है, जो हम तन, मन और धन से करते है। रिश्ते चाहे जो भी हो, अगर वहां विश्वास और सम्मान नही है तो प्रेम तो हो ही नही सकता है।
भारतीय संस्कृति में प्रेम की सबसे बड़ा उधारण दिया गया है। राधा-कृष्ण ,राम-सीता, शिव- पार्वती यह शक्तिया क्या उधारण के लिए काफी नहीं है। 
सच्चे प्यार की बात की जाये तो राधा-कृष्ण का नाम सर्वप्रथम आता है,क्योकि प्रेम सिर्फ पाने का नाम नही बलकी सच्चा प्रेम अनमोल होता है। वास्तव मे विवाह एक समझौता है और प्रेम एक निःस्वार्थ, सुद्ध भावना है जो दो व्यक्ती द्वारा साझा की जाती है। राधा किष्ण दुर होकर भी एक दुसरे के लिए समर्पीत थे।राम-सीता का प्रेम मर्यादा में रहकर था, दूर रहकर भी हमेशा रहा। सीता ने हमेशा भगवान  श्री राम के सभी फेशले सहर्ष स्वीकार किये क्यों कि माँ सीता हमेशा श्री राम के हृदय में निवास करती है। शिव-शक्ति की तो बात ही क्या शिव ने तपस्या करके शक्ति (पार्वती) को पाया।
"प्रेम ना कोई आरंभ था ना ही कोई अंत।"यह प्रेम होता है प्रेम वो नहीं जो पाया जाए, प्रेम तो वो है, जो जिया जाए।

प्रेम क्या है? किसी भी रिस्ते की बुनियाद प्रेम ही है। बिना प्रेम के कोई भी संबंध स्थापित होना मुश्किल है। प्रेम की शब्दों में व्याख्या कर पाना सम्भव ही नही है। प्रेम वो अहसास है जो है जो हमे उसकी मधुरता से रु ब रु करवाता है। इंसान सिर्फ इंसान से ही नहीं वरन पशु पक्षी पेड़ पौधे, नदिया झरने ओर प्रकृति की दी हुई उन सैंकड़ो चीज़ों से प्रेम करने का एक जरिया है। जरूरत है तो बस अहसास की विस्वास की, किसी भी रिस्ते के प्रति समर्पण की भावना रखने की, रिस्ते को निभाने की। प्रेम से ही इंसान सम्पूर्ण बनता है।

सिर्फ शारीरिक सम्बन्ध था आकर्षण प्रेम नही होता है। यह तो सिर्फ समय कि माग है जो हमे पूरी करनी होती है प्रेम से बडा कोई मरहम नही और नफरत से बड़ी कोई पीड़ा नही। रिश्ते चाहे जो भी हो जैसे भी हो,कोशिश करें कि उसमे सम्मान कि भावना जुड़ी हौ। और भिर सिर्फ एक  दिन या एक महिना अपने प्यार को जाहिर करने के लिए नही....हर पल सम्मान और विश्वास के साथ हम हमारे प्यार को जाहिर कर सकते है। क्योकि रिस्ते उस सुई कि तरह है जो सायद हर पल हमे चुभते है, और जीवन उस धागे कि तरह होता है जिसके बिना वह सुइ किसी काम की नही है, और प्रेम उसमे वह रंग है जो जीवन को सुन्दर ही नही, अद्भुत भी बना सकता है क्योकि सुई और धागे  अगर एक साथ आजाएं और उसमें प्रेम का रंग भर जाए तो सोचिए जीवन कितना रंगीन, सुनहरा, सुन्दर और आन्नदमय होगा।

तो प्रेम अपने व्यवहार मे लाइए, अपने जीवन को
सुखमय बनाने के लिए अपनाइए - - सामजिक रुझान "के लिए नहीं !! 
ईश्वर के दिए हर रिस्ते कि कदर करें, यह रिस्ते ना होते तो आज हम अकेले ही जीवन जी रहे होते।

Note- ये विचार लेखक के हैं। इसकी पुष्टि अनन्य सोच नही करता हैं।