‘‘गंगाः एक दिव्य स्वरूप‘‘ - पोद्दार परिवार की कुलदेवी मां गंगा पर आधारित पुस्तक का लोकार्पण समारोह सम्पन्न

‘‘गंगाः एक दिव्य स्वरूप‘‘ - पोद्दार परिवार की कुलदेवी मां गंगा पर आधारित पुस्तक का लोकार्पण समारोह सम्पन्न

Ananya soch: "Ganga: A Divine Form" - Launch ceremony of the book based on Poddar family's Kuldevi Maa Ganga concluded

अनन्य सोच। राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में आज एक विशिष्ट और आध्यात्मिक वातावरण में ‘गंगाः एक दिव्य स्वरूप’ नामक पुस्तक का लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ. यह अवसर भावनात्मक और आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक बना, जिसमें कमला -गिरीश पोद्दार ने अपने पितृ पुरुष स्व. श्री मिर्जामल जी पोद्दार, स्व. श्री प्रभासचन्द्र जी पोद्दार एवं स्व. श्रीमती राजेश्वरी देवी जी पोद्दार को इस पुस्तक के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की. इस कार्यक्रम का आयोजन वी के पोद्दार फॉउंडेशन के अंतर्गत किया गया , वी के पोद्दार फाउंडेशन के माध्यम से आर्ट कल्चर और लिटरेचर से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करवाया जाता है और फाउंडेशन मैरिट में आये छात्रों को स्कॉलरशिप भी देता है. 

पोद्दार परिवार की कुलदेवी मां गंगा को समर्पित यह पुस्तक न केवल गंगा के दिव्य स्वरूप, सौंदर्य और महत्व का वर्णन करती है, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक अनुभव भी प्रस्तुत करती है. पुस्तक एक महत्वपूर्ण नैतिक संदेश भी देती है कि नदियाँ केवल जलधाराएं नहीं, बल्कि जीवन की धारा हैं, जिन्हें स्वच्छ, सुरक्षित और सम्मानित रखना हम सभी का सामूहिक उत्तरदायित्व है. इस विशेष अवसर पर उज्जैन से आए लाइफ मैनेजमेंट गुरु, आदरणीय पंडित विजय शंकर मेहता ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम को समृद्ध किया. उन्होंने न केवल पुस्तक का विमोचन किया, बल्कि गंगा के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और जीवनदायिनी पक्ष पर गहन विचार भी प्रस्तुत किए जिसमें उन्होंने मां गंगा से जुड़ी प्रेरक शिक्षाएं और जीवन के गूढ़ अर्थों को सरल शब्दों में समझाया. इस अवसर पर पोद्दार परिवार की ओर गिरीश पोद्दार , अभिषेक पोद्दार रोमा पोद्दार और अनंत पोद्दार ने पंडित मेहता जी का शॉल ओढ़ाकर भव्य स्वागत किया गया. किताब का सम्पादन कमला पोद्दार ने किया है. इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए पुस्तक की रचना प्रक्रिया और भावनात्मक पक्ष को साझा किया और किताब की लेखिका अंशु हर्ष है. 

व्याख्यान के उपरांत, कार्यक्रम में एक संवाद सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें श्रोताओं को 10 मिनट का समय दिया गया। इस दौरान कुछ चुनिंदा प्रश्न लिए गए, जिनके उत्तर पंडित मेहता जी ने सहजता और गहराई से दिए. इस आयोजन में साहित्य, अध्यात्म, संस्कृति और पर्यावरणीय चेतना का एक अद्वितीय संगम देखने को मिला. ‘गंगाः एक दिव्य स्वरूप‘ निश्चित ही पाठकों के लिए एक प्रेरणादायी कृति सिद्ध होगी.