Dhrupad Heritage Festival: गायक पद्मश्री उ.फैयाज के राग चंद्रकौंस की स्वर लहरियों में डूबे श्रोता
Dhrupad Heritage Festival: 29वें अखिल भारतीय ध्रुवपद नाद-निनाद विरासत समारोह का समापन विख्यात कलाकारों की प्रस्तुति ने बांधा समां
Ananya soch: Dhrupad Heritage Festival
अनन्य सोच। Dhrupad Heritage Festival: इंटरनेशनल ध्रुवपद धाम ट्रस्ट, जयपुर की ओर से आयोजित दो दिवसीय 29वें अखिल भारतीय ध्रुवपद नाद-निनाद-विरासत समारोह 'ध्रुवपद धरोहर' के अंतिम दिन गायक पद्मश्री उ. फैयाज वासिफुद्दीन खां डागर ने विभिन्न रागों में पदों का मधुर गान किया वहीं विख्यात बेला वादक डॉ. पं. संतोष कुमार नाहर ने वायलिन पर सुरीली धुनें छेड़ी जिसने श्रोताओं को अपना मुरीद बना लिया. आरआईसी, उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, पटियाला की सहभागिता और कला, संस्कृति, साहित्य एवं पुरातत्व विभाग, राजस्थान सरकार के सहयोग से आयोजित समारोह में सुरीली महफिल सजी. इंटरनेशनल ध्रुवपद धाम ट्रस्ट, जयपुर की ओर से कला जगत में अभूतपूर्व योगदान के लिए ग्रैमी अवॉर्ड विजेता पद्मभूषण पं. विश्वमोहन भट्ट एवं डॉ. पं. संतोष कुमार नाहर को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. वहीं पद्मश्री उ. फैयाज वासिफुद्दीन खां डागर को नादब्रह्म मूर्ति सम्मान से भी नवाजा गया.
ध्रुवपदाचार्य पंडित लक्ष्मण भट्ट तैलंग एवं प्रोफ़ेसर डॉक्टर मधु भट्ट तैलंग के संयोजन में हो रहे इस समारोह में जयपुर के डागर घराने के सुप्रसिद्ध गायक पद्मश्री उ. फैयाज वासिफुद्दीन खां डागर ने ध्रुवपद गायन से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया. उन्होंने राग चंद्रकौंस में आलाप कर सुरों को साधा और चौताल में बंदिश 'निरंजन निरंकार परब्रह्म परमेश्वर' गाकर माहौल को कृष्णमय बना दिया. राग मालकोस के साथ उन्होंने प्रस्तुति को आगे बढ़ाया. सूल ताल में शिव स्तुति पेश कर उन्होंने भगवान शिव की वंदना की. पखावज पर पं. राधे श्याम शर्मा ने संगत कर प्रस्तुति को खास बनाया. कार्यक्रम में पद्मश्री शाकिर अली व बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित रहे.
भागलपुर मिश्रा घराने के विख्यात बेला वादक डॉ. पं. संतोष कुमार नाहर ने वायलिन की धुनों से ऐसी मिठास घोली जो श्रोताओं के दिल को छू गयी. पंच तंत्री वायलिन पर सुमधुर दक्षिण भारतीय राग चारुकेशी में आलाप के साथ डॉ. नाहर ने प्रस्तुति की शुरुआत की. मध्य लय तीन ताल और द्रुत लय तीन ताल में क्रमानुसार राग की बढ़त, स्वर विस्तार, आलंकारिक ताने, ग़मक की प्रस्तुति ने श्रोताओं को अपना मुरीद बना लिया. वहीं द्रुत गत में सपाट तान, झाला में तबले के साथ सवाल-जवाब की जुगलबंदी को श्रोताओं ने काफी सराहा. डॉ. नाहर की प्रस्तुति में तंत्र अंग के साथ बेहतरीन गायकी अंग एवं तैयारीपूर्ण वादन सुनने को मिला. वायलिन पर 'केसरिया बालम' की धुनों से डॉ. नाहर ने सभी को राजस्थान के रंग में रंग दिया. तबले पर दिल्ली के पं. अभिषेक मिश्रा ने वादन के अनुकूल ही सुरीली व तैयारी पूर्ण संगत की। कार्यक्रम का संचालन प्रणय भारद्वाज ने किया.