तुम ठाकुर मेरे के अंतर्गत बही दिव्यता की धारा अंशु हर्ष की कविताओं की संगीतमय प्रस्तुति
Ananya soch:
अनन्य सोच। अंशु हर्ष द्वारा उनकी आने वाले कविता संग्रह तुम ठाकुर मेरे से कविताओं की संगीतमय प्रस्तुति दी गई . कविताओं और गीतों के समन्वय से शब्दों की दिव्यता को परिभाषित किया गया. तन्मय सक्सेना संगीत के छात्र है इस कार्यक्रम में अंशु हर्ष का साथ निभाया. ये सेशन सिग्नेचर टावर स्थित ऑडिटोरियम में हुआ और पिक अ बुक रीडिंग क्लब की गतिविधि के अंतर्गत इसका आयोजन किया गया.
कार्यक्रम का संचालन आशिमा चौधरी और वरुण भंसाली ने किया, पिक अ बुक रीडिंग क्लब पिछले तीन सालों से जयपुर में सक्रिय रूप से रीडिंग हैबिट्स को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है , जिसके सिटी प्रेसिडेंट अक्षय गोयल है और रीजनल हेड अंशु हर्ष है. वर्तमान कार्यकारिणी में चेयरपर्सन पुष्पेंद्र उपाध्याय व वाइस चेयर पूजा अग्रवाल है.
इस कार्यक्रम में अंशु हर्ष ने कविता और गीतों के माध्यम से प्रेम और आध्यात्म को परिभाषित किया. उनकी कविताओं की नीव में प्रेम का भाव है , समर्पण का भाव है तन्मय सक्सेना ने गीतों के माध्यम से कविताओं के भाव का विस्तार किया. कार्यक्रम की भव्यता उसकी दिव्यता थी. उपस्थित सभी लोगों ने इस अनूठे और पहली बार हुए इस तरह के साहित्यिक आयोजन की जमकर सराहना की.
प्रस्तुत कविताएं
जीवन यात्रा में
बहुत दूर चलने के बाद
जब तुमसे मुलाकात हुई
तो अहसास हुआ कि ये जो तार है
इनमें संगीत है ....
सूखी रेत पर बारिश गिरती है तो
हवा भी महक जाती है
सूखे पत्ते भी हवा का साथ पा कर
खनकने लगते है
और तब ऐसा लगता है
जैसे किसी मीरा को श्याम
और कबीर को साहिब
मिल गया हो ........
मैं आना चाहती थी तुमसे मिलने
लेकिन सूरज का ताप बहुत तेज़ था
मैं आना चाहती थी तुमसे मिलने
रास्ते में कोहरा बहुत था
मैं आना चाहती थी तुमसे मिलने
वो बादल बहुत जम के बरसा
मैं आना चाहती थी तुमसे मिलने
अमावस का अंधेरा बहुत था
मैं आना चाहती थी तुमसे मिलने
नदी मैं नाव नहीं थी
मैं आना चाहती थी तुमसे मिलने
शायद मेरी चाहत की कमी थी
वरना तुम एक अलग पगडण्डी बना देते मेरे लिए
तुम त्रिलोकी के मालिक हो
तुम्हारे पास कमी क्या थी ।
अगले जन्म मुझे चाँदी बना देना
जो बन सके तुम्हारी देहरी
जिस पर तुम कदम रखते हो
अगले जन्म मुझे चाँदी बना देना
जिससे बन सके एक दिया
जो हर दिन तुम्हारी आरती उतारे
बना देना वो चाँदी जिससे
बन सके तुम्हारा मुकुट
जो सज सके तुम्हारे मस्तक पर
या बना देना वो छत्र जो
सदैव छाया देता है तुम्हें
अगले जन्म बना देना मुझे चाँदी
जिससे बन सके तुम्हारी गदा
हर प्रहार मंज़ूर होगा मुझे तुम्हारा दिया
बना देना निर्जीव चाँदी मुझे
जो हर रूप में ढल जाए तुम्हारे लिए
बस अगले जन्म मुझे बेटी मत बनाना
जो इस दुनियां के नियम कायदे निभाएं ।