सकारात्मक परिवर्तन को आत्मसात् करते हैं डॉ अग्रवाल
नवल शर्मा
Ananya soch
अनन्य सोच। प्रसिद्ध आलोचक , अनुवादक एवं स्तंभकार डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का अमृत महोत्सव आज राही सहयोग संस्था द्वारा राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिती के सभागार में मनाया गया. राही सहयोग संस्था के अध्यक्ष प्रबोध कुमार गोविल ने सभी अतिथियों का स्वागत किया. इस अवसर पर बड़ी संख्या में लेखक, साहित्यकार व पत्रकार उपस्थित हुए. सुप्रसिद्ध आलोचक -समीक्षक प्रो माधव हाडा की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह में डॉ दुर्गा प्रसाद अग्रवाल के साहित्यिक योगदान पर प्रियंका कुमारी गर्ग द्वारा तैयार मोनोग्राफ़ का विमोचन किया गया व उनके जीवन पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन भी किया गया. इस अवसर पर डॉ अग्रवाल की लिखी दो नई पुस्तकों “आँखों देखा परदेस” और “दिल की गिरह खोल दी” का लोकार्पण भी हुआ.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो माधव हाडा ने कहा कि डॉ अग्रवाल हर छोटे से छोटा काम भी बड़े मनोयोग से करते हैं. उनकी निष्ठा व लगन हमें प्रेरणा देती है। उनका सबसे बड़ा गुण है समावेशिता. वे ध्रुवांतों से परे रहकर सकारात्मक परिवर्तन को आत्मसात् करते हैं. व्यावहारिक जीवन में इतना निष्पक्ष होना बड़ा असंभव होता है लेकिन डॉ अग्रवाल ने अपने सकारात्मक नज़रिये से इस असंभव को संभव बनाया है. वे जीवन के आचरण में भी मध्य में ही रहते हैं. समय मीमांषा उनके लेखन की एक बड़ी विशेषता है. उनके यहाँ समय की हर विद्रूपता पर निष्पक्ष टिप्पणी मिलती है. सम सामयिक विषयों पर निरंतर स्पष्ट लेखन उनकी शक्ति है. हिन्दी में यह उनका सर्वथा मौलिक योगदान है. उन्होंने कहा कि पिछले चार दशक से मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है। यह सीखना मुझे एहसास कराता है कि मेरे होने में वे भी शामिल है.
नंद भारद्वाज का कहना था कि अपनापन और गहरी आत्मीयता डॉ अग्रवाल के व्यक्तित्व की ख़ूबी है. उन्होंने कहा कि नये लेखकों के साथ रिश्ता बनाने की सहजता, व्यवहार में अनौपचारिकता, विचारों की दृढ़ता और विरोधी पक्ष को सुनने की क्षमता उनके गुण है. वे बेहद संवेदनशील हैं और अपने लेखन से कभी किसी का अनादर नहीं करते है. नागरिक जीवन को सूक्ष्म दृष्टि से परखने की उनकी कुशलता उन्हें अन्य लेखकों से इतर पहचान दिलाती है. उनके स्तंभ मूल्यवान विचारों से प्रेरित हैं.
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हेतु भारद्वाज ने कहा कि अग्रवाल साहब साहित्य को जीने वाले व्यक्ति हैं. असली साहित्य उन्हीं के पास होता है जो साहित्य को जीवन की तरह जीते हैं. डॉ सूरज पालीवाल ने कहा कि डॉ अग्रवाल की विशेषता है कि वे अपना पक्ष शालीनता से रखते हैं पर कभी उग्र नहीं होते. उनकी वैचारिक दृढ़ता और उनकी आस्था कभी डिगती नहीं है। वर्तमान दौर में अभिव्यक्ति पर मंडराते तमाम खबरों के बीच वे संतुलन क़ायम रखते हुए अपनी बात कहने से कभी पीछे नहीं रहते. वे कुशल पाठक , निष्पक्ष समीक्षक और मुखर आलोचक हैं.
डॉ अग्रवाल की लोकार्पित पुस्तक “दिल की गिरह खोल दी” के संपादक पल्लव ने कहा कि यह किताब समय समय पर लिये गये उनके साक्षात्कारों का संग्रह है. हर लेखक के जीवन में कुछ ऐसा होता है जिसका अनुकरण कर पाठक सीख ले सकता है. इन साक्षात्कारों में आत्मकथ्य के साथ ही बचपन व युवावस्था के संस्मरण है जो उनके जीवन को समझने में हमें आसानी देते हैं. डॉ अग्रवाल के यात्रा वृतान्त पर चर्चा करते हुए कविता मुखर ने कहा कि अग्रवाल साहब की भाषा शैली और चित्रण सहज, सरल और आकर्षक है. वे अमरीका के यात्रा अनुभवों में वहाँ की संस्कृति, उनकी जीवन शैली, वहाँ के स्कूल, पुस्तकालय, संग्रहालय, अस्पताल आदि पर इतना बारीकी से लिखते है कि पाठक को सहज ही आकर्षण हो जाता है. वहाँ के अख़बार, वहाँ का संगीत, खिलौने , साफ़-सफ़ाई , लोगों की ईमानदारी, कार्य की लगन और विरासत के प्रति आम आदमी की सोच आदि विषयों को अग्रवाल साहब गंभीरता से परखते हैं.
कार्यक्रम में सिंपली जयपुर की संपादक अंशु हर्ष , डियर साहित्यकार के प्रणेता सुनील नार्नोलिया, ई मैगज़ीन “इंद्रधनुष इंडिया” की अंजलि सहाय, राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के सचिव राजेंद्र बोड़ा सहित डॉ अग्रवाल के दामाद मुकेश अग्रवाल , बेटी चारू अग्रवाल व नातिन नव्या ने भी अपने विचार रखे. कविता माथुर ने डॉ अग्रवाल की रचना का पाठ किया ।इस अवसर पर शहर की विभिन्न संस्थाओं द्वारा डॉ दुर्गा प्रसाद अग्रवाल का अभिनंदन किया गया. कार्यक्रम का संचालन डॉ उषा दासौरा ने किया.