सामने से दृश्य के ग़ायब हो जाने का मतलब दृष्टि ग़ायब होना नहीं है
Ananya soch
अनन्य सोच। प्रगतिशील लेखक संघ, दौसा और कला पंख संस्थान , जयपुर द्वारा आज दौसा के होटल रावत पैलेस में रचना, पाठ व संवाद का कार्यक्रम “कोहरे में साहित्य” का आयोजन किया गया. वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हेतु भारद्वाज की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम के विषय को स्पष्ट करते हुए विशाल विक्रम सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि “सामने से दृश्य के ग़ायब हो जाने का मतलब दृष्टि ग़ायब होना नहीं है. यह कोहरा निरंतर घना होता जा रहा है। प्रतिरोध और संघर्ष से ही इस धुँधलके को हटाया जा सकता है. हमारे समय का कोहरा एक नया घटाटोप रच रहा है।” उन्होंनें कहा कि सौहार्द को घृणा का धुंधलका ढक रहा है. पूंजीवाद और फासिज्म का कोहरा भी घना हो रहा है. मिथकों के नायक तक बदले जा रहे हैं। आज धार्मिकता सांप्रदायिकता में परिवर्तित हो रही है. केवल साहित्य ही इसको बचा सकता है. लोकतंत्र को भी साहित्य ही बचा सकता है. लोकतंत्र और फ़ासिज्म का गठजोड़ एक ख़तरनाक कोहरा रच रहा है. बहुमत बहुसंख्यक में बदल रहा है. ये वो दौर है जब भयानक अंधकार हमारे सामने हैं। हर उजली चीज को ध्वस्त किया जा रहा है. साहित्य उस सच को निरावृत करता है जो बेहद खतरनाक हो सकतीं है.
डॉ हेतु भारद्वाज ने कहा कि विचारों पर यह कोहरा जो अंधेरे का ही पर्याय है. सदा से ही छाया रहा है. हर समय का अपनी तरह का धुंधलका होता है लेकिन साहित्यकारों का दायित्व है कि वे अपनी रचनाओं के ज़रिए अपनी आवाज़ उठाए और इसका प्रतिरोध करें. उनका कहना था कि साहित्यकार केवल शब्दों के निर्माता नहीं होते, बल्कि वे समाज के विचारधारा और चेतना के वाहक भी होते हैं. साहित्य समाज में व्याप्त अन्याय, असमानता और अज्ञानता के विरुद्ध आवाज़ उठाने का सशक्त माध्यम बन सकता है.
वरिष्ठ आलोचक राजाराम भादू का कहना है कि कोहरा प्राकृत है लेकिन स्मोग मानव जनित है। साहित्य में भी प्रदूषित माहौल है. संस्कृति के प्रदूषण से भी कोहरा छाया हुआ है। अंधेरे का तात्कालिक उपाय रोशनी अथवा उजाला है लेकिन साहित्य और संस्कृति की धुंध को ज्ञान से ही दूर किया जा सकता है. प्रकटीकरण और रहस्योद्घाटन के द्वारा ही इस चुनौती का सामना किया सकता है.
दो सत्रों में आयोजित इस कार्यक्रम का पहला सत्र कहानी पाठ का था जिसमें प्रदेश भर से आए साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया. कहानीकारों में धर्मेंद्र कुमार सैनी ने “नया गाँव “, अजय अनुरागी ने “बीच में घर”, राजेंद्र यादव आज़ाद ने “दिखावा”, ज्ञान चंद बागड़ी ने “कुण्डली”, रजनी मोरवाल ने “मरीन ड्राइव की ख़ाली बोतल”, चरण सिंह पथिक “रोजड़े” व डॉ हेतु भारद्वाज ने “पंच परमेश्वर” कहानी सुनाई.
प्रलेस राजस्थान के अध्यक्ष गोविंद माथुर की अध्यक्षता में कार्यक्रम का द्वितीय सत्र कविता पाठ का था जिसका संचालन कवि प्रेमचंद गांधी ने किया। कार्यक्रम में प्रदेश के कई बड़े कवि तो उपस्थित थे ही नई युवा पीढ़ी भी मौजूद रही जिनमे अपर्णा, जे संतोष, अनीता चौधरी, बृजमोहन मीणा, वैभव व्याकुल, नैनूराम मीणा, प्रकाश प्रियम, बाबूलाल शर्मा “विज्ञ” , अमर दलपुरा, कृष्ण कल्पित, अजंता देव, गोविंद सिंह नाहटा, फ़ारूक़ आफ़रीदी, हरीश करमचंदानी, राघवेंद्र रावत प्रमुख हैं.
अंत में प्रलेस की दौसा इकाई के महासचिव विजय राही ने सभी का आभार व्यक्त किया.
होटल रावत पैलेस के स्वामी मनोहर लाल गुप्ता ने सभी साहित्यकारों को दौसा के महान संत सुंदर दास का साहित्य भेंट किया.
उपन्यास “किन्नर माँ” का लोकार्पण
इस अवसर पर लेखक राजेंद्र यादव “आज़ाद” के थर्ड जेंडर पर आधारित उपन्यास “किन्नर माँ” का विमोचन किया गया। इस उपन्यास का प्रकाशन न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन द्वारा किया गया है.