जल संरक्षण में जन सहयोग की अहम भूमिका- बिजावत
पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकों पर राष्ट्रीय सम्मेलन में कई विशेषज्ञ हुए शामिल
Ananya soch
अनन्य सोच। विशेषज्ञ और शोधकर्ताओं के साथ सामुदायिक कार्यकर्ता और पर्यावरण प्रेमियों ने जयपुर में भागीदारी निभाई। मौका रहा पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकों पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का, जो भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के सहयोग से दर्शक कॉलेज ऑफ म्यूजिक एंड आर्ट्स के ऑडिटोरियम में हुआ। राजीव भट्ट और लोकेश अग्रवाल के निरीक्षण में सम्मेलन में विशेषज्ञों ने सुझाव रखें।
जल संरक्षण में जन सहयोग की अहम भूमिका:
जल संरक्षण अनुसंधान पर विचार व्यक्त करते हुए विशेषज्ञ सुरेंद्र बिजावत ने कहा, कि जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों को फिर से नए रूप में लाने के लिए सरकार और प्रशासन के साथ जन सहयोग बहुत जरूरी है।
उन्होंने जैसलमेर की जितनी नाड़ी और जोधपुर की सोमेरी नाड़ी का उदाहरण देते हुए बताया, कि जन सहयोग के बिना यह कभी संभव नहीं हो सकता था। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि प्राइमरी एजुकेशन में जल संरक्षण के चैप्टर पढ़ाए जाने चाहिए।
आईआईटी दिल्ली के अभिषेक गुप्ता ने बताया, कि यह एक मानवीय आदत है कि जब तक समस्या बड़ा रूप ना ले ले हम उसके समाधान की तरफ कोई काम नहीं करते। उन्होंने अपना एक अनुभव साझा करते हुए कहा, कि एक बार बैंगलुरु में पानी की किल्लत से पूरा ऑफिस छुट्टी पर रहा। न पीने के लिए पानी और नहाने के लिए पानी था। तभी से मन में विचार आया कि जल का संरक्षण कितना जरूरी है। शोधकर्ता यश अग्रवाल ने कहा, कि हां भूजल स्तर में सुधार लाने के लिए जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों जैसे बावड़ी, कुआं, जोहड़ और नाड़ी को फिर से क्रियांवित किया जाना चाहिए। देश के अधिकांश जिलों में सिर्फ तीन से चार महीने ही बारिश होती है। ऐसी स्थिति में भूजल स्तर कई बार बहुत नीचे चला जाता है। इसलिए हमें घरों में जल संरक्षण के लिए व्यवस्था करनी चाहिए। सम्मेलन में शामिल एम एल रावत, नरेंद्र सिंह गर्ग और राजू सजनानी ने कहा, कि सिर्फ सेमिनार और कार्यक्रम की रूप रेखा बनाने से ही नहीं बल्कि जन-जन को आगे आकर इस दिशा में काम करना होगा। तभी भविष्य की एक विकट समस्या से हम पार पा सकेंगे। सम्मेलन में जल शक्ति मंत्रालय के उप-निदेशक करमवीर यादव ने मंत्रालय का प्रतिनिधित्व किया। संचालन प्रियंका अग्रवाल ने किया। संस्था अध्यक्ष राजीव भट्ट ने स्वागत किया और समापन टिप्पणी संस्था सचिव लोकेश अग्रवाल ने दी।