राजस्थान में भी प्रतिबंधित होगा “गोरख धंधा” शब्द !
नवल पांडेय।
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Ananya soch: The word “Gorakh Dhandha” will be banned in Rajasthan too
अनन्य सोच। “Gorakh Dhandha” word: अनैतिक व बुरे कार्यों के लिए प्रयोग किए जाने वाले “गोरख धंधा” शब्द को शीघ्र ही राजस्थान सरकार द्वारा भी प्रतिबंधित किया जा सकता है. गोरख नाथ सम्प्रदाय से जुड़े लोगों की माँग पर हरियाणा सरकार इसे पहले ही प्रतिबंधित कर चुकी है. ऐसी ही माँग मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी की जा रही है. भाजपा राजस्थान ने तो 2018 के अपने घोषणापत्र में भी यह वादा किया था कि यदि सत्ता में आए तो इस शब्द को प्रतिबंधित कर दिया जाएगा लेकिन सरकार कांग्रेस की बन गई थी. अब 2024 में फिर से राजस्थान में भाजपा की सरकार बन गई है तो इस मांग ने पुनः जोर पकड़ लिया है.
हरियाणा पहला राज्य जहाँ गोरख धंधा’ शब्द के इस्तेमाल पर प्रतिबंध
18 अगस्त, 2021 को हरियाणा सरकार ने अनैतिक प्रथाओं का वर्णन करने के लिये आमतौर पर इस्तेमाल किये जाने वाले ‘गोरख धंधा’ शब्द पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने गोरखनाथ समुदाय के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के बाद इस संबंध में निर्णय लिया. गोरखनाथ समुदाय ने उनसे ‘गोरख धंधा’ शब्द के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया था और कहा था कि यह संत गोरखनाथ के अनुयायियों की भावनाओं को आहत करता है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि गुरु गोरखनाथ संत थे और इस शब्द का किसी भी आधिकारिक भाषा, भाषण या किसी भी संदर्भ में उपयोग करने से उनके अनुयायियों की भावनाएँ आहत होती हैं, इसलिये किसी भी संदर्भ में इस शब्द के उपयोग पर अब पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है. धोखाधड़ी या ठगी जैसे कारनामों की जगह होता था इस्तेमाल, नाथ पंथ की आपत्ति के बाद राज्य सरकार ने लगाई रोक हरियाणा में अब किसी तरह के गलत कार्यों, ठगी-धोखाधड़ी आदि कारनामों में ‘गोरखधंधा’ शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकेगा। प्रदेश में आम बोलचाल की भाषा में अनैतिक कार्यों के लिए लोग गोरखधंधा शब्द प्रयोग किया जाता रहा है. लोग यही समझते थे कि गोरखधंधा शब्द ही ठगी या धोखाधड़ी से जुड़ा कार्य है.
प्रसिद्ध योगी गोरखनाथ की साधना से प्रचलन में आया था गोरखधंधा शब्द
गोरखधंधा शब्द सन् 845 में योगी गुरु गोरखनाथ से योग साधना से जुड़ा हुआ शब्द है. योगी गोरखनाथ नाथ संप्रदाय के प्रसिद्ध योगी हुए हैं. गुरु गोरखनाथ ने योग की अलग-अलग कठिन साधनाएं व आसन भी इस संसार को दिए. कठिन साधनाओं को उस समय गोरखधंधा नाम से बोला जाता था. धीरे-धीरे य इसका प्रयोग गलत कामों को एक शब्द में परिभाषित करने के लिए होने लगा. योगी गुरु गोरखनाथ ने भारत समेत नेपाल, भूटान, तिब्बत आदि देशों में नाथ मठों की स्थापना की थी. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व भाजपा सांसद बाबा बालकनाथ भी गोरखनाथ संप्रदाय से ही संबंधित हैं.
गोरखधंधा शब्द का मतलब
गोरख धंधा शब्द का मतलब आज के समय में धोखाधड़ी छल कपट, चोरी छुपे बुरे कामों के लिए किया जाता है. लेकिन गोरख धंधा शब्द का सबसे पहले जो उपयोग मिलता है वह जैनेंद्र कुमार की किताब निबंधों की दुनिया में मिलता है और ओशो की लिखी किताबों में मिलता है. उन किताबों में इस बात का जिक्र था कि जो साधु महात्मा थे. उन्होंने साधना के लिए सत्य को तलाशने के लिए इतनी व्यवस्थाएं देख ली कि वह इस चीज में भ्रमित हो गए कि क्या करें और क्या ना करें. उनकी इस मनोस्थिति को गोरख धंधा कहा जाने लगा. आसान शब्दों में कहें तो गैर कानूनी या अवैध कार्यों के लिए इसका इस्तोमाल किया करते हैं.
हालाँकि इस शब्द का इतिहास देखें तो "गोरख-धंधा" नाथ, योगी, जोगी, धर्म - साधना में प्रयुक्त एक आध्यात्मिक मन्त्र योग विद्या है तथा नाथ-मतानुयायियों की धार्मिक भावना से जुड़ा है। ऐसी मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ जी ने उस परम सत्य को पाने के लिए कई विधियों की तलाश की व साधना की व्यवस्था बनाई. डॉ॰ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संकलन और संपादन किया जो ‘गोरख बानी’ के नाम से प्रकाशित हुआ. [4] डॉ॰ बड़थ्वाल की खोज में कम से कम ४० पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है। मनुष्य के भीतर अंतर-खोज के लिए गुरु गोरखनाथ जी ने जितना आविष्कार किया उतना शायद किसी ने भी नहीं किया है. उन्होंने इतनी विधियां दीं कि लोग उलझ गये की कौन-सी ठीक, कौन-सी गलत, कौन-सी करें, कौन-सी छोड़ें। यह उलझाव इस सीमा तक जा पहुँचा कि लोग हताश होने लगे तथा गोरख-धंधा शब्द प्रचलन में आ गया। जो समझ में ना आ सके वो गोरख-धंधा है.
कालाँतर में इन विधियों का दुरुपयोग नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों द्वारा धार्मिक लोगों को छलने में भी होने लगा जिसके कारण समय के साथ साथ यह शब्द नकारात्मक होता चला गया.
गोरखपंथी साधु लोहे या लकड़ी की सलाइयों के हेर फेर से एक चक्र बनाते हैं। उस चक्र के बीच में एक छेद करते हैं. इस छेद में से कौड़ी या मालाकार धागे को डालते हैं और फिर मन्त्र पढ़कर उसे निकाला करते हैं। इसी को गोरखधंधा या धंधारी कहते हैं। इसका उल्लेख योगियों के वेष में प्रायः सर्वत्र मिल जाता है। गोरखधंधा या धंधारी में से किया जाने बिना कौड़ी या डोरी निकालना बहुत कठिन कार्य है। इसीलिए गोरखधंधा शब्द का प्रचलन आजकल उलझन और झंझट वाले कार्यों का वाचक बन गया है।
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय , जोधपुर के संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. श्रीकृष्ण शर्मा का कहना है कि मूलतः “गोरक्षनाथ” शब्द का लोक व्यवहार में उच्चारण सुविधा से “गोरखनाथ” के रूप में प्रयोग हुआ. ‘गो” शब्द के “गाय”, “इन्द्रिय” , “वाणी” आदि अनेक अर्थ होते हैं. अतः ‘गोरक्ष” शब्द का प्रयोग गोधन का रक्षक, इन्द्रियजयी, मंत्रसाधक के अर्थ में होता है. “धंधा “ शब्द मूलतः साधना रूप कर्म के अर्थ में प्रयुक्त हुआ. अतः गोरख धंधा शब्द योग साधना एवं मंत्र साधना के माध्यम से “अंतर्जगत” के रहस्य को समझने के लिए प्रयुक्त होने वाली नानाविधियों (क्रियाओं) के लिए उपयोग में लाया जाता है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में “गोरखधंधा” शब्द मीडिया एवं अन्यत्र भी अनैतिक, अवैधानिक , नकारात्मक, गलत एवं बुरे कार्यों के लिए भी प्रयोग में लिया जा रहा है. अतः अनैतिक , अवैधानिक, नकारात्मक, गलत एवं बुरे कार्यों के लिए “गोरखधंधा” शब्द का प्रयोग प्रतिबंधित होना चाहिए.
सद्संस्कार समिति , सांभरलेक के योगी श्री रमणनाथ जी ने बताया कि किसी भी प्रमाणिक शब्दकोश में इस शब्द का प्रचलन नहीं है. गोरक्ष का अपभ्रंश है गोरख. इसकी वास्तविकता यह है कि नाथ सम्प्रदाय में साधकों को व्यस्त रखने के लिए जप स्मरण के साथ ही कुछ शारीरिक श्रम के महत्त्व पर जोर दिया गया है. इसके लिए एक लकड़ी की कड़ियों का उपकरण इजाद किया गया था जिसमें 22 से लेकर 24 तक कड़ियाँ होती है जिन्हें उसमें लगे खांचों में चढ़ाना होता है. उन्होंने बताया कि हर दो कड़ी बाद इसे चढाने में लगने वाला समय दुगुना होता जाता है और इस तरह 22 कड़ियों को चढाने में 22 से 24 घंटे तक लग जाते हैं. उनका कहना था कि नाथ संप्रदाय में साधकों को व्यस्त रखने के लिए काली धागे की जनेऊ गूंथना, कपडे के बटुए तैयार करना, गुदड़ी सीना जैसे कार्य भी कराये जाते थे. गुदड़ी के धागे सीधे हों, उनमें कलात्मकता हो इसका भी ध्यान रखा जाता था और गुदड़ी सीने के बाद पुनः धागे निकालकर फिर सीला जाता था. इस तरह की व्यस्तताओं को ही गोरखधंधा कहा जाता था जिसका उल्लेख ग्यारहवीं शताब्दी में प्रकाशित पुस्तक “नाथ रहस्य” में भी मिलता है. वर्तमान में इस शब्द के दुरूपयोग का रोकने के लिए इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.
राजस्थान विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो नंदकिशोर पाण्डेय का कहना है कि शब्द तो ब्रह्म है और उन्हें किसी शब्दकोष से निकालना संभव नहीं है. कई बार लोक में शब्दों का अपकर्ष हो जाता है और इस शब्द के साथ ऐसा ही हुआ है. किसी भी क्षेत्र में निष्ठा व समर्पण के साथ तल्लीनता से कोई कार्य करना गोरखधंधा कहा जाता है. गोरखनाथ जी का प्रमुख ध्येय यही था कि विकृतियों को दूर कर समाज को परिष्कृत बनाया जावे. शब्द के रूप में गोरखधंधा में कोई कमी या बुराई नहीं है लेकिन वर्तमान में अनैतिक अर्थ में इस शब्द का प्रयोग बंद किया जाना चाहिए.