Shakti Foundation: महिला संगठन 'शक्ति फाउंडेशन' ने आपसी प्रेम और सौहार्द का दिया संदेश
Shakti Foundation: कोलकाता से आई मां दुर्गा की इको-फ्रेंडली मूर्ति और पांरपरिक वस्त्र रहे विशेष आकर्षण जयपुर में महिलाओं ने धूमधाम से निभाई बंगाल की पारंपरिक 'सिंदूर खेला' की रस्म
Ananya soch: Shakti Foundation
अनन्य सोच, जयपुर। Shakti Foundation: जयपुर के महिला संगठन, शक्ति फाउंडेशन (Shakti Foundation) द्वारा जयपुर के होटल गोल्डन ट्यूलिप में बंगाल की पारंपरिक 'सिंदूर खेला' (sindoor khela) की रस्म उत्साह और उमंग के साथ निभाई गई. कार्यक्रम की शुरुआत 'सिंदूर खेला' की परंपरा और इसके महत्व के बारे में विस्तार से बताने के साथ हुई. जिसके बाद विधिवत पूजा का आयोजन हुआ. बंगाल की पारंपरिक लाल बॉर्डर वाली सफेद रंग की साड़ी में सजी-धज्जी महिलाओं ने पहले मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित किया, फिर एक दूसरे को सिंदूर लगाकर 'सिंदूर खेला' की रस्म निभाई. रस्म के दौरान महिलाओं ने एक-एक कर मां दुर्गा की आरती की और अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना की.
इस रस्म में न केवल विवाहित महिलाएं बल्कि अविवाहित महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और आपसी प्रेम व सौहार्द का संदेश दिया. कार्यक्रम में कोलकाता से आए स्थानीय कलाकारों के बैंड 'नवदुर्गा रॉकर्स' की प्रस्तुति खास रही. इस अवसर पर महिलाओं ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई और नृत्य किया. कार्यक्रम में शक्ति फाउंडेशन की सदस्य सोनाक्षी वशिष्ठ, सुष्मिता दास, हीना, अनुपमा अग्रवाल, डॉ. सुप्रिया गुप्ता, निमिषा गुप्ता, संजीता वर्मा, रश्मी बहेती, चेताली सेनगुप्ता, शम्मी गोयल, श्रुति लूथरा उपस्थित रहीं.
इस आयोजन को लेकर शक्ति फाउंडेशन की संस्थापक, सोनाक्षी वशिष्ठ ने बताया कि यह 5वां वर्ष है जब फाउंडेशन द्वारा जयपुर में 'सिंदूर खेला' का यह आयोजन किया गया है. यह स्थानीय लोगों के लिए नई संस्कृतियों के बारे में जानने और उसको सेलिब्रेट करने की एक पहल है. उन्होंने आगे बताया कि इस आयोजन के लिए मां दुर्गा की इको-फ्रेंडली मूर्ति, पांरपरिक वस्त्र और पूजा के थाल विशेषकर कोलकाता से मंगवाए गए थे। कार्यक्रम में कोलकाता, जयपुर, जोधपुर, अजमेर से लकेर राजस्थान के अन्य शहरों से भी फाउंडेशन की सदस्यों ने भाग लिया.
गौरतलब है कि दुर्गा पूजा के आखिरी दिन बंगाली समुदाय द्वारा सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है. बंगाली पंरपरा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा अपने चार बच्चों के साथ दुर्गा पूजा उत्सव मनाने के लिए धरती पर आती हैं. त्योहार के अंतिम दिन उदासी का माहौल छा जाता है, जब देवी दुर्गा को विदा किया जाता है. ऐसा मानना है कि देवी दुर्गा के आंसू बहे थे, इसलिए सिंदूर अर्पित करने से पहले उनके गालों को पान के पत्तों से पोंछा जाता है. इसके बाद उनकी मांग में और पारंपरिक चूड़ियों पर सिंदूर अर्पित करते हैं. फिर महिलाएं सुखी जीवन और परिवार की खुशहाली के लिए दुर्गा मां के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं. बाद में सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर मिठाई खिलाती हैं.