राजस्थान रोडवेज का 60 साल का सफर: 421 से शुरुआत, आज 3460 बसें, लेकिन घाटा भी 6 हजार करोड़ रुपए का
Rishiraj joshi.
Ananya soch: Rajasthan State Road Transport Corporation
अनन्य सोच। Rajasthan State Road Transport Corporation news: Rajasthan Roadways को आज 60 साल पूरे हो गए हैं. सरकार ने state roadways transport का संचालन करने के बाद 1 अक्टूबर 1964 को राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम (आरएसआरटीसी) (60 years journey of Rajasthan Roadways) की स्थापना की थी. तब और अब की रोडवेज की तस्वीर में बहुत बड़ा अंतर आ गया है.
इन सालों में प्रदेश में गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछता गया. रोडवेज बसें उन पर सरपट दौड़ती रहीं. बीते 6 दशक में रोडवेज का परिवार खूब फला-फूला, लेकिन अब रोडवेज के हाल-बेहाल होते जा रहे हैं. विभाग के मूल कर्मचारी वेतन और पेंशन को भी तरस रहे हैं.
राजस्थान रोडवेज के इन 60 सालों की कहानी सुनिए खुद रोडवेज की जुबानी...
मैं हूं राजस्थान रोडवेज, मैं हूं राजस्थान रोडवेज, मेरा पूरा नाम राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम है. आज मेरी स्थापना के 60 साल पूरे हो गए हैं. इन साठ सालों में बहुत कुछ बदल गया, नहीं बदला तो मुझ पर मेरे यात्रियों का भरोसा. जो मेरे कर्मचारी-अधिकारियों की कड़ी मेहनत की वजह से है. आज मैं आपको बताता हूं कि मैंने कैसे अर्श से फर्श तक का सफर तय किया. कैसे मेरा परिवार बढ़ा, कैसे मुझे प्रदेश ही नहीं, देशभर में ख्याति मिली. वहीं आज जो हाल मेरा है, उसकी वजह क्या रही.
421 बसों से हुई थी मेरे सफर की शुरुआत
आज से 60 साल पहले मेरे सफर की शुरुआत 421 बसों से हुई थी. इन बसों के संचालन के लिए उस समय 8 डिपो और 2,347 कर्मचारी थे. 70 मार्गों पर बसें 7068 किलोमीटर चला करती थी. आज मेरे बेड़े में 2610 बसें हैं। 850 अनुबंधित बसें हैं. जो करीब 1800 मार्गों पर रोज 11.60 लाख किलोमीटर का सफर तय करती है. इसमें करीब 7 लाख यात्री रोज यात्रा करते हैं. लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब मेरे बेड़े में मेरी स्वयं की साढ़े 4 हजार से ज्यादा बसें थीं. रोज 10 से 11 लाख यात्री मेरी बसों में यात्रा करते थे. मेरी बसें प्रतिदिन 17 लाख किलोमीटर का सफर तय किया करती थीं. मेरे नाम देश में कई बड़े अवॉर्ड भी हैं. समय पालन में मेरा कोई विकल्प नहीं है, देश में सबसे कम सड़क दुर्घटनाओं में मेरे नाम दर्ज हैं. इसे लेकर मुझे देश और विदेश में भी सम्मानित किया जा चुका है.
करीब 6 हजार करोड़ के घाटे में
मैं करीब 6 हजार करोड़ के घाटे में अब मेरी हालत खस्ता होती जा रही है. मेरा बेड़ा घटने लगा है. मेरे कर्मचारी कम होने लगे हैं. मेरे कर्मचारी अब वेतन और पेंशन को भी तरस रहे हैं. उन्हें मेरे सामने ही मैं संघर्ष करते और मेरे अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ते रोज देखता हूं. आज मेरी हालत खराब हो रही है, मार्च 2024 तक मेरा घाटा 6 हजार करोड़ तक पहुंच गया है. प्रतिदिन मुझे 3 करोड़ का घाटा हो रहा है. जितनी मेरी आय नहीं है, उससे ज्यादा मुझ पर खर्चे लाद दिए गए हैं. इसके चलते मेरे अपने कर्मचारियों को आज मेरी स्थापना के दिन भी 2 महीने से वेतन और पेंशन नहीं मिली है. जिन कर्मचारियों ने अपनी पूरी जिंदगी मुझे दे दी. आज वो रिटायरमेंट के बाद अपने हक के पैसे के लिए तरस रहे हैं. अक्टूबर 2022 से रिटायर हुए कर्मचारियों को उनकी ग्रेच्युटी, ओवर टाइम और अन्य सेवानिवृत परिलाभ भी मैं नहीं दे पाया हूं.
जिम्मेदारों ने ही मुझे इस हाल में पहुंचाया है
मुझे इस हाल में पहुंचाने का जिम्मेदार कोई एक नहीं हैं. जिन लोगों पर मेरे संचालन की जिम्मेदारी थी, उनकी गलत और मेरे प्रति नकारात्मक नीतियां इसका सबसे बड़ा कारण है. समय के साथ प्राइवेटाइजेशन भी इसका बड़ा कारण है. अब तक रही सभी सरकारों ने मुझसे ज्यादा महत्व प्राइवेट बसों को दिया. प्राइवेट बसों का संचालन नियम विरुद्ध मेरे बस स्टैंडों के सामने से किया गया. जो आज भी जारी है. मेरे अधिकारी और कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार भी मेरी इस हालत के लिए जिम्मेदार है. वहीं, अधिकारी स्तर पर बनाई गई गलत नीतियों की वजह से आज मेरी हालत खराब होती जा रही है.
पिछले सालों में हर चीज की कीमत बढ़ी
पिछले सालों में हर चीज की कीमत बढ़ी है, डीजल के दाम, टायर, स्पेयर पार्ट्स, बिजली-पानी, कर्मचारियों की सैलरी सब बढ़ चुके हैं. लेकिन नहीं बढ़ा है तो मेरा किराया। पिछले 9 सालों से मेरे यात्री किराए में किसी तरह की बढ़ोत्तरी नहीं हुई है इससे लगातार खर्चे बढ़ रहे हैं, लेकिन उसकी एवज में मेरी आय कम होती जा रही है.
खटारा बसों के सहारे चल रहा मेरा सफर
आज मेरे बेड़े में कहने को तो 3460 बसें है. इनमे से 850 बसें अनुबंध की हैं. मेरी केवल 2610 बसें ही बची हैं. इन बसों में से भी करीब 1300 बसें खटारा हो चुकी हैं. बेड़े में नई बसें शामिल नहीं होने से मेरे कर्मचारी किसी तरह से इन बसों को ठीक करके रूट पर चला रहे हैं. हालात यह हो रहे हैं कि बसें रास्ते में ही हांफने लगती हैं. इससे यात्रियों में मेरी इमेज खराब हो रही हैं. लेकिन नई बसें नहीं मिलने के कारण मजबूरी में इन बसों को रूट पर चलाया जा रहा है. यहीं हाल मेरे कर्मचारियों का है, आज मेरे कर्मचारियों की संख्या आधी रह गई है. 22 हजार की तुलना में मेरे पास केवल 10,791 कर्मचारी ही बचे हैं. 2013 के बाद से मेरे यहां कोई नई भर्ती नहीं हुई है.
मेरे बिना सफर की कल्पना भी नहीं की जा सकती है
मेरा यही हाल रहा तो एक दिन मैं दम तोड़ दूंगा. जिनकी राह में मैं रोड़ा हूं, शायद वो चाहते भी यही हैं. लेकिन यहां मैं आपको बता देना चाहता हूं कि आप मेरे बिना सफर करने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमारे पड़ोस में मध्यप्रदेश सड़क परिवहन निगम है. ट्रांसपोर्ट की कमान निजी हाथों में देने के लिए अफसर और ठेकेदारों के गठजोड़ ने इतना जोर लगाया कि 2005 में मध्यप्रदेश परिवहन निगम पर ताला लग गया. इसका दुष्परिणाम यह रहा कि मध्यप्रदेश में प्राइवेट ट्रांसपोर्ट का आंतक बढ़ गया. ग्राहकों से मनमाना किराया वसूला जाने लगा. इसके बाद अब मध्यप्रदेश सरकार ने सरकारी परिवहन की कमी को महसूस करते हुए इसे फिर से शुरू करने फैसला लिया हैं.
कई सरकारी परिवहन पेश कर रहे मिसाल
आज देश में कई सरकारी परिवहन मिसाल कायम कर रहे हैं. केरल राज्य परिवहन निगम (केएसआरटीसी) इसका सबसे अच्छा उदाहरण है. यह परिवहन निगम 1965 में अस्तित्व में आया था. सरकारी सहयोग और समय के हिसाब से खुद को अपग्रेड करते हुए केएसआरटीसी के पास लग्जरी और एक्सप्रेस बसों का 6 हजार का बेड़ा है. इसमें 35 हजार से ज्यादा कर्मचारी शामिल हैं. इसकी बसें रोज 17 लाख किलोमीटर का सफर तय करके 32 लाख यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाती है.
इसी तरह से मुंबई सार्वजनिक परिवहन सेवा की मिसाल है. बेस्ट के नाम से जाने वाली इस सार्वजनिक परिवहन सेवा में 1 लाख से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं. 17 हजार से ज्यादा रूट्स पर यह बसें संचालित हो रही हैं.
इसी तरह से गुजरात, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा रोडवेज भी सरकारी सहयोग से बेहतर काम कर रही है. मुझे भी बस थोड़े से सहयोग और संबल की जरूरत है. अगर यह मुझे मिल जाए तो मैं भी पहले की तरह ही प्रदेश के लाखों यात्रियों के विश्वास पर हमेशा खरा उतरता रहूंगा.
क्या बोले एक्सपर्ट
राजस्थान स्टेट रोडवेज एम्पलाइज यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष एमएल यादव ने बताया- सरकार की नीतियां हमेशा रोडवेज के विरोध की रही हैं, इसे पनपाने की नीतियां कभी नहीं रही. रोडवेज के अधिकारी स्तर का भ्रष्टाचार, जो नीचे कर्मचारियों तक भी जाता है. यह भी एक बड़ा कारण है। वहीं रोडवेज की आय का एक मात्र साधन किराया हैं. जो सरकार अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए बढ़ाती नहीं है. राजस्थान परिवहन निगम संयुक्त कर्मचारी फेडरेशन के प्रदेश महामंत्री सत्यनारायण शर्मा ने बताया- जिस तरह से शिक्षा, चिकित्सा और आवास मूलभूत सुविधाओं में माना गया है. उसी तरह से सार्वजनिक परिवहन को भी मूलभूत सुविधाओं में शामिल किया जाना चाहिए.
इसमें सरकारों को फायदे और घाटे का सौदा नहीं देखना चाहिए. कई प्रदेशों में सरकार अपने यहां की रोडवेज को संबल प्रदान कर रही हैं. गुजरात में रोडवेज को 1400 करोड़ की सालाना आर्थिक मदद और 1000 बसें सरकार देती हैं. इसी तरह से तमिलनाडू, तेलंगाना और अन्य राज्यों में भी सरकार रोडवेज को मदद करती हैं.
इनका कहना है----
राजस्थान रोडवेज पर हमारा विश्वास है, हमें विश्वास है कि इसमें हमारा सफर सुरक्षित होगा. राजस्थान की उन्नति की झलक राजस्थान रोडवेज में भी देखने को मिलती है.
-जीएस राठौड़ यात्री
राजस्थान रोडवेज में सफर सबसे आरामदायक और सुरक्षित है. रोडवेज बस में अकेली महिला भी आराम से सफर कर सकती हैं.
-निष्ठा यात्री
एक जमाना था, जब रोडवेज सरकार से अनुदान लेती नहीं थी, बल्कि सरकार को लाभांश दिया करती थी. लेकिन सरकार और प्रबंधन की गलत नीतियों के चलते प्राइवेट बसों को प्रोत्साहन मिलता गया.
-वरूण तिवाड़ी
संरक्षक, प्रदेश महामंत्री, राजस्थान परिवहन निगम संयुक्त कर्मचारी फेडरेशन