26th Lokrang Mahotsav: राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह में 8 राज्यों की 9 लोक विधाएं हुई प्रस्तुत

26th Lokrang Mahotsav: 230 कलाकारों ने पहले दिन दी प्रस्तुति — शिल्पग्राम में राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला

26th Lokrang Mahotsav: राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह में 8 राज्यों की 9 लोक विधाएं हुई प्रस्तुत

Ananya soch: 26th Lokrang Mahotsav

अनन्य सोच, जयपुर। 26th Lokrang Mahotsav:  26वें लोकरंग महोत्सव का रविवार को शुभारंभ हुआ, जिसमें 230 कलाकारों ने पहले दिन प्रस्तुति दी. जवाहर कला केन्द्र (Jawahar Kala Kendra) की ओर से आयोजित 11 दिवसीय उत्सव 8 अक्टूबर तक चलेगा.  राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह (National Folk Dance Festival) में प्रतिदिन मध्यवर्ती में सायं सात बजे से विभिन्न प्रदेशों से आए लोक कलाकार प्रस्तुति देंगे. शिल्पग्राम में सायं 5:30 बजे से मुख्य मंच पर सांस्कृतिक प्रस्तुतियां होंगी,  प्रात: 11 बजे से रात्रि 10 बजे तक चलने वाले राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले (National Handicraft Fair) में हस्तशिल्पियों के उत्पादों की प्रदर्शनी लगेगी. 

केंद्र की अतिरिक्त महानिदेशक प्रियंका जोधावत और गाते—झूमते कलाकारों ने लोकरंग का ध्वज फहराकर महोत्सव का शुभारंभ किया. इस दौरान अन्य प्रशासनिक अधिकारी व कला प्रेमी मौजूद रहे. शिल्पग्राम में राम प्रसाद ने कच्छी घोड़ी, भूंगर खान मांगणियार व ग्रुप ने मांगणियार गायन, मीरा सपेरा ने कलबेलिया नृत्य, राम जोशी ने बम रसिया व लतीफ खान मांगणियार ने गायन प्रस्तुति दी। नट, कठपुतली, बहुरूपियों को देखकर लोग रोमांचित हो उठे.

इसके बाद मध्यवर्ती में राष्ट्रीय नृत्य समारोह की महफिल सजी. मंच पर 8 राज्यों की 9 लोक विधाओं की प्रस्तुति हुई. पश्चिमी राजस्थान में प्रचलित मशक वादन की प्रस्तुति से कार्यक्रम की शुरुआत हुई. श्रवण गेगावत ने पधारो म्हारे देश व अन्य राजस्थानी गीत मशक पर बजाए. खड़ताल, हारमोनियम, ढोलक पर अन्य कलाकारों ने संगत की. इसके बाद चरी नृत्य और गुजरात के बेडा रास की प्रस्तुति हुई. उत्तराखंड के कलाकारों ने छोलिया नृत्य पेश किया. कुमाऊं अंचल की यह विधा छलिया नृत्य के नाम से भी प्रसिद्ध है. युद्ध के लिए जाते समय किया जाने वाला नृत्य अब विवाहों में बारात का हिस्सा बन गया है. पुरुष हाथों में तलवार व ढाल लेकर लोक वाद्य यंत्रों की धुनों पर नृत्य करते हैं.

जम्मू—कश्मीर में विवाह के अवसर पर किए जाने वाले जागरणा नृत्य के साथ कार्यक्रम आगे बढ़ा, महिलाओं द्वारा किए जाने वाले इस नृत्य में पारिवारिक नोंक—झोंक नज़र आती है. इसके बाद गुजरात के मिश्र रास ने माहौल को कृष्णमय कर दिया. मिश्र रास गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में अत्यंत लोकप्रिय है, यह कृष्ण व राधा के रास पर आधारित नृत्य है. कलाकार ने बताया कि मिश्र रास को लेकर स्थानीय लोगों में एक प्रसंग प्रचलित है कि गुजरात के आदिकवि नरसी मेहता ने रात में कृष्ण रास देखा था, वे इस कदर लीन हुए कि मशाल से उनका हाथ तक जल गया. इसके बाद हरियाणा के घूमर व पंजाब के लुड्डी नृत्य की जोशीली प्रस्तुति हुई. अंत में गुजरात की डांग जनजाति द्वारा किए जाने वाले डांगी नृत्य की प्रस्तुति ने सभी को रोमांचित कर दिया.

डांगी नृत्य त्यौहारों व उत्सवों में किया जाता है. नर्तकियां पुरुषों की कमर पर तथा नर्तक महिलाओं के कंधे पर हाथ रख कर इस नृत्य करते हैं. धीरे-धीरे नृत्य गति पकड़ता है तथा नर्तकियां पुरुषों के कंधे पर चढ़ कर पिरामिड बनाती हैं तथा घुमावदार नृत्य का प्रदर्शन करती हैं.