Hindi Diwas: अनन्य सोच के लिए हिंदी दिवस पर डॉ. रत्ना शर्मा की विशेष कविता
डॉ. रत्ना शर्मा (लेखक)
Ananya soch: Hindi Diwas
अनन्य सोच। Hindi Diwas: हिंदी सिरमौर है
हिंदी हिंदी बोलते हैं हिंदी रस घोलते हैं , ऐसे हिंदुस्तान की जुबान हिंदी चाहिए, हिंदी सिरमौर है हिंदी बेजोड़ है, हर हिंदुस्तानी को यह मन होना चाहिए. हिंदी में प्रसाद, पंत, निराला बसे है जहां हिंदी में महानता का वास होना चाहिए, हिंदी के गगन में चमकता है सूर्य और चांद की सी चांदनी का वास होना चाहिए.
हिंदी में कोयल कूके हिंदी में पपीहा बोले, हिंदी सी ऋतु बसंत बार-बार चाहिए, हिंदी में ही मां की लोरी ,हिंदी में तुतलाती बोली हिंदी जन- जन की आवाज़ होनी चाहिए.
हिंदी के साहित्य के कोश का न ओर छोर बोलियों का पूरा परिवार साझा चाहिए, हिंदी वह समंदर है सीप- सी भाषाएं जिसमें जौहरी को मोती की पहचान होनी चाहिए.
हिंदी में सुरों की सरगम, हिंदी में रिश्तों का संगम, हिंदी विश्व संस्कृति का आगाज़ होना चाहिए, हिंदी में वैज्ञानिकता है हिंदी में संवेदना है, हिंदी में समानता का भाव होना चाहिए.
कश्मीर से फैली है कन्याकुमारी तक हिंदी अब तो जर्रे -जर्रे की जुबान होनी चाहिए, हिंदी में गीता का सार, सर्वधर्म समभाव हिंदी भारती की पहचान होनी चाहिए.
हिंदी बने राष्ट्रभाषा हिंदी सबकी अभिलाषा हिंदी रग -रग में समाई होनी चाहिए, पूरब की भाषा हिंदी, उत्तर की भाषा हिंदी दक्षिण में भी हिंदी का सम्मान होना चाहिए.
विश्व के पटल पर लहराया है हिंदी ने परचम अब तो धरती पर भी सम्मान होना चाहिए, हिंदी मातृ भाषा बनी राजभाषा बनी ‘देव’ राष्ट्र के सिंहासन पर विराजमान चाहिए.
यही प्रार्थना ‘रत्ना’ बार- बार करती तुमसे हिंदी का वितान सारा हिन्दुस्तान चाहिए ll डॉ. रत्ना शर्मा (लेखक)
Disclaimer: ये लेखक के अपने विचार या कविता है.