जेएलएफ में गाजा संघर्ष और वैश्विक राजनीति पर चर्चा

नवल पांडेय।

जेएलएफ में गाजा संघर्ष और वैश्विक राजनीति पर चर्चा

Ananya soch: Gaza conflict and global politics discussed at JLF

अनन्य सोच। Gaza conflict and global politics discussed: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) में शुक्रवार को गाजा संघर्ष और उसके वैश्विक प्रभावों पर एक महत्वपूर्ण चर्चा हुई, जिसमें भारतीय और अंतरराष्ट्रीय लेखकों, कूटनीतिज्ञों और बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे। इस चर्चा के केंद्र में न केवल गाजा में जारी हिंसा थी, बल्कि इस संघर्ष के मानवीय, राजनीतिक और वैश्विक प्रभावों पर भी विचार किया गया।

गाजा संघर्ष: वैश्विक राजनीति और मानवता पर प्रभाव

इस सत्र में प्रमुख वक्ता के रूप में लेखक पंकज मिश्रा ने भाग लिया। उन्होंने अपनी नई किताब पर चर्चा करते हुए बताया कि यह सिर्फ गाजा संघर्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक राजनीति और मानवता पर इसके दूरगामी असर को भी उजागर करती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गाजा में हुई हिंसा केवल एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व के लिए एक चेतावनी है। मिश्रा के अनुसार, यह संघर्ष वैश्विक व्यवस्था की उन कमजोरियों को सामने लाता है, जिनसे न केवल पश्चिम एशिया, बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है।

ब्रिटिश-फिलिस्तीनी लेखिका सेल्मा दब्बाग का मानवीय दृष्टिकोण

इस चर्चा में ब्रिटिश-फिलिस्तीनी लेखिका सेल्मा दब्बाग ने गाजा संघर्ष के मानवीय पहलुओं पर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक राजनीतिक या कूटनीतिक मसला नहीं है, बल्कि लाखों निर्दोष नागरिकों के जीवन से जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि गाजा में आम लोग किस तरह से कठिन परिस्थितियों में जीने को मजबूर हैं और इस संघर्ष ने वहां की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। दब्बाग ने इस बात पर भी जोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया अक्सर इस संघर्ष के असली पीड़ितों—गाजा के आम नागरिकों—की आवाज को नजरअंदाज कर देता है।

भारत का नजरिया: पूर्व राजनयिक नवतेज सरना की राय

इस चर्चा में भारत के पूर्व राजनयिक और लेखक नवतेज सरना ने भारत के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा शांति और मध्यस्थता को प्राथमिकता दी है, लेकिन गाजा संकट ने पूरी दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं वास्तव में संघर्ष समाधान में प्रभावी भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संगठनों की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाता है।

सरना ने भारत और इजराइल के संबंधों पर भी चर्चा की और बताया कि आजादी के बाद से भारत ने फिलिस्तीन के पक्ष में स्पष्ट समर्थन जताया था, लेकिन समय के साथ भारत और इजराइल के कूटनीतिक संबंध मजबूत हुए हैं। इसके बावजूद, भारत हमेशा से एक संतुलित रुख अपनाने की कोशिश करता रहा है और शांति स्थापना के प्रयासों का समर्थन करता है।

मीडिया की भूमिका पर सवाल

इस सत्र का संचालन वरिष्ठ ब्रिटिश पत्रकार लिंडसे हिल्सम ने किया। उन्होंने इस दौरान मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि वैश्विक मीडिया अक्सर इस तरह के संघर्षों को एकतरफा तरीके से पेश करता है और कई बार आम लोगों की तकलीफों को ठीक से दिखाने में असफल रहता है। उन्होंने यह भी बताया कि मीडिया का नजरिया कई बार राजनीतिक प्रभावों से भी प्रभावित होता है, जिससे संतुलित और निष्पक्ष रिपोर्टिंग मुश्किल हो जाती है।

जावेद अख्तर, सुधा मूर्ति और अन्य प्रमुख हस्तियां हुईं शामिल

इस चर्चा में प्रसिद्ध शायर और लेखक जावेद अख्तर भी मौजूद थे, जिन्होंने युद्ध और हिंसा के खिलाफ अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि किसी भी संघर्ष का सबसे बड़ा नुकसान आम जनता को ही उठाना पड़ता है और साहित्य तथा कला की जिम्मेदारी बनती है कि वे शांति का संदेश फैलाएं।

इसके अलावा, इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति और उनकी पत्नी सुधा मूर्ति भी इस सत्र में शामिल हुए। सुधा मूर्ति ने मानवीय सहायता और शरणार्थियों के मुद्दे पर अपनी राय रखी और बताया कि कैसे संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद दयनीय हो जाती है।

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की जयपुर यात्रा

इस चर्चा के दौरान एक और दिलचस्प पहलू यह रहा कि ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी जयपुर पहुंचे। ऐसा माना जा रहा है कि वे इस सत्र में भाग लेने के लिए नहीं, बल्कि अपनी सास सुधा मूर्ति और पत्नी अक्षता मूर्ति के साथ एक अन्य चर्चा में शामिल होने के लिए आए हैं। अक्षता मूर्ति ब्रिटेन की वर्तमान प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की पत्नी हैं और इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की बेटी हैं।

निष्कर्ष

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आयोजित यह सत्र सिर्फ गाजा संघर्ष तक सीमित नहीं था, बल्कि इसने वैश्विक राजनीति, मानवीय संकट, मीडिया की भूमिका और भारत की विदेश नीति जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी रोशनी डाली। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि यह केवल इजराइल और फिलिस्तीन का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है कि अगर समय रहते शांति और न्याय के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में ऐसे संघर्ष और भी व्यापक रूप ले सकते हैं।