Jaipur Literature Festival: डागरवाणी की सजीव प्रस्तुति: सुरों के आरोह-अवरोह में रची-बसी ध्रुपद साधना

नवल पांडेय।

Jaipur Literature Festival: डागरवाणी की सजीव प्रस्तुति: सुरों के आरोह-अवरोह में रची-बसी ध्रुपद साधना

Ananya soch: Live performance of Dagarvani: Dhrupad Sadhna composed in the ascent and descent of notes

अनन्य सोच। Dhrupad Sadhna performance news: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन, सुबह का वातावरण शास्त्रीय संगीत के अनूठे सुरों से भर उठा, जब प्रसिद्ध ध्रुपद गायक निलोय एहसान ने मंच संभाला. संगीतप्रेमियों के लिए यह सत्र एक आध्यात्मिक अनुभव की तरह था, जिसमें ध्रुपद परंपरा के गहरे रंग झिलमिलाते रहे. निलोय एहसान ने अपने गायन में विशेष रूप से डागरवाणी की शैली को साकार किया, जो डागर घराने की ध्रुपद गायकी की विशिष्ट परंपरा है.

राग ललित में आलाप: सुबह के भावों की गूंज

प्रस्तुति की शुरुआत राग ललित में दो आलापों से हुई. यह राग सुबह के समय गाया जाने वाला गंभीर प्रकृति का राग है, जो बिना पंचम स्वर के और तीव्र मध्यम के उपयोग से विशिष्ट स्वरूप ग्रहण करता है. निलोय एहसान ने आलाप में ध्रुपद की परंपरागत बारीकियों को उकेरा, जिसमें सुरों के आरोह-अवरोह (क्रमशः चढ़ने और उतरने की प्रक्रिया) का गहरा प्रभाव दिखाई दिया. उनके आलाप में न केवल स्वर विस्तार की खूबसूरती थी, बल्कि ध्रुपद शैली की गंभीरता, धैर्य और माधुर्य का समुचित संतुलन भी था. 

बंदिशें: भक्ति और अध्यात्म की गहराइयों में प्रवाह

आलाप के बाद, उन्होंने ध्रुपद शैली में दो बंदिशें प्रस्तुत कीं—

 1. चौताल में “आए रघुवीरां” – यह रचना भगवान राम के स्वागत में थी, जिसमें शब्द और स्वर का गहरा मेल सुनाई दिया. चौताल, जो 12 मात्राओं की ताल है, इसमें उन्होंने स्वरों के जटिल संयोजन और ध्रुपद की विशेष लयकारी को उजागर किया. 

 2. पूर्ण ताल में “उधो कारो कौन को है तुम मीत” – यह रचना भक्तिपरक भावना से ओतप्रोत थी, जिसमें श्रीकृष्ण और उद्धव संवाद की झलक दिखाई दी. पूर्ण ताल, जो 16 मात्राओं की ताल है, इसमें निलोय एहसान ने स्वर, ताल और भाव का संतुलन बखूबी साधा. 

संगत: पखावज और तानपुरे की गूंज

ध्रुपद गायन में संगत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. इस प्रस्तुति में:

 पखावज पर प्रवीण आर्य ने जोरदार संगत दी, जिससे गायन का प्रभाव कई गुना बढ़ गया. पखावज की गहरी ध्वनि ने ध्रुपद की गंभीरता को और उभार दिया. 

 • तानपुरा पर रहमान शेख और गौरव शर्मा ने सधा हुआ समर्थन दिया, जिससे राग के स्वर सटीक और प्रभावशाली बने रहे. तानपुरे के निरंतर नाद ने पूरे वातावरण को आध्यात्मिक स्वरूप प्रदान किया. 

निष्कर्ष: सुरों में रची-बसी डागरवाणी

इस पूरे सत्र में निलोय एहसान की गायकी में डागरवाणी की विशिष्टताएँ स्पष्ट रूप से उभरकर आईं—धीमी गति में आलाप का विस्तार, गहरी मींड, स्वर प्रयोग में संतुलन और भक्ति भाव से ओतप्रोत प्रस्तुति. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के इस सत्र ने न केवल ध्रुपद संगीत प्रेमियों को आनंदित किया, बल्कि शास्त्रीय संगीत की इस अमूल्य धरोहर को समझने का अवसर भी प्रदान किया.