Martyr Birbal Singh Jinagar Sacrifice Day on June 30: शहीद बीरबल सिंह जीनगर बलिदान दिवस 30 जून को: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा'
शहीद बीरबल सिंह जीनगर ने अपने खून से किया मां भारती को तिलक
डॉ.गोमाराम जीनगर
-Martyr Birbal Singh Jinagar Sacrifice Day on June 30
अनन्य सोच। स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में वीर प्रसूता भूमि 'राजस्थान" के अनेक सपूतों ने अपने प्राणों से मां भारती को तिलक किया है। उसी श्रृंखला में श्रीगंगानगर जिले के रायसिंह नगर के बीरबल सिंह जीनगर ने अत्याचारी ब्रितानी हूकुमत से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की बाजी लगा दी। उनके पिता सालगराम जीनगर परम्परागत जूती बनाने और रूई की आढ़त का काम करते थे। बाल्यवस्था से ही शारीरिक रूप से हष्ठपुष्ठ और पहलवानी के बेहद शौकीन बीरबल सिंह सामान्य परिवार में जन्म लेने के बावजूद राष्ट्रीय घटनाक्रम में रूचि रखते थे। यह वह दौर था, जब आजादी के लिए युवा आगे बढ़कर मातृभूमि को अग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए बेचैन थे। आजादी का सपना साकार होने बेहद करीब था। वे पश्चिमी राजस्थान में गठित बीकानेर प्रजा परिषद के सदस्य बने और सामंती अत्याचारों का विरोध करने, नागरिक अधिकारों के लिए होने वाले संघर्ष में हमेशा आगे रहते थे। उनका मानना था कि जनता के संगठित होने से ही राज्य की दमनकारी और शोषणकारी शक्तियों से मुकाबला किया जा सकता है। थोड़े ही समय में अपनी लगनशीलता और कर्तव्य का भाव होने से प्रजा परिषद के कर्मठ कार्यकर्ता बन गए। 30 जून और एक जुलाई, 1946 को रायसिंह नगर में बीकानेर प्रजा परिषद का प्रथम राजनीतिक सम्मेलन आयोजित हुआ। सम्मेलन के अध्यक्ष बीकानेर षडयंत्र केस के प्रमुख सेनानी सत्यनारायण सराफ थे। श्रीगंगानगर और आस-पास के हिस्सों से सैकड़ों की संख्या में लोग हाथों में तिरंगा लिए सम्मेलन स्थल पर पहुंच रहे थे। इसी दौरान अत्याचार करने पर आमदा पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर रेस्ट हाउस में ले गई। सम्मेलन स्थल पर यह खबर आग की तरह फैल गई कि कुछ आजादी के दीवानों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। भीड़ के रेस्ट हाउस की तरफ जाने पर पुलिस ने भीड़ पर लाठीचार्ज कर दिया। जिनके हाथों में तिरंगे थे, उन्हेंबूटों से कुचला गया। रेस्ट हाउस के बाहर बैठे सरकारी अधिकारी बढ़ती हुई भीड़ को देखकर घबरा गए और अन्दर की तरफ भागने लगे। हजारों की संख्या में उमड़ रही भीड़ का नेतृत्व करते बीरबल सिंह जीनगर अपनी मूछों पर ताव दिए आगे बढ़ते ही चले जा रहे थे। भीड़ के जुलूस को देखते हुए सरकारी अधिकारियों ने घबराकर पास के फौजी कैम्प से कुछ सशस्त्र सैनिक सुरक्षा की दृष्टि से बुला लिए गए। सैनिकों ने बिना चेतावनी देते हुए जलियावाला बाग हत्याकाण्ड की तरह दनादन गालियां चला दी। बीरबल सिंह गोलियों की चिंता किए बिना ही आगे बढ़ते गए। 'भारत माता की जय' 'इंकलाब जिन्दाबाद' के नारों से उन्होंने आकाश को गूंजा दिया। दूश्य देखने योग्य था-एक तरफ आजादी के निहत्थे वीर थे तो दूसरी तरफ सामंती सैनिक निहत्थे भारत माता के बेटों को गोलियों से छलनी करने के लिए मोर्चाबंदी करने लगे थे। तीन गोलियां बीरबल सिंह की जांघ में लगी, फिर भी वे रूके नहीं आगे बढ़ते गए। 'वन्देमातरम', 'झण्ड़ा ऊंचा रहे हमारा' का जयघोष करते रहे। रक्त शरीर से गिरने लगा। कुछ लोगों ने उन्हें अस्पताल भेजने की व्यवस्था करने की सोची, लेकिन पुलिस और सेना के जवानों ने पांड़ाल को चारों ओर से घेर लिया। भीड़ ने उन्हें पांड़ाल के नीचे चारपाई पर लिटा दिया और चारपाई के नीचे एक तसला रख दिया गया, रक्त शरीर से निकलकर तसले को भरने लगा। शरीर की एक-एक बूंद निकलने लगी , इससे शरीर कमजोर होकर शिथिल होने लगा था। चेहरे पर सफेदी उभरने लगी थी, लेकिन मुखमण्डल पर अभी भी तेजस्वी आभा थी। मौत के आगोश में भी रह-रह कर 'तिरंगा ऊंचा रहे हमारा' का जयघोष कर रहे थे। आखिर में उनके उनके शरीर ने प्राण त्याग दिए। दो जुलाई, 1946 को बीरबल सिंह की शव यात्रा निकली तो उसका नेतृत्व आजाद हिन्द फोज के कर्नल अमरसिंह ने हाथों में तिरंगा उठाए किया। हजारों गणमान्य लोग कंधा देने के लिए होड़ में देखे गए। उनकी शहादत का जनता में अब ऐसा रंग चढ़ा कि वे तिरंगे के बिना कोई जुलूस या कार्यक्रम करना ही नहीं चाहते थे। रायसिंह नगर के रेस्ट हाउस के पास जहां उनको गोली लगी थी, उसी पावन स्थल पर जनता ने उनकी संगमरमर की मूर्ति स्थापित की, जहां प्रतिवर्ष 30 जून और एक जुलाई को मेला लगता है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 अप्रैल, 1983 को उनकी मूर्ति का अनावरण कर श्रद्धासुमन अर्पित किए थे।
डिस्क्लेमर(note) - लेखक के खुद के शब्द है.