- युवा रंगकर्मियों ने राम के जीवन प्रसंगों को मंच पर किया प्रस्तुत

हे री सखी मंगल गाओ री!...जेकेके में हुई नाट्य उत्सव की शुरुआत

- युवा रंगकर्मियों ने राम के जीवन प्रसंगों को मंच पर किया प्रस्तुत
जयपुरः युवा कलाकारों से आबाद रंगमंच, अनूठा लाइट संयोजन, मधुर संगीत की जाजम, सोलह शृंगार के साथ शास्त्रीय व लोक नृत्य की छठा बिखेरती नृत्यांगनाएं, बड़ी संख्या में दर्शक। जवाहर कला केंद्र के मध्यवर्ती में शनिवार को कुछ ऐसा ही दृश्य दिखा। इसी के साथ केंद्र की ओर से आयोजित 5 दिवसीय दशहरा नाट्य उत्सव का शुभारंभ हुआ। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन प्रसंगों को देखकर प्रदेशवासियों का उत्साह देखते ही बनता था। 
रावण ने इन्द्र-कुबेर को किया परास्त 
वरिष्ठ नाट्य निर्देशक अशोक राही के निर्देशन में बड़े ही मनमोहक तरीके से श्रीरामचरित नाट्य का मंचन शुरू हुआ। मधुर चौपाइयों की गूंज के बीच दशानन रावण, देवराज इन्द्र से युद्ध करने पहुॅंचे। रक्ष संस्कृति के विस्तार की कामना के साथ दशकंधर ने इन्द्र को परास्त किया। इसके बाद राक्षसराज ने लंका की ओर कूच की। भरतनाट्यम नृत्य की पेशकश के साथ राजमहल के वैभव को दर्शाया गया। तभी रावण, लंका हथियाने के लिए कुबेर को ललकारते हैं, कुबेर के संवाद सांसारिक विविधता का महत्व बताते हैं। रावण-मन्दोदरी के विवाह के दौरान दक्षिण के दरबार में थार की संस्कृति को जीवंत करने का प्रयोग किया गया। केसरिया बालम पर चरी नृत्य ने दर्शकों को रिझाया। 
‘इंद्रपुरी सी अयोध्या में ठुमक-ठुमक चले रामचंद्र’ 
‘‘वो इंद्रपुरी सी नगरी थी, जो बसी हुई सरयू तट पर, दशरथ सम्राट अयोध्या के देवों में प्रिय ऐसे नरवर।।’ गीत के साथ दशरथ दरबार का दृश्य साकार होता है। पुत्रेष्टि यज्ञ का 
सुझाव देकर ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ की पुत्र प्राप्ति की चिंता का निवारण करते हैं। इस बीच राम जन्म का दृश्य देखकर सभी भाव-विभोर हो उठते हैं। ‘ठुमक-ठुमक चले रामचंद्र बाजत पैंजनियाॅं’ गीत पर कथक की प्रस्तुति के साथ सभी आनंदित होते हैं।  
राजा दशरथ की धड़कन बढ़ी...
दरबार में पहुॅंचे ऋषि विश्वामित्र के वचन राजा दशरथ की धड़कने बढ़ा देते हैं। पुत्र मोह को त्याग वे राम-लक्ष्मण को धर्मरक्षार्थ भेजते हैं। ताड़का, मारीच और सुबाहु जैसे राक्षसों का वध कर राम अधर्मनाशी अभियान का आगाज करते हैं। मिथिला दरबार में कथक की लालित्यपूर्ण प्रस्तुति पेश की गयी। 

‘शिव धनुष भंग प्रभु करके, ले आए सीता वर के’
स्वयंवर के दौरान विभिन्न राजाओं के किरदारों के जरिए विशिष्ट हास्य संयोजन किया गया। शिव धनुष भंग कर राम सिया को अपना बना लेते हैं। ऋषि परशुराम और लक्ष्मण के संवाद दरबार की गर्मी बढ़ा देते हैं। राम की शालीनता परशुराम का दिल जीत लेती है। हे री सखी मंगल गाओ री...गीत पर नृत्य के साथ सभी राम-सिया विवाह का उत्सव मनाते हैं। 
जब तक है कैलाश पर शिव भूतनाथ का वास...
‘‘ जब तक है कैलाश पर शिव भूतनाथ का वास, जब तक है श्री लक्ष्मी और विष्णु जी का साथ, जब तक है आकाश में चंद्र सूर्य की चाल, तब तक रहे इस धरा पर सियाराम का साथ।" परशुराम के इस संवाद के साथ पहले दिन के नाट्य का समापन हुआ।