Bhangarh Ke Bhanu: जेकेके में नाटक 'भानगढ़ के भानु' का मंचन
Bhangarh Ke Bhanu: 400 साल की दुश्मनी भुलाकर भानु ने किया शत्रु को माफ
Ananya soch: Bhangarh Ke Bhanu
अनन्य सोच, जयपुर। Bhangarh Ke Bhanu: जवाहर कला केन्द्र (Jawahar Kala Kendra) के अक्टूबर उमंग: लोक संस्कृति के संग थीम पर कला संसार मधुरम के अंतर्गत नाटक 'भानगढ़ का भानु' (Bhangarh Ke Bhanu) का मंचन हुआ. विनोद सोनी द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक में पात्रों ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया.
यह कहानी शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले भानु दादा की जिनकी 400 साल से आत्मा भटक रही है. अपने शत्रु वंश से बदला लेने को. भानु दादा योद्धा के साथ-साथ सुरीली आवाज के धनी भी थे, वे किसी का कुछ नहीं बिगाड़ते पर लोगों को उनकी हवेली के पास रात को आने में डर लगता है. इसी हवेली में रहता है उनका वंशज विक्रम सिंह, जिसकी शक्ल हूबहू भानु दादा से मिलती है. सिंह भी सरल स्वभाव व्यक्ति है जो कर्ज के बोझ तले दबा है और हवेली बेचने की जद्दोजहद में उलझा है. चंदानी सेठ को हवेली बेचने के लिए वह स्वांग रचता है शाही ठाठ—बाठ का. चंदानी जो अपने व्यावसायिक प्रतिद्धंदी होल्कर को नीचा दिखाने को यह पुरानी हवेली खरीदना चाहता है. चंदानी और होल्कर दोनों को ही पुरानी हवेलियों का शौक है. परिवार संग हवेली में आया चंदानी सौदा तय कर लौट जाता है. आधी रात होती है और समय होता है भानु दादा के आने का. इसी बीच गाड़ी खराब होने के चलते चंदानी परिवार फिर हवेली में आ पहुंचता है. उनकी मुलाकात भानु दादा से होती है. दो दिन का समय देकर चंदानी फिर लौट जाता है. दो दिन बाद होल्कर और चंदानी दोनों एक साथ हवेली में आ धमकते हैं. बाद में खुलासा होता है कि होल्कर उसी वंश से आता है जिससे भानु दादा बदला लेना चाहता है. सामने आने के बाद भी भानु दादा होल्कर को माफ कर देते है और हमेशा के लिए अनंत में लीन हो जाते है. इसके बाद सौदा हो जाता है भानगढ़ के भानु की हवेली का. राजेंद्र पायल, किरण राठौड़, संदीप लेले, विनोद सोनी, विपुल, प्रकाश दायमा, पल्लवी, सक्षम, लक्षकार ने मंच पर विभिन्न किरदार निभाए.