Jawahar Kala Kendra: दुल्हन के पैर बने मुसीबत, दिल्ली से लाने पड़े गोरधन के जूते!
Ananya soch: Jawahar Kala Kendra
अनन्य सोच। Jawahar Kala Kendra: जवाहर कला केन्द्र की आयोजित युवा नाट्य समारोह की शुक्रवार से शुरुआत हुई. पहले दिन देशराज गुर्जर के निर्देशन में 'गोरधन के जूते' नाटक का मंचन हुआ. समारोह में युवा नाट्य निर्देशक अनुदान योजना 2023-24 के अंतर्गत चयनित तीन निर्देशकों के नाटकों का मंचन किया जाएगा. 'गोरधन के जूते' नाटक का नाम एक कौतूहल पैदा करता है, लेकिन नाटक की कहानी दर्शकों को हास्य-करुण रस, रिश्तों की मिठास और लोक जीवन की सरलता से साक्षात्कार करवाती है.
नाटक का आधार दो दोस्तों केसर जमींदार और सरपंच बंसी के स्वर्गीय पिता द्वारा किया गया पोते-पोती के विवाह का वादा है. कहानी को मोड़ देने के लिए निर्देशक ने नायिका के बड़े पैर की बात को केन्द्र बनाया और दर्शाया कि विवाह के घर में कैसे छोटी-छोटी बातें मुश्किलें खड़ी कर देती है, समाज का रवैया राई का पहाड़ बनाता है, इसकी बलि चढ़ते हैं रिश्ते और प्रेम. ऐसी समस्याओं का एक ही समाधान नजर आता है, वो है आपसी समझदारी। नाटक एक शादी के चलचित्र की तरह है. इसके पात्र हर शादी के घर में आपको दिख जाएंगे। लोक गीत, बोली, पहनावे और प्रोप्स को इतनी सादगी से नाटक में उपयोग लिया गया है कि दर्शक नाटक को देखते नहीं जीने लगते हैं.
छोरी का सपना न देख...
रंगायन अब सभागार नहीं शादी का घर बन चुका है. बंसी के घर में मथरा की शादी की तैयारियां चल रही है। महिलाएं मंगल गीत गा रही है. इसी बीच दीपू का पिता केसर मथरा के पैर की नाप लेने आता है. मथरा जो पैर का पंजा बड़ा होने के कारण अब तक अपने पिता की जूतियों को पीछे से मोड़कर पहना करती थी, उसके नाप की चप्पल ढूंढना बंसी के लिए भारी पड़ जाता है। यह सरल सी बात मथरा के लिए समस्या बन जाती है। हीरामल महाराज की ज्योत करवाई जाती है. 'बंसी तू छोरी का बड़ा पैरा न देख रियो छै, इका बड़ा-बड़ा सपना न देख सारी दिक्कत दूर हो जावे ली, ईश्वर एक बार जीन जसो बणा दिया वो बणा दिया.' हीरामल महाराज की वाणी बड़ा संदेश देती है लेकिन लोक लाज की रस्सी बंसी और मथरा के गले में फंदे की तरह जकड़ती जाती है. बंसी का भांजा जो शहर से आता है वो दिल्ली से जॉर्डन के जूते लाकर मथरा को पहनाने का सुझाव देता है। विदेशी ब्रांड जॉर्डन गांव में गोरधन के नाम से मशहूर हो जाता है। बंसी और केसर दिल्ली जूते लेने के लिए जाते हैं. शहर में उनके बीच तकरार हो जाती है जिससे शादी रुक जाती है। केसर के काका की सूझबूझ से बात बन जाती है। दीपू बारात लेकर आता है तो मथरा घर छोड़कर जाने लगती है। अंत में वह अपने पिता को बताती है, 'मेरा नेशनल लेवल बास्केटबॉल टूर्नामेंट में सिलेक्शन हो गया है, मैं अभी शादी करना नहीं खेलना चाहती हूं, मैं जीतूंगी तो तुम्हारा नाम ही रोशन करुंगी।' दीपू भी मथरा का साथ देता है और दोनों चले जाते है.
प्रदीप बंजारा ने केसर, आरिफ खान ने बंसी, प्रतीक्षा सक्सेना ने मथरा तो पंकज चौहान ने दीपू का किरदार निभाया. अन्य कलाकारों में सचिन सौखरिया, महिपाल राजावत, मधु देवासी, सुरभि दायमा, भानुप्रिया सैनी, भानुश वर्मा, मनन वर्मा, नितेश वर्मा, जेडी, कृष्ण पाल सिंह नरुका, शुभम सोयल, मनीष गोरा, जितेंद्र देवनानी, तालिब हुसैन, जया शर्मा, विकास शर्मा, वेद प्रकाश, प्रांजल गुर्जर, हिमाली भाटिया, दीपक सैनी, कशिश कोलेकर, शालिनी कुमारी शामिल है. शुभम तिवारी, साहिल आहूजा, अरबाज हुसैन ने प्रकाश संयोजन और अनिमेष आचार्य ने संगीत संयोजन संभाला.