मंदिर में नमाज़ी हो मस्जिद में पुजारी , हो कैसे मगर यह सोच रहा हूँ 

नवल पांडे।

मंदिर में नमाज़ी हो मस्जिद में पुजारी , हो कैसे मगर यह सोच रहा हूँ 

Ananya soch

अनन्य सोच। गुलमोहर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान द्वारा आज सुप्रसिद्ध गीतकार स्वर्गीय चंद्रकुमार सुकुमार की स्मृति में चेंबर भवन में कवि सम्मेलन आयोजित किया गया. समारोह की अध्यक्षता करते हुए भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ के के पाठक ने कहा कि साहित्य केवल मनोरंजन के लिए नहीं होता बल्कि हमारे विचार , हमारी सोच और हमारे मन के दायरों को विस्तृत करने का काम भी साहित्य करता है। साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं होता बल्कि अनेक बार साहित्य समाज को दर्पण दिखाने का भी काम करता है।

उनका कहना था कि साहित्य केवल सूक्ति भर नहीं है । साहित्य वो डाकिया है, जो अपनी  चिट्ठी पहुंचाना भी जानता है और बांचना भी जानता है। 
समारोह में कवियों व शायरों ने काव्य में प्रयुक्त हास्य रस से लेकर वीर रस, शृंगार रस व प्रेम मौहब्बत को रचनायें सुनाई। वरिष्ठ कवि बनज कुमार बनज ने “रख रहे हैं जेब में अंधेरे हम सम्भाल कर , रास्तों में चल रहे हैं रोशनी को टाल कर , सोचने के द्वार भी सिटकनियों से बंद है , प्यार तक को पी रहा है आदमी उबालकर” तथा “जिस शहर की धूप उदास लगे और छाया तक में क्रंदन हो उस शहर का फिर गीतों में कैसे अभिनंदन हो “ गीत सुनाए।

फ़तेहपुर , उतरप्रदेश से आये शायर शिवशरण बन्धु हाथगामी ने “रहते -रहते घर में घर हो जाते हैं, चलते-चलते लोग सफ़र हो जाते हैं, राजनीति में कुछ  लोगों की फ़ितरत है , जिधर बनी सरकार उधर हो जाते हैं” तथा  “जुगनू से हमने काम चला तो लिया मगर  अफ़सोस है हाथ से सूरज निकल गया , हम ऐसी सरज़मीं के लोग है कि जिधर बंजर है दरिया का रुख़ मोड़ देते हैं “ और “हमीं हैं जो हमेशा अंधविश्वासों से लड़ते हैं ,उनसे पूछो कितनी मुश्किल यार उठानी पड़ती है “ आदि गीत पेश किए। शायर अफ़ज़ल मंगलोरी ने “तू भी आदमी मैं भी आदमी तो ये नफ़रतों की बात क्यों ,ना तेरा खुदा कोई और है ना मेरा ख़ुदा कोई और” , “ कभी  रूठ जाना कभी मान जाना, वो नख़रों पे नख़रे किए जा रहे हैं”, “ ना क्यों आज ख़ुद शायरी भी लजाये ,ग़ज़ल बन कर वो आज रूबरू आये “ , “हुआ बंद चाहत का जो डाकखाना ,गया प्रेम चिट्ठी का लिखना लिखाना ,मौहब्बत की गलियों से मायूस होकर तेरी याद के डाकिये जा रहे हैं “ तथा “जब से उनका सहारा मिला है मुझे मेरा जीवन बहुत ही सुखी हो गया ,गीत क्या है और क्या है ग़ज़ल इन विधाओं से तो मैं परिचित न था “ गीत सुनाकर प्रशंसा बटोरी। कानपुर से आए शायर अंसार कंबरी ने “क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिए, शर्त ये है कि तुम कुछ कहो तो सही, पढ़ सको में मेरे मन को भाषा पढ़ो, मौन रहने से अच्छा है झुंझला पड़ो, मैं भी दशरथ सा वरदान दूंगा तुम्हें, युद्ध में कैकेई सी  रहो तो सही। “शायर हूँ कोई ताज़ा ग़ज़ल सोच रहा हूँ
फुटपाथ पे बैठा महल सोच रहा हूँ , मंदिर में नमाज़ी हो तो मस्जिद में पुजारी , हो कैसे यह मग़रसोच रहा हूँ “, तू मान या न मान घड़ी दो घड़ी का है , यह जिस्म मकान घड़ी दो घड़ी का है” , “जहां पर आपका आभास होगा वहाँ पतझड़ भी मधुमास होगा ,यूँही नहीं होता लहरों में कंपन ,कोई प्यासा नदी के पास होगा , मेरे घर मंथरा है केकई है ,मुझे भी एक दिन वनवास होगा ,अगर होंगी कही वैभव की बातें  जो हम लड़ते रहे भाषा को लेकर ,तो न कोई ग़ालिब न तुलसीदास होगा “, “जब तुम्हारी याद आती है मन बहुत बेचैन होता है  जब से कोमल कोंपलों से सज रहे होते हैं तरुवर, मन बहुत बेचैन होता है “ तथा “हम से मत पूछिए किधर जाएँगे ,थक गए हैं बहुत घर जाएँगे,शीश महलों में न ले जाओ मुझे, मौत के डरसे नाहक परेशान है ,आप ज़िंदा कहाँ है जो मर जाएँगे” गीत प्रस्तुत किए।
जयपुर से कवि विनय शर्मा, वरुण चतुर्वेदी, कौशलेन्द्र शर्मा, शंकर शिखर व योगिता शर्मा ज़ीनत ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया । इस अवसर पर हेल्पलाइन हॉस्पिटल के निदेशक डॉ आई बी ख़ान, जी हॉस्पिटल के निदेशक डॉ मुकेश शर्मा, अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जसबीर सिंह , व्यवसायी व सम्माजसेवी योगेश मिश्रा आदि भी उपस्थित रहे.