मेरे पोस्टर के साथ पिताजी का फोटो क्लिक करना सबसे बड़ी कमाई

बॉलीवुड में अलग रोल्स की वजह से पहचान बनाने वाले एक्टर विनीत कुमार  सिंह ने जयपुर में शेयर किए अनुभव।

मेरे पोस्टर के साथ पिताजी का फोटो क्लिक करना सबसे बड़ी कमाई

अविनाश पाराशर


जयपुर।
मैं डॉक्टर हूं, लेकिन 14-15 साल की उम्र में ही पता चल गया था कि एक्टिंग ही मेरी जिंदगी है। क्योंकि हम तीनों भाई-बहन घर पर ही अपना ड्रामा किया करते थे और उसमें कभी थकान नहीं हुई। कई घंटों तक एक्टिंग करने के बाद भी हम फ्रेश ही रहते थे। वहीं दूसरे काम में ऐसी एनर्जी नहीं होती थी। ये सफर है बॉलीवुड में अपनी एक्टिंग के बल पर पहचान बना चुके गैंग्स ऑफ वासेपुर और मुक्काबाज़ जैसी मूवीज में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा चुके एक्टर विनीत कुमार सिंह का। वे जयपुर में अपनी वेब सीरीज की शूटिंग कर रहे हैं। 

बेबाकी से मांग लिया फेजल का रोल:
लंबे समय यहां-वहां छोटे रोल करने के बाद ...वासेपुर मिली तो मैं सीधे डायरेक्टर के पास चला गया और बेबाकी से फेजल का रोल मांग लिया। ये सुनकर वे अचंभित हो गए और प्यार से मुझे समझाया और कहा कि हमेशा ऐसे ही ऑनेस्ट रहना और दानिश के रोल पर फोकस करने को कहा। इसके बाद से पहचान मिली और फिर मुक्काबाज़ में लीड रोल में रहा।

सीनियर्स के साथ मुंबई में रहता था:
मैं सीनियर्स के साथ हॉस्पिटल में प्रेक्टिस करते हुए पढ़ाई करता था। उन्होंने ने ही मुझे मुंबई में रखा, नहीं तो मुझे नागपुर में रहना पड़ता। वहीं मैं अपना स्ट्रगल भी करता रहा और प्रेक्टिस भी। 
पहली मूवी फ्लोप साबित हुई:
बात की जाए शुरुआत की तो 1999-2000 में मुंबई एक रीयलिटी शो के लिए आया था और वहां ऑडिशन के दौरान यूं ही एक नाटक की पटकथा लिखकर ऑडिशन दे दिया और सलेक्ट हो गया। इसके बाद उस शो के फाइनल तक पहुंच गया। वहीं से मुझे एक मूवी मिली, लेकिन वह फ्लोप साबित हुई। इसके बाद फिर से जमीं पर आ गया और वर्षों तक स्ट्रगल करता रहा। ऐसे में जो रोल मिले वह करता चला गया। इस दौरान डायरेक्शन भी किया, लेकिन मेरा ड्रीम एक्टिंग थी।

पिता खड़े थे पोस्टर के सामने:
मेरे अभी तक के जीवन की कमाई मेरे पिता की वह फोटा है, जिसमें वे बनारस में मेरे लगे एक पोस्टर के नीचे आशीर्वाद की मुद्रा में खड़े थे। वह फोटो बहन ने मुझे सेंड की, जिसे देखकर मैं भावुक हो गया। क्योंकि पिता नहीं चाहते थे, कि मैं इस लाइन में आउ।

नेपोटिज्म पूरी तरह से गलत नहीं:
मैं स्वयं आउटसाइडर हूं, लेकिन नेपोटिज्म को पूरी तरह से गलत नहीं मानता हूं। यदि किसी के पास अनुभव है तो अपने बच्चों को देना ही चाहेगा, इसमें गलत नहीं है।लेकिन जो काबिल हैं उनको मौक़ा और जगह मिलनी चाहिये चाहे वो कहीं का हो।