रंगरीत महोत्सव में छाया पारम्परिक चित्रों का सौंदर्य

Ananya soch: Rangrit Mahotsav
अनन्य सोच। Rangrit Mahotsav news: जवाहर कला केन्द्र की अलंकार कला दीर्घा में चल रहे दस दिवसीय "रंगरीत कला महोत्सव" के तहत देश के नामी कलाकारों की तैयार चित्र कृतियों की एक विशाल प्रदर्शनी सोमवार को अलंकार दीर्घा में शुरु हुईं. केंद्र की अतिरिक्त महानिदेशक अलका मीणा और वरिष्ठ कलाकारों ने इसका उद्घाटन किया.
उद्घाटन के बाद अलका मीणा ने कहा, यह कला महोत्सव बेहद खास रहा। वरिष्ठ कलाकारों की चित्रकारी, संगीतमय माहौल और बारीकी से काम करने की उनकी लगन ने युवा कलाकारों को प्रेरित किया है. बीते 10 दिनों में इन कलाकारों ने पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ ये चित्र तैयार किए हैं. जाहिर है, छोटे बच्चों से लेकर वरिष्ठ जनों तक सभी को यहां आकर इन कलाकृतियों को जरूर देखना चाहिए. साथ ही जिस उद्देश्य के साथ इस कला महोत्सव की शुरुआत की गई थी वह पूरा होता दिखाई दे रहा है.
इस मौके पर वैदिक चित्रकार रामू रामदेव ने कहा की पारम्परिक चित्रकलाओं को औपचारिक शिक्षा पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए. जिससे यह पाठ्यक्रम रोजगार उन्मुख हो और राजस्थान की पारम्परिक चित्रकलाओं पर आधारित डिज़ाइन, फैशन, पर्यटन, संग्रहालय प्रबंधन, कला विपणन आदि से जुड़े कौशल भी विकसित हो सकें. विद्यालयों और महाविद्यालयों में इन कलाओं का शैक्षणिक अध्ययन कराया जाए, ताकि विद्यार्थियों में इनके प्रति रुचि जागृत हो और वे न केवल इसे कला के रूप में समझें बल्कि इसे सम्भावित करियर विकल्प के रूप में भी देखें. यदि पारम्परिक चित्रकला से जुड़े युवाओं को स्वरोजगार एवं उद्यमिता के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ, तो न केवल इस अमूल्य धरोहर का संरक्षण होगा, बल्कि ग्रामीण एवं शहरी युवाओं को भी सम्मानजनक आजीविका मिल सकेगी.
पारंपरिक वसली पेपर पर सूर्य पुत्र अश्विनी कुमार के चित्र को उकेरा
चित्रकार समंदर सिंह खंगारोत ने पारंपरिक वसली पेपर पर सूर्य पुत्र अश्विनी कुमार के चित्र की रचना पर उकेरा. डेढ़ गुणा दो फुट आकार की इस पेन्टिंग को खंगारोत ने जापानी टैम्परा कलर से बनाया है.
पौराणिक कथाओं की चित्रात्मक महागाथा
यहां प्रदर्शित गोविन्द रामदेव की पेंटिंग्स में दुर्गा सप्तशती के विविध प्रसंगों का जीवन्त चित्रण किया गया है. इन कृतियों में महिषासुर और रक्तबीज वध, बगलामुखी माता, अर्धनारीश्वर, मां काली, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां कालरात्रि जैसे प्रसंग पारंपरिक शैली में जीवंत हो उठे हैं. रंगों और रेखाओं का ऐसा संयोजन दुर्लभ है, जो पौराणिकता को आधुनिक दर्शक से जोड़ता है.
ढूंढाड़ी शैली में जयपुर की खुशबू
रामू रामदेव ने अपनी ढाई दर्जन से अधिक पेंटिंग्स में पारंपरिक शैली को जयपुर की ढूंढाड़ी शैली की सुगंध से सराबोर किया है. गणपति के बाल स्वरूप की उनकी कृति विशेष आकर्षण का केंद्र है, जिसमें बाल गणेश शिव-पार्वती के संग अठखेलियाँ करते नजर आते हैं. एक अन्य अनूठी पेंटिंग में पंचमहाभूत — अग्नि, आकाश, जल, वायु और पृथ्वी — भगवान शिव और माता पार्वती के समक्ष सृष्टि निर्माण की आज्ञा लेते दिखाए गए हैं। इस कृति में पंचमहाभूतों की आकृतियाँ उनकी प्रकृति के अनुरूप इतनी सूक्ष्मता से उकेरी गई हैं कि अग्नि की लपटें, जल की धाराएं, आकाश की नीलिमा, वायु की गतिशील रेखाएँ और पृथ्वी का प्राकृतिक सौंदर्य दर्शक को सम्मोहित कर लेता है.
परंपरागत शैली में बंशी बजैया श्रीकृष्ण के अक्स बनाया
बीकानेर से महावीर स्वामी ने महोत्सव के दौरान बीकानेर की परंपरागत शैली में बंशी बजैया श्रीकृष्ण के अक्स की रचना को अपनी कलाकृति में उकेरा। इस कलाकृति को आर्ट प्रेमियों ने जमकर सराहना की.
सुमित्रा अहलावत के कैनवास पर नजर आया राजस्थानी घूमर
दिल्ली से आई वरिष्ठ चित्रकार सुमित्रा अहलावत ने महोत्सव के दौरान राजस्थानी घूमर को अपने कैनवास पर उतारा. सुमित्रा अहलावत ने बताया कि वो जब भी राजस्थान आती हैं उन्हें यहां की धरती के रंग प्रभावित करते हैं। इस बार मैंने कैनवास पर एक्रेलिक रंग के माध्यम से राजस्थानी नृत्य घूमर को अपने सृजन का माध्यम बनाया, जिसमें कसूमल रंग का प्रमुखता से प्रयोग किया गया है.
यह प्रदर्शनी केवल चित्रों का प्रदर्शन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और कला का एक जीवंत संगम है. यह अलंकार दीर्घा में 18 मई तक आमजन के लिए निःशुल्क खुली रहेगी.