जब पुण्य फलता है तो हमें सब अपने-आप प्राप्त हो जाता है
Ananya soch
अनन्य सोच। संत शिरोमणि आचार्य 108 विद्यासागर महामुनिराज के प्रभावक शिष्य अर्हम योग प्रणेता मुनि प्रणम्य सागर महाराज के मुखारबिन्द से कवि भूधरदास द्वारा विरचित पार्श्वनाथ पुराण का वाचन किया गया। इस दौरान जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के चार भव पूर्व के वृतांत में चक्रवर्ती की महिमा बताते हुए कहा, कि उसके पास चक्र-दण्ड-चम-चूडामणी आदि 7 निर्जीव व 7 सजीव रत्न होते हैं। यह सब पूर्व भव में संचित पुण्य के कारण होता है।
जब पुण्य फलता है तो हमें सब अपने-आप प्राप्त हो जाता है और वह स्थिर रहता है। लौकिक संसार में जिन्हें हम सुख कहते हैं वह क्षणिक सुख है उसमें स्थिरता नहीं होती है। मुनिश्री ने कहा, कि हमें रीझने की जरुरत नहीं अपितु सीझने की जरुरत होनी चाहिए। जो आपको रिझाऐ उसके पास जाने की जगह जो आपको सिझाए या उसका ज्ञान दे, उनकी शरण में जाना चाहिए। अहिंसा-संयम- तप जिनके पास है, उन्हें देवता नमस्कार करते हैं।
सजीव पात्रों ने अभिनय कर मन मोहा:
मनीष-रचना चौधरी व संगीतकार नरेन्द्र जैन के निर्देशन में आचार्य विद्यासागर महामुनिराज की संगीतमय पूजा की गई। आचार्य समय सागर महाराज व मुनि प्रणम्य सागर महाराज का अर्घ्य चढ़ाया गया।
समाजश्रेष्ठी राज कुमार-विमला देवी, ऋषभ, राकेश, जिनेन्द्र, अक्षत, पुलक, सलौनी, नमो, परी, प्रशान्त बाकलीवाल परिवार द्वारा संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महामुनिराज व आचार्य समय सागर महाराज के चित्र का जयकारों के बीच अनावरण किया गया। मुनिश्री प्रणम्य सागर महाराज के पाद पक्षालन व शास्र भेंट करने का पुण्यार्जन किया। अध्यक्ष सुशील पहाड़िया व मंत्री राजेन्द्र सेठी ने बताया, कि इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में रामगढ़ अलवर के पूर्व विधायक ज्ञान देव आहूजा व सिंगोली नगरपालिका अध्यक्ष सुरेश जैन, दिगम्बर जैन महासमिति के राजस्थान अंचल अध्यक्ष सेवानिवृत्त आई पी एस अनिल जैन, नन्द किशोर पहाड़िया, उत्तम चन्द पाटनी, शीतल कटारिया आदि ने ने मुनिश्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया।