पुराण विश्व के ज्ञानकोश है-बिबेक देबरॉय

पुराण विश्व के ज्ञानकोश है-बिबेक देबरॉय

नवल शर्मा

अनन्य सोच, जयपुर। जे एल एफ़ में "ब्रह्मपुराण" सेशन में जाने माने पौराणिक लेखक बिबेक देबरॉय ने इतिहासकार पुष्पेश पन्त के साथ चर्चा में बताया कि हमारे पुराण ज्ञान का विश्वकोश हैं। 18 महापुराणों में विश्व का समूचा ज्ञान समाहित है। बिबेक देबरॉय महाभारत, वाल्मीकि रामायण व भागवत का अंग्रेजी में अनुवाद कर चुके हैं। इस समय वे 18 महापुराणों के अनुवाद में संलग्न है जिसमें से छह पुराणों का अनुवाद पूर्ण हो चुका है। पुराणों के रचनाकाल का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि कुछ लोग इन्हें महाभारत के पूर्व की रचना मानते हैं जबकि कुछ इसे बाद की बताते हैं। महाभारत की रचना को तीन हज़ार साल हो चुके हैं। पुराणों के रचयिता भी कृष्ण द्वेपायन व्यास ही हैं जिन्होंने महाभारत लिखा है। उन्होनें बताया कि  ब्रह्म पुराण में साकार ब्रह्म की उपासना का विधान है। इसमें 'ब्रह्म' को सर्वोपरि माना गया है। इसीलिए इस पुराण को प्रथम स्थान दिया गया है।  इसमें दस सहस्र श्लोक हैं। सम्पूर्ण 'ब्रह्म पुराण' में 246 अध्याय हैं।  इस पुराण की कथा लोमहर्षण सूत जी एवं शौनक ऋषियों के संवाद के माध्यम से वर्णित है। यही कथा प्राचीन काल में ब्रह्मा ने दक्ष प्रजापति को सुनायी थी। इसमें अनेक तीर्थों- भद्र तीर्थ, पतत्रि तीर्थ, विप्र तीर्थ, भानु तीर्थ, भिल्ल तीर्थ आदि का विस्तार से वर्णन मिलता है। इसमें सृष्टि के आरंभ में हुए महाप्रलय के विषय में भी बताया गया है। इसमें विस्तार से सृष्टि जन्म, जल की उत्पत्ति, ब्रह्म का आविर्भाव तथा देव-दानव जन्मों के विषय में बताया गया है। इसमें मोक्ष-धर्म, ब्रह्म का स्वरूप और योग-विधि की भी विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें सूर्य और चन्द्र वंशों के विषय में भी वर्णन किया गया है। इसमें ययाति या पुरु के वंश–वर्णन से मानव-विकास के विषय में बताकर राम-कृष्ण-कथा भी वर्णित है। इसमें राम और कृष्ण के कथा के माध्यम से अवतार के सम्बन्ध में वर्णन करते हुए अवतारवाद की प्रतिष्ठा की गई है। इसमें सांख्य और योग दर्शन की व्याख्या करके मोक्ष–प्राप्ति के उपायों पर प्रकाश डाला गया है। यह वैष्णव पुराणों में प्रमुख माना गया है। भगवान् श्रीकृष्ण की ब्रह्मरूप में विस्तृत व्याख्या होने के कारण यह ब्रह्मपुराण के नाम से प्रसिद्ध है।

पुराणों की परम्परा के अनुसार 'ब्रह्म पुराण' में सृष्टि के समस्त लोकों और भारतवर्ष का भी वर्णन किया गया है। कलियुग का वर्णन भी इस पुराण में विस्तार से उपलब्ध है। ब्रह्म के आदि होने के कारण इस पुराण को 'आदिपुरण' भी कहा जाता है। प्राचीन पवित्र भूमि नैमिष अरण्य में व्यास शिष्य सूत मुनि ने यह पुराण समाहित ऋषि वृन्द में सुनाया था। इसमें सृष्टि, मनुवंश, देव देवता, प्राणि, पुथ्वी, भूगोल, नरक, स्वर्ग, मंदिर, तीर्थ आदि का निरूपण है। शिव-पार्वती विवाह, कृष्ण लीला, विष्णु अवतार, विष्णु पूजन, वर्णाश्रम, श्राद्धकर्म, आदि का विचार है।