कविता की आलोचना ख़ुद संकट में है 

नवल पांडेय।

कविता की आलोचना ख़ुद संकट में है 

Ananya soch

अनन्य सोच। “हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में आलोचना पुस्तकों और आलोचकों की स्थिति अच्छी नहीं है. ख़ासकर कविता में तो आलोचक प्रशंसक में बदल रहे हैं. आज के रचनाकार प्रतिमानों के संघर्ष से गुजर रहे हैं. इसकी एक प्रमुख वजह तो कविता के प्रतिमानों का पुराना पड़ जाना है. समय के साथ जीवन में हुए बदलावों का प्रभाव कविता पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. जीवन की जटिलताओं, संघर्षों, और तकनीकी प्रगति ने नई चुनौतियों और चिंताओं को जन्म दिया है, जिससे कविता का स्वरूप भी बदल गया है. लेकिन इन बदलावों के साथ यह भी ज़रूरी है कि कविता अपनी जड़ों और उन पुराने प्रतिमानों को पूरी तरह से न खो दे, जिनमें गहराई, संवेदनशीलता, और विचारों की व्यापकता थी.” यह कहना था वरिष्ठ आलोचक राजराम  भादू का जो आज पिंकसिटी प्रेस क्लब में प्रगतिशील लेखक संघ और वेरा प्रकाशन द्वारा आयोजित ग़ज़लकार ए एफ़ नज़र की आलोचनात्मक किताब “ कविता के नये प्रतिमान एक पुनर्विचार” के लोकार्पण में अपनी बात रख रहे थे.

उन्होंने कहा कि जो आलोचना अपने वक्त के साहित्य और मूल्यों का मुक़ाबला नहीं कर सकती वह अपने दायित्व से बचने का काम करती है. हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह की चर्चित कृति “आलोचना के नये प्रतिमान “ आज से छह दशक पहले प्रकाशित हुई थी. ए एफ़ नज़र ने इस पुस्तक में उन प्रतिमानों पर पुनर्विचार किया है. हालाँकि नामवर सिंह की किताब की प्रतिक्रिया में अब तक दर्जन भर पुस्तकें लिखी जा चुकी है. 
वरिष्ठ कवि कृष्ण कल्पित ने कहा कि यह बहुत गहरी नज़र से लिखी हुई शोधात्मक पुस्तक है. इसके लेखक शायर ही नहीं बल्कि गंभीर अध्येता भी हैं। इनकी शैली नई व अनूठी है. नामवर की कृति “कविता के नये प्रतिमान” साहित्य की एक बड़ी घटना थी और यह एक बहुप्रशंसित किताब थी लेकिन इसके प्रतिमान उनके जीवनकाल में ही धराशायी हो गये. उनकी कृति में नागार्जुन , त्रिलोचन , शमशेर व मुक्तिबोध सरीखे कवियों की उपेक्षा की गई और रघुवीर सहाय व श्रीकांत वर्मा को इसके केंद्र में रखा गया. उनका कहना था कि मुक्तिबोध को भले ही किसी आलोचक ने केंद्र में नहीं रखा हो लेकिन मुक्तिबोध की मृत्यु ने ख़ुद ही उन्हें केंद्र में रख दिया. 
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ हेतु भारद्वाज ने कहा कि जीवन जैसे जैसे बदलता है , साहित्य भी बदलता है. साहित्य में लेखक का सच सबका सच बन जाये तब ही सार्थकता होगी. नामवर सिंह की कृति के बाद हमने काव्य आलोचना की इतिश्री मान लिया जबकि कविता के अंत से आशय था कि आज की कविता इस बिंदु तक आ पहुँची है और अब आगे का सफ़र करना है. 
इस अवसर पर डॉ रामावतार सागर व चरण सिंह पथिक ने भी अपने विचार रखे । कार्यक्रम का संयोजन डॉ अजय अनुरागी ने किया.