इंसान के विवेक पर हावी होती तृष्णा की वृत्ति को मंच पर दर्शाया

इंसान के विवेक पर हावी होती तृष्णा की वृत्ति को मंच पर दर्शाया

अनन्य सोच। रवींद्र मंच जयपुर के 60 वर्ष पूर्ण होने पर हीरक जयंती समारोह के अवसर पर कला साहित्य संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, राजस्थान सरकार एवं रविंद्र मंच की टैगोर योजना के अंतर्गत शुक्रवार को नाटक अतृप्त आत्माएं का मंचन किया गया. के के कोहली निर्देशित इस नाटक के अंतर्गत कॉलेज छात्र राजीव और सुधीर दोनों में गहरी मित्रता है.

दोनों के विचार भी मेल खाते हैं वह एक दूसरे के सुख-दुख साझा करते हैं. सुधीर संपन्न परिवार से है जबकि राजीव गरीब परिवार से है. सुधीर अपने मित्र की हर समय इतनी नि:स्वार्थ भाव से आर्थिक मदद को तत्पर रहता है  लेकिन स्वाभिमानी राजीव उसकी मदद को दोस्ती के लिए ठीक नहीं समझता, वह स्वयं पार्ट टाइम मजदूरी करता है और अपनी पढ़ाई को भी जारी रखता है. सुधीर के पिता प्रशासनिक सेवा के बड़े अधिकारी है एवं ताऊजी राजनेता है वे किसी की मजबूरी से फायदा उठाने में जरा भी नहीं हिचकिचाते.

सुधीर अपने पिता की प्रवृत्ति से दूरी बनाकर रखता है। क्योंकि उनके घर में घटित घटनाओं से वह आहत है. वर्षो से उसकी मां की सांस दवाईयो के सहारे चल रही है. छोटी बहन अचानक काल का ग्रास बन जाती है. वह इन घटनाओं के लिए अपने पिता और ताऊजी के कार्यकलापों को दोषी ठहराता है कि ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती. वह किसी न किसी रूप में सजा दे रहा है. उसकी सोच है कि किसी का हक छीन कर मजबूरी से खेल कर बनाया गया पैसा कभी किसी को खुशियां नहीं दे सकता.

उनकी बददुआओ का असर आज नहीं तो कल हमें किसी ने किसी रूप में प्रभावित जरूर करता है. राजीव और सुधीर दर्शकों के समक्ष अपने विचारों से रोष प्रकट करते हुए सवाल उठाते हैं कि एक आम आदमी अपनी पहली पीढ़ी के भविष्य को भी सुरक्षित नहीं कर पाता उससे पहले ही वह परलोक सिधार जाता है। जबकि राजनेता और अफसरशाही अपने परिवार का भविष्य साथ पीढ़ियां तक सुरक्षित रखने में कामयाब हो जाते हैं. बड़ी-बड़ी योजनाओं क्यों और किसके लिए बनती है इनसे किनका उद्धार हो रहा है और कौन लाभान्वित हो रहा है बड़े-बड़े घोटाले भ्रष्टाचारी क्यों दिनोंदिन इतिहास रचते जा रहे हैं क्यों कम परिश्रम से ज्यादा प्राप्त करने की इच्छा हावी होती जा रही है क्यों ईमानदारी सच्चाई का दाह संस्कार होता दिखाई दे रहा है. नाटक अतर्प्त आत्माएं के द्वारा इंसान के विवेक पर हावी होती तृष्णा की वृत्ति को दिखाने का प्रयास किया गया है.

नाटक में रमन पारीक, महेश महावर, ऋतु सैनी, नरेंद्र सिंह बबल, विनोद कुमार,  लोचन हाडा वीर सरधाना ने दमदार अभिनय किया.