Jaipur Literature Festival: अच्छा अनुवाद कभी पूरा नहीं होता : पुष्पेश पंत
Ananya soch: A good translation is never complete: Pushpesh Pant
अनन्य सोच। Jaipur Literature Festival: जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की सह संस्थापक नमिता गोखले की पच्चीसवीं पुस्तक “जाग तुझको दूर जाना” का आज दरबार हॉल में विमोचन हुआ। इस अवसर पर नमिता गोखले के साथ डॉ पुष्पेश पंत जो उनके कज़िन भी है, पुस्तक के अनुवादक एश्वर्ज़ कुमार और वाणी प्रकाशन की सी ई ओ अदिति माहेश्वरी भी मौजूद थे. अदिति ने बताया कि इस पुस्तक का शीर्षक महादेवी की प्रसिद्ध कविता “चिर सजग आँखे उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना, जाग तुझको दूर जाना” से लिया गया है. यह उपन्यास नमिता गोखले के अंग्रेजी में प्रकाशित “ नेवर नेवर लैंड “ का हिंदी अनुवाद है। इसका अनुवाद एश्वर्ज कुमार ने किया है.
नमिता गोखले की रचना प्रक्रिया और उसके अनुवाद की चर्चा करते हुए अश्वर्ज कुमार ने कहा कि यह महज एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद भर नहीं है बल्कि इसमें एक भाषा, एक संस्कृति और परिवेश को दूसरी भाषा में परिभाषित करना है. नमिता के रचे सशक्त महिला पात्रों को उनकी तमाम ख़ुसूशियतों के साथ आत्मा के सम्पूर्ण सौंदर्य की अनुभूति करते हुए लिखना कोई आसान काम नहीं है. चूँकि मैं एक पुरुष हूँ और इस उपन्यास के महिला पात्रों के साथ बिना अपने पुरुषोचित भाव को प्रकट किये कितना न्याय कर पाया हूँ, आपको देखना है. शुरू में इस भावना को लेकर मैं आशंकित था कि मैं इन पात्रों के स्वर को पकड़ पाऊँगा भी या नहीं और उनकी शक्ति और स्वायत्तता बचाए रख सकूँगा। उन्होंने कहा कि नमिता के उपन्यासों में सशक्त पात्रों के साथ ही उसके प्राकृतिक दृश्य , पहाड़ का सौंदर्य , वहाँ गिरती बारिश के बिम्ब, अनूठे दृश्यों को हिंदी भाषा में खड़ा करना एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था. अंग्रेजी साहित्य की अपेक्षा हिंदी में आज भी आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता की झलक कम ही है. अनुवादक के लिए मूल कृति से अन्य भाषा में अनुवाद करते समय उस भाषा के सही और देशज शब्दों का चुनाव करना भी बेहद मुश्किल होता है. मेरे लिए यह सफ़र दिलचस्प और चुनौतियों से भरा था । मैंने इसके अनुवाद के समय अपना पूरा ध्यान इसी पर केंद्रित किया। मुझे अच्छा लगा और बहुत आनंद भी आया. मैंने अनुवाद तो कई किए हैं लेकिन किसी साहित्यिक कृति का यह मेरा पहला अनुवाद था. एक नया सफ़र था जहाँ शब्दों से लड़ना, उनके साथ संघर्ष करना , उनसे जद्दोजहद करना मजेदार था. आजकल हमने यह सब छोड़ दिया है। हम शब्दों पर मेहनत ही नहीं करना चाहते. शब्दों से संघर्ष किए बिना नई भाषा विकसित नहीं होगी. अंग्रेजी शब्दों को हिंदी शब्दों का विकल्प मत बनाओ। उपयुक्त शब्द खोजने की यात्रा जारी रखो तभी रचना में सुरीलापन पैदा होगा.
डॉ पुष्पेश पंत का कहना था कि मैं नमिता की दो पुस्तकों का अनुवाद किया है और मेरा मानना है कि नमिता के उपन्यासों का अनुवाद करते समय शब्दों के साथ खिलवाड़ करना पड़ता है. ऐसा लगता है जैसे शब्दों से खेल रहे हैं, उन्हें निचोड़ रहे हैं। यहाँ स्त्री या पुरुष स्वर की बात नहीं है बल्कि इनकी सशक्त महिला पात्रों के साथ पाठक बंध के रह जाते हैं. एक कुतूहल रहता है उनके प्रति पाठक के भीतर। इन चरित्रों की अपनी अपनी कहानियाँ है, उनकी पीढ़ियाँ हैं। व्यक्ति हैं, उनके संघर्ष है और उनकी अभिव्यक्ति है। जयपुर जर्नल्स हो या राग पहाड़ी भाषा की ऐसी ही जद्दोजहद है वहाँ भी अनुवाद के साथ समस्या होती है और अनुवाद कभी पूर्ण नहीं होता. आप जितनी बार पढ़ो , यही लगेगा कि यह यूँ नहीं होना चाहिए था, इसमें तो कुछ गुंजाइश रह गई है.
उन्होंने कहा कि स्वयं का किया अनुवाद भी बार बार पढ़ने पर भी अधूरा ही लगता है। नमिता गोखले का कथा संसार व्यापक है. उसमें मानवीकरण है। उसका भौगोलिक परिवेश है। शब्दों का चक्कर ज़्यादा नहीं है। उन्होंने कहा कि गुड नाईट को शुभ रात्रि लिखने की कोई ज़रूरत नहीं है, गुड नाईट को सब समझते हैं । इस बात पर उन्होंने हॉल में मौजूद श्रोताओं से गुड नाईट और शुभ रात्रि के पक्ष में हाथ खड़े कराए। मौजूद श्रोताओं ने शुभ रात्रि के पक्ष में सहमति दी। पुष्पेश ने कहा कि जयपुर वालों ने हिंदी की लाज रख ली । उन्होंने कहा कि अंग्रेजी भारत की भाषा नहीं सिर्फ बोली पढ़ी जाती है। उनका कहना था कि नमिता जब गल्प साहित्य रचती है तो वो किसी राग में कोई बंदिश रचने जैसा ही है । अनुवाद करते समय उस राग को पकड़ पाना जरा मुश्किल है। अनुवादक को परकाया प्रवेश करना होता है। पात्रों के अंदर प्रवेश करना होता है। कई चीजें ऐसी होती हैं जिनका पूर्ण अनुवाद नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि सर्वेंट क्वार्टर का अनुवाद नौकर की कुटिया कैसे हो सकता है क्योंकि कुटिया तो वो होती है जहाँ कोई साधु रहता हो। अंग्रेजी में थोड़ी लिबर्टी चलती है।
पुष्पेश का कहना था कि साहित्यिक कृतियों जैसे कविता, कहानी , उपन्यास , नाटक आदि सब अलग अलग विधाएं हैं और इनके अनुवाद की टेक्निक भी थोड़ी भिन्न है। फ़िक्शन के अनुवाद और पाठ्यक्रम के अनुवाद में बड़ा फ़र्क़ होता है।
इस अवसर पर पुस्तक के अनुवादक एश्वर्ज़ कुमार ने पुस्तक के कुछ अंश भी पढ़कर सुनाए।