नदिया के ठण्डे पानी में हमने हाथ जलाएँ हैं 

नदिया के ठण्डे पानी में हमने हाथ जलाएँ हैं 

Ananya soch: Book fairs

अनन्य सोच। Book fairs: women's day के उपलक्ष्य में Dr. Radhakrishnan Library में चल रहे Book fairs में आज प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा poetry seminar का आयोजन किया गया. गोष्ठी में महिला कवयित्रियों ने नारी विषयक अनेक कविताओं का पाठ किया. कविता माथुर ने जहां जूते और चूहे शीर्षक कविताओं के बहाने समाज के अन्तर्विरोध सामने रखे. वहीं अनीता श्रीवास्तव ने सकारात्मकता के समर्थन में अपना गीत “राहगीरों को एक नई दिशा दिखाके चलें” सुनाया. कंचना सक्सेना ने बसंत और बाज़ार पर दो रचनाओं का पाठ किया, जिनमें “यत्र तत्र सर्वत्र बगरौ है बसंत” व “हम कहाँ आ गए सूचना क्रांति की तरह” शामिल थे. वरिष्ठ लेखिका शशि पाठक ने सीनियर सिटीज़न की पीड़ा को बयान करती अपनी रचना “ पार्क की एक बेंच पर रोज़ शाम को बैठते थे कुछ बुढ्ढे” और “कॉलेज की रियूनियन ने कितने भ्रम तोड़ दिये” का पाठ किया. बीना करमचंदानी ने “स्त्री एक किताब है” व “हत्यारों के हाथ में नहीं है हथियार” शीर्षक कविताओं का पाठ किया. लेखिका लक्ष्मी शर्मा ने “ हाँ , हम बोलती हैं चुटकी भर झूठ कि सच की लोनाई बनी रहे” रचना सुनाई वहीं डॉ जयश्री शर्मा ने “रुको , मत रोको इन्हें बह जाने दो आंसुओं को, रोना सेहत के लिए ज़रूरी है”, “ अरमान कब था कि बुलंदी तक उड़ान मिले, हाँ, मगर चाहे थी कि अपने हिस्से का आसमान मिले” और “मेरे भीतर सपनों की कितनी गुहाएँ हैं” का पाठ किया.

इस अवसर पर फारूक आफ़रीदी ने “ इस दुनिया के भस्म होने में और कितनी देर है भाई”, हरीश करमचंदानी ने “ मैंने तब पहली बार पिता को उदास देखा और मेरा अनुमान था उनकी आँखों में आँसू भी होंगे”, शायर लोकेश कुमार सिंह साहिल ने “इसके खिलते ही हर सीम्त उजाला होगा, यह तबस्सुम है इसे दर्द ने पाला होगा” व ज़िंदगी के पृष्ठ मुझको कह रहे हैं” गीत सुनाए. प्रसिद्ध कवि कृष्ण कल्पित ने “प्रार्थना करने से पहले मैं हाथ जोड़ना सीख गया था, लिखने से पहले मिटाना, प्यार करने से पहले चूमना सीख गया था” के साथ ही कुछ दोहे “उमगी उमगी फिर रही लिए हिये में हाथ, जोगी और बसंत का कौन करे विश्वास” , “पंडित बांचे भागवत बांचें शेख़ क़ुरआन, बांचे पत्र बसन्त का सूना रेगिस्तान”,, “बासी रोटी रात की कुछ मिरचें कुछ प्याज़, जब घर पर आ ही गए जीमो है ऋतुराज”, “किसकी है ये दिल्लगी किसका है ये काम, उनके घर के द्वार पर लिखा हमारा नाम” , “छत पर उतरी चाँदनी मन में उतरे आप, हम आँखों की झील में उतर गये चुपचाप” और “सूनी सूनी साँझ में सुन तेरी आवाज़, मन रविशंकर हो गया, तन बिरजू महाराज” भी सुनाये। वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज ने राजस्थानी रचना के साथ ही “दोगली हवाओं में प्रचारित बासी बातों पर बहस करने से अब कोई फ़ायदा नहीं” व “शब्दों को इस तरह खुला मत छोड़िए कि वे लावारिस हो जायें” का पाठ किया. कार्यक्रम के अध्यक्ष गोविंद माथुर ने अपने नये संग्रह “अनलिखे पोस्टकार्ड” से “इतनी सूचनाएँ मिलती है प्रतिदिन कि कोई सूचना चौंकाती नहीं है”, “किसी शहर का नाम सुनते या पढ़ते किसी पत्रिका में, उस शहर की स्मृति कौंध जाती” और “वे चाहते हैं एक ही फूल खिले गुलशन में” कविताओं का पाठ किया. गोष्ठी का संचालन डॉ अजय अनुरागी ने किया.