Jaipur Literature Festival: शब्द इंसान की तरह होते हैं -जावेद अख़्तर 

नवल पांडेय।

Jaipur Literature Festival: शब्द इंसान की तरह होते हैं -जावेद अख़्तर 

Ananya soch: Words are like people Javed Akhtar

अनन्य सोच। Jaipur Literature Festival: Jaipur Literature Festival के पहले दिन आज फ़्रंट लॉन में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित Javed Akhtar की नई पुस्तक “सीपियाँ” का लोकार्पण सुधा मूर्ति , जावेद अख़्तर, अतुल तिवारी व अशोक माहेश्वरी द्वारा किया गया. हिंदी के क्लासिक दोहों के इस संग्रह में जावेद अख़्तर ने रहीम, रसखान, वृंद व तुलसीदास के नब्बे दोहों को अर्थ सहित समाहित किया है. अतुल तिवारी से संवाद करते हुए जावेद अख़्तर ने कि दोहे का मतलब है मात्र दो पंक्तियों मै एक गहरी बात कह देना. उन्होंने कहा कि जिस तरह सीपियों से मोती निकलते है, उसी तरह इस पुस्तक में कुछ मूल्यवान मोती पिरोने का काम किया गया है. दोहा कला आज खत्म हो रही है. दोहों को सरंक्षित करने का यह ख्याल टाटा स्काई विक्रम मेहरा साहब ने दिया है. जावेद ने कहा कि आज दोहे ही नहीं हमारी भाषा की कहावतें , मुहावरे भी ग़ायब हो गए हैं. भाषा पर एक संकट सा खड़ा हो रहा है. यहाँ प्रस्तुत दोहे जो आठ सौ से लेकर पाँच सौ साल पुराने होते हुए आज  भी प्रासंगिक है. उनका कहना था कि दुनिया का सारा संगीत सात सुरों की सरगम में समाहित है. वही सरगम इन दोहों में सुनाई देती है। ये दोहे ज्ञान के मोती हैं. 
शिक्षा व्यवस्थाओं में प्रयोगों के नाम पर किए जा रहे लगातार बदलाव ने हमारी परंपराओं को खत्म किया है। आज के बच्चे अपनी मातृभाषाओं से दूर होते जा रहें हैं. पेड़ कभी भी अपनी जड़ों के बिना ज़िंदा नहीं रह सकता. इसलिए अपनी मातृ भाषा का ज्ञान होना बहुत ज़रूरी है. जुबान से कटा बच्चा अपनी संस्कृति से कट जाता है. अंग्रेजी जानना भी जरूरी है लेकिन अपनी मातृ भाषा की कीमत पर नहीं. उन्होंने बताया कि  अकबर चाहते थे कि तुलसीदास सरीखे बड़े कवि को नवरत्नों में शामिल करना चाहिए और इसके लिए उन्होंने रहीम के साथ तुलसी को अपना संदेश भेजा. जवाब में तुलसी ने लिखा कि मैं एक जन्म में एक ही राजा का सेवक हो सकता हूँ और इस जन्म में मैंने राजा राम से लौ लगा ली है. उन्होंने अपनी किताब में शामिल दोहों का जिक्र करते हुए कहा कि अब देखिए रहीम का करीब पाँच सौ साल पहले लिखा यह दोहा , “रहीमन मुश्किल आ पड़ी टेडे दोउ काम सांचे से तो जग नहीं, झुठे मिलै न राम” कैसे आज भी कितना प्रासंगिक है. जावेद ने कहा कि जो शायरी नहीं करते वो ही हिंदू मुसलमान करते हैं. दुनिया में आज तक किसी फ़ासिस्ट ने एक भी पोएट पैदा नहीं किया फ़ासिज़्म मोहब्बत की ज़ुबान हो ही नहीं सकती। राम सच्चाई है, राम ईमानदारी है।रहीम ने तुलसी की बढ़ाई की है। बड़प्पन तो बड़ा ही आदमी कर सकता है. जिस आदमी को अपने ही होने पर शक हो वो दूसरे की क्या तारीफ़ करेगा. दोहों में मात्राओं के महत्व पर उनका कहना था कि पोएट्री ,डांस और पेंटिंग सहित किसी भी आर्ट में इमोशन और क्राफ्ट दोनों होता है. भाव और तकनीक दोनों चीजे एक साथ चाहिए तभी कोई मुकम्मल कृति बनती है. कला में फीलिंग का होना बेहद जरूरी है। मात्राओं और मीटर का पालन भी करना पड़ता है. उर्दू में भी मात्राओं का बड़ा महत्व है. हांलाकि बहुत से कवियों ने बिना मात्राओं के ज्ञान के भी बहुत अच्छा लिखा है. सही मीटर में लिखा है क्योंकि उनका अनुभव ही ऐसा है. अब गायक किशोर कुमार को ही देख लीजिए उन्होंने बिना सरगम सीखे भी सुर में ही गाया है. क्राफ्ट में कोई लोच नहीं होता। तकनीक और सोच का मेल जरूरी है. मात्राओं की टेक्निक का ज्ञान आवश्यक है. यह फ़ूड की तरह है जिसे डाइजेस्ट करने की कला होनी चाहिए. पहले लिबर्टी भी थोड़ी बहुत होती थी. 
अमीर खुसरो चालीस कैरेक्टर में दोहा लिख दिया करते थे।उनका एक प्रसिद्ध दोहा है “गौरी सोवे सेज पर मुख पर डारे केश, चल खुसरो घर आपने साँझ भई चहूँ देश”. यह दोहा उन्होंने अपने गुरु निजाम साहब की मृत्यु पर लिखा था जिसमें उनका आशय था कि आत्मा रूपी गोरी सेज पर सो रही है, उसने अपने मुख पर केश डाल लिए हैं, अर्थात वह दिखाई नहीं दे रही है. तब ख़ुसरो ने मन में निश्चय किया कि अब चारों ओर अँधेरा हो गया है, रात्रि की व्याप्ति दिखाई दे रही है. अतः उसे भी अपने घर अर्थात परमात्मा के घर चलना चाहिए।जावेद अख्तर ने कहा कि गोरी की बात लिखने पर आज तो फ़तवा हो जाता. उनका कहना था कि 
उस्तादों का टेक्निक पर कंट्रोल था. क्लासिक पोएट्री आने वाले वक्त में भी प्रासंगिक होती है। किताब में शामिल कबीर के एक अन्य दोहे 
शब्द सम्हारे बोलिए, शब्द के हाथ न पाँव। एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव. 


पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि शब्द महत्वपूर्ण है। हम उनके प्रयोग में लापरवाही बरतते है तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है ।दो शब्दों का कभी एक मतलब नहीं हो सकता 
शब्द इंसानों की तरह होते है. शब्द की फ़ोनेटिक फिर उसकी मीनिंग का मतलब होता है ।शब्द का महत्व और अर्थ उसके इश्तेमाल करने वाले लोगों के हिसाब से भी अपना अर्थ रखता है। नर्म और मुलायम दोनों के अर्थ में फ़र्क़ है. 
सही शब्द ही वातावरण की रचना करते हैं। 
कागा काको धन हरै, कोयल काको देत।
मीठे बोल सुनाय के, जग अपना कर लेत।।
बोल के कारण ही कौआ व कोयल में भेद है इसलिए अपने को कोयल बनाओ।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर न मिले, मिले गाँठ परिजाय॥
तोड़ने और चटकाने में भी भेद है। झटके से मत तोड़ो क्योंकि जुड़ेगा नहीं और गाँठ पड जाएगी ।
उन्होंने कहा कि यह दोहे नौ बरस से टाटा स्काई पर चल रहे हैं।यहाँ मैंने 
आज की ज़िंदगी के क़रीब लगने वाले दोहों को चुना और उनका साधारणपन का भी ध्यान रखा। 
दोहों में कॉमन सेंस की बातें कहीं गई है रोजमर्रा की ज़िंदगी की बाते हैं।