Jis Lahore Ni Dekhya O Jamyai Ni natak: नाटक जिस लाहौर नी देख्या ओ जम्याई नी का मंचन

Jis Lahore Ni Dekhya O Jamyai Ni  natak: नाटक जिस लाहौर नी देख्या ओ जम्याई नी का मंचन

Ananya soch: Jis Lahore Ni Dekhya O Jamyai Ni natak

अनन्य सोच। Jis Lahore Ni Dekhya O Jamyai Ni nata: नाटक जिस लाहौर नी देख्या ओ जम्याई नी का मंचन का मंचन गुरुवार को आरआईसी सभागार में हुआ. राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर के स्थापना दिवस समालीश के मौके पर हुए इस नाटक के लेखक असगर वजाहत एवं निर्देशन अभिषेक गोस्वामी ने किया. नाटक की कहानी भारत-पाकिस्तान विभाजन के तुरंत बाद के समय की है.

भारत पाकिस्तान विभाजन के तुरन्त बाद सिकन्दर मिर्जा का परिवार लखनऊ से लाहौर जाता है. शरणार्थी शिविर में रहने के बाद उसे एक बडा मकान गन्नौर होता है. लेकिन जब वो वहां पहुंचते हैं तो देखते हैं कि एक बूढ़ी औरत रह गई है. उन्हें लगता है कि जब तक ये यहां रहेगी यह मकान हमारा नहीं हो सकता. नाटक एक संघर्ष की स्थिति से शुरु होता है लेकिन ये बूढ़ी औरत स्वभाव से बड़ी मददगार है और धीरे धीरे दोनों के बीच एक रिश्ता बनने लगता है. जब शहर के गुंडों को पता चलता है तो कि हिन्दू बुढ़िया रह गई है तो उनकी कोशिश होती है कि वे किसी भी तरह उस बुढ़िया को उस मकान से बाहर निकालें. लेकिन मिजां परिवार उसे बचाता है. बाद में जब वो मरती है तो सवाल उठता है कि इसका क्रिया कर्म कैसे किया जाए. स्थानीय मौलवी की राय पर उसका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से किया जाता है. इसकी प्रतिक्रिया में शहर के गुंडे मौलवी की हत्या कर देते हैं.