महोत्सव के पांचवें दिन नाटक नेक चोर और अग्निपरीक्षा का मंचन

नेक चोर में दिखी उलझनपन तो वहीं अग्निपरीक्षा में महिलाओं पर उत्पीड़न की कथा

महोत्सव के पांचवें दिन नाटक नेक चोर और अग्निपरीक्षा का मंचन

अनन्य सोच, जयपुर। कला एवं संस्कृति विभाग राजस्थान सरकार और जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वाधान में रंग मस्ताने संस्था द्वारा दस दिवसीय रंग राजस्थान के पांचवें दिन स्कूल आउट रीच प्रोग्राम "रंग बचपन" के तहत राजश्री कन्या स्कूल के लगभग 50 बच्चों के सामने जवाहर कला केंद्र के अलंकार में रंगमस्ताने के कलाकार श्वेता और सुधांशु ने कहानियां प्रस्तुत की और बच्चो को फोटो एग्जीबिशन में भी भाग लेना का मौका मिला।

फिर 2 बजे से अलंकार में ही रंग चौपाल की शुरुआत हुई। जिसका विषय "शिक्षा में रंगमंच" रहा। जहां प्रसिद्ध रंगकर्मी वाल्टर पीटर और जयपुर के रंगकर्मी अभिषेक गोस्वामी मौजूद रहे। वाल्टर पीटर ने थिएटर इन एजुकेशन के बारे में बात की उन्होंने बताते हुए कहा कि थिएटर इन एजुकेशन स्कूल्स में बच्चो के साथ काम करना है। अभिषेक गोस्वामी ने थिएटर इन एजुकेशन के बारे में बताते हुए कहा कि कुछ एडल्ट्स एक्टर्स स्कूल्स में बच्चों के विषयों पर नाटक तैयार करते हैं और उन्हें मनोरंजन के साथ सीख भी देते है।
इसके बाद 4 बजे जवाहर कला केंद्र के कृष्णायन सभागार में नाटक नेक चोर का प्रदर्शन हुआ। इसका निर्देशन जयपुर के युवा निर्देशकों- विजय, कमलेश और कल्पना ने किया। यह एक ऐसे चोर के इर्द-गिर्द घूमती कहानी है, जो घर में फंस जाता है, जहां वह चोरी करने की योजना बनाता है। अपने बंद समय के दौरान, घर का मालिक अपनी एक्स्ट्रा मैरिटल पार्टनर के साथ आता है । अंत में, उसकी पत्नी प्रवेश करती है और कहानी ट्विस्ट और टर्न के साथ अपने निष्कर्ष पर पहुंचती है।

फिर शाम 7 बजे से जेकेके के रंगायन सभागार में "अग्निपरीक्षा" नाटक का मंचन किया गया। के इसका निर्देशन जयपुर के रंगकर्मी दिलीप भट्ट ने किया है। अग्निपरीक्षा एक कहानी-आधारित नहीं, बल्कि एक कथा-आधारित विचारोत्तेजक नाटक है। इसे जयपुर के प्राचीन लोकनाट्य तमाशा रूप में विकसित किया गया है, जिसमें महिलाओं की अग्निपरीक्षा के चार प्रसंगों को दर्शाया गया है, जो प्राचीन और आधुनिक समय में महिलाओं के उत्पीड़न के चिरस्थायी उदाहरण हैं। इस शास्त्रीय और संगीत उत्पादन ने 100 शो पूरे कर लिए हैं, और पिछली संध्या 101वां प्रदर्शन था और इसके नाटककार डॉ. हरिराम आचार्य की स्मृति में एक श्रद्धांजलि भी थी।