Jaipur Literature Festival: छोटे क़स्बों के लोगों में आत्मीयता बहुत थी
Jaipur Literature Festival:
Nawal sharma
Ananya soch: Jaipur Literature Festival
अनन्य सोच।Jaipur Literature Festival: ” स्मार्टफ़ोन , फ़ेसबुक , व्हाट्सअप, इंस्टा आदि मीडिया के इस दौर से पहले छोटे क़स्बों में लोग एक दूसरे की भरपूर मदद करते थे। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि हर कोई हर किसी को जानता था। हांलाकि इसके कई लाभ भी होते हैं तो कुछ नुक़सान भी लेकिन किसी अजनबी द्वारा किसी का पता पूछने पर बड़ी आत्मीयता से इसे सही जगह पहुँचा दिया जाता था। आज चीजें बदल गई है। अब लोग कहते हैं मेरे पास बिलकुल टाइम ही नहीं है। मुझे व्हाट्सएप पर इतना घंटे रहना पड़ता है। लेकिन मेरे समय के लोगों में आपसी सामंजस्य था। सब आपकी परवाह करते थे, एक दूसरे की सहायता करते थे।” यह कहना था इंफ़ोसिस की संस्थापक अध्यक्ष व सुप्रसिद्ध लेखिका पद्मश्री सुधामूर्ति (Sudha Murty) का जो आज Jaipur Literature Festival में अपनी नई किताब “कॉमन येट अनकॉमन” (book common yet uncommon) पर प्रकाशक व संपादक मेरू गोखले से संवाद कर रही थी। उनकी common yet uncommon किताब उनके दक्षिण कर्नाटका के गृहनगर के किरदारों से जुड़ी संस्मरणात्मक कहानियों का संग्रह है।
Sudha Murty ने कहा कि “छोटे क़स्बों के लोग भले हो पद्मश्री या पद्मभूषण प्राप्त नहीं हो लेकिन अपने क़स्बे में सब उन्हें जानते थे। ऐसे लोगों से मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ सीखा। ऐसे साधारण लोगों के अतिसाधारण जीवन के कई चरित्र मेरी यादों में है जिनके स्केचेज मैंने अपनी इस नई किताब में लिखे हैं। मैंने इन्हीं के बीच रहकर यह जाना कि आप खुश रह सकते हैं यदि ख़ुशी आपके भीतर समाहित है। इसलिए अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को इंजॉय करो पता नहीं कल हो ना हो । क्योंकि हमारे जीवन में कई सरप्राइज़ आते हैं अच्छे भी और बुरे भी इसलिए अपने अंदर की ख़ुशी को कभी मिटने मत दो। ज़रूरी नहीं कि लोग हर समय आपकी प्रशंसा ही करें।
अपने बचपन को याद करते हुए उन्होंने कहा कि इस किताब में मेरे जीवन से जुड़े कुल चौदह किरदार हैं जिन्हें मैंने बीस साल पहले कन्नड़ में लिखा था। इसमें नब्बे प्रतिशत मेरा ऑब्ज़रवेशन है। मेरा मानना है कि जब आप लोगों से मिलते हैं तो केवल एक शरीर से नहीं मिलते बल्कि उसके व्यक्तित्व व जीवन से भी मिलते हैं। मेरे लिये लोग केवल लोग नहीं होते बल्कि हर व्यक्ति एक किताब होता है और किताबें पढ़ने का मुझे बचपन से शौक़ रहा है।
अपने बचपन के बारे में बताते हुए Sudha Murty कहती हैं “मुझे बेहद छोटी सी उम्र से ही लोगों के बारे में , रीति -रिवाजों के बारे में या फिर वहाँ घटने वाली हर छोटी बड़ी, महत्वपूर्ण या महत्वहीन हर बात को जानने की चाहत रहती थी। शादी समारोह में मैं कोने में चुपचाप बैठकर वहाँ होने वाले संस्कारों , बातों , कार्यक्रमों को गौर से देखती सुनती थी। झगड़ा हो रहा है या कोई प्रॉपर्टी डिवाइड का मामला हो या फिर कहीं सत्यनारायण की कथा हो क्यों ना हो, हर बात को जानने का मुझे शौक़ रहता था। Sudha Murty बताया कि उस समय लोग एक-दूसरे के घरों की बातें जानने के लिए बच्चों का इश्तेमाल किया करते थे। बच्चों को प्रसाद के लड्डू का लालच देकर बातें पूछ ली जाती थी। मेरे पास बातों का ख़ज़ाना होता था और मैं आसानी से बातें बता दिया करती थी।
अपने चरित्रों से टच में रहने के सवाल पर सुधा जी ने कहा कि यह सही है कि मैं अपने केरेक्टर्स से बहुत प्यार करती हूँ। लेकिन इस किताब के किरदार मेरे बचपन के हैं और मैं अब पिचहत्तर की हो रही हूँ। उन्होंने कहा कि लिखने के लिये पढ़ना बेहद ज़रूरी है।लिखने का पहला प्रोसेस शुरू होता है अनुशासन से यानी लिखते समय केवल लिखें। विषय पर शोध करें। अपने विचार तैयार करें फिर लिखें। मैं कोई भी उपन्यास लिखने के लिये दो से तीन साल की तैयारी करती हूँ जबकि कहानी के लिए कम से कम एक सप्ताह। लेकिन यह मेरा अनुभव है कोई रूल नहीं है। मेरा तो यही कहना है कि जो भी लिखे अपना मौलिक लिखे, किसी की कॉपी नहीं करें।