jaipur literature festival: एक किताब काफ़ी नहीं है गुलज़ार की ज़िंदगी लिखने के लिए

jaipur literature festival

jaipur literature festival: एक किताब काफ़ी नहीं है गुलज़ार की ज़िंदगी लिखने के लिए

Ananya soch: Gulzar

nawal sharma

jaipur literature festival: ”मुझे किसी आर्काइव्ज़ में तलाशने की ज़रुरत नहीं है, यह लोगों की ताली और मुझे अपने सामने पाकर ख़ुशी का हुल्लड़ यह मेरी अर्काइव्ज है. लेखक यतीन्द्र मुझे मेरे से भी अधिक जानते हैं क्योंकि उन्होंने मुझे पढ़ा है.  यह सवाल पूछते हैं तो कुछ लम्हों को कुरेदते हैं।कुरेदने के बाद ही कोई कहानी निकलती है , कोई भूली हुई दास्तान याद आती है.”  लोकप्रिय गीतकार Gulzar jaipur literature festival में यतीन्द्र द्वारा लिखी किताब के बारे में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि आपकी ज़िंदगी का असर आपके लेखन पर ज़रूर होता है. आपका बचपन, आपके जीवन से जुड़े संस्मरण, संघर्ष , यादें , सफ़र हर फ़नकार के क्रियेशन में इनका असर शामिल होता ही है। ज़िंदगी की परछाई उसके सृजन में झलकती ही है. चित्रकार वान गॉग की पेंटिग्स इसका उदाहरण है जिनमें उनका संघर्ष महसूस किया जा सकता है। 
Gulzar ने बताया कि उनके जीवन पर पार्टीशन का जो असर है वो कभी जाने वाला नहीं है। एक नौ दस साल के बालक ने जो ट्रेजेडी देखी, मारकाट , खून ख़राबा, जलते घरों के मंजर, चारों तरफ़ दहशत का माहौल   ये सब एक बच्चे के ज़ेहन से उतर नहीं सकते। उसके स्कूल में दुआ पढ़ने वाले लड़के को इसलिए मार दिया गया क्योंकि वो मुसलमान था। रोशनआरा रॉड के वो जलते मकान और उनसे उठता धुआँ, मौहल्लों में जलने के बाद की वो बदबू …एक नदी उतर सकती है ज़ेहन में काश आपने पूछी होती या देखी होती तो। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान उनके लिए एक पड़ौसी या घर का दूसरा कमरा अथवा कमरे की किसी खिड़की सा लगता है। कभी कभी मैं अकेले में सोचता हूँ कि अपनी नज़्मों में यह उदासी कहाँ से आ गई। शायद यह बचपन की यादें है जो कभी उतरती नहीं । वो लम्बें आपके काम में रिफ़्लेक्ट करते हैं. 
कवि लेखक व संगीतकार यतीन्द्र मिश्र आज जयपुर लिट्रेचर फ़ेस्टिवल में गुलज़ार की मौजूदगी में उन पर लिखी अपनी किताब के बारे में लेखिका सत्या शरण से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि “गुलज़ार साहब” बायोग्राफी होकर भी बायोग्राफ़ी नहीं है। यह किताब गुलज़ार साहब (book Gulzar Sahab) के जीवन से जुड़ी कहानियों की एक आधी अधूरी दास्तान है। एक शायर, कवि, गीतकार, कथाकार, संवाद लेखक, निर्देशक और भी बहुत कुछ शख़्सियत अपने ज़ेहन में समेटे पिछले साठ साल से सृजनरत एक व्यक्ति के जीवन को क्या एक किताब में समेटा जा सकता है. 

यतीन्द्र ने बताया कि वे इस किताब पर गत पंद्रह साल से काम कर रहे थे और उन्हें गुलज़ार साहब जैसी बड़ी हस्ती की सहजता चौंकाने वाली लगी . उन्होंने हर कठिन व आलोचनात्मक सवाल का जवाब दिया. वे सिर्फ़ मेरे लेखन में शामिल फ़ेक्ट्स चेक करते थे और उनके संदर्भ सही करने का सुझाव देते थे. उनकी विशेषता है कि वे आपको हर चीज का जवाब देते है और आपको आपकी राय के साथ छोड़ देते हैं। हमारे यहाँ सिनेमा से जुड़ी चीजों का कोई आर्काइव्ज़ तो है नहीं। आपको सिनेमा के फ़ेक्ट्स नहीं मिलते। गॉसिप अधिक मिलती है।ऐसे में मैंने दिन रात रिकॉर्डिंग की। हमेशा टेप ऑन रखता था। उन्होंने कहा कि गुलज़ार को जानने के लिए आपको उनकी नज़्मों , ग़ज़लों, गीतों, कहानियों , संवादों व फ़िल्मों में झाँकना पड़ेगा तभी आपको कुछ हाथ लगेगा। एक बड़े कलाकार तजुर्बेकार इंसान, महान अफ़सानानिगार को पकड़ने में कुछ छूट ही जाता है और इस किताब के साथ भी ऐसा ही है। यह आधी हक़ीक़त ही है। 
गुलज़ार एक ख़ानाबदोश किरदार हैं, जो थोड़ी दूर तक नज़्मों का हाथ पकड़े हुए चलते हैं और अचानक अफ़सानों की मंज़रनिगारी में चले जाते हैं। फ़िल्मों के लिए गीत लिखते हुए कब डायलॉग की दुनिया में उतर जाते हैं, पता ही नहीं चलता। वे शायरी की ज़मीन से फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखते हैं, तो अदब की दुनिया से क़िस्से लेकर फ़िल्में बनाते हैं। उनके हर गाने की एक स्टोरी है। उसका म्यूज़िक , उसकी रागदारी, शब्दों का चयन सबमें एक क़िस्सा है। उनकी रचनाओं में दर्द है, अफ़साने हैं, संघर्ष है। उनकी यात्रा अनेक असफलताओं को समेटे है। 

अनगिनत नज़्मों, कविताओं, ग़ज़लों और फ़िल्म गीतों की समृद्ध दुनिया है गुलज़ार के यहाँ, जो अपना सूफ़ियाना रंग लिये हुए शायर का जीवन-दर्शन व्यक्त करती है। इस अभिव्यक्ति में जहाँ एक ओर हमें कवि के अन्तर्मन की महीन बुनावट की जानकारी मिलती है, वहीं दूसरी ओर सूफ़ियाना रंगत लिये हुए लगभग निर्गुण कवियों की बोली - बानी के क़रीब पहुँचने वाली उनकी आवाज़ या कविता का स्थायी फक्कड़ स्वभाव हमें एकबारगी उदासी में तब्दील होता हुआ नज़र आता है। इस अर्थ में गुलज़ार की कविता प्रेम में विरह, जीवन में विराग, रिश्तों में बढ़ती हुई दूरी और हमारे समय में अधिकांश चीज़ों के संवेदनहीन होते जाने की पड़ताल की कविता है। इस यात्रा में ऐसे कई सीमान्त बनते हैं, जहाँ हम गुलज़ार की क़लम को उनके सबसे व्यक्तिगत पलों में पकड़ने का जतन करते हैं।

एक पुरकशिश आवाज़, समय 'आईना बनाकर पढ़ने वाली जद्दोजहद, कविताओं की शक्ल में उतरी हुई सहल पर झुकी हुई प्रार्थना... उनका सम्मोहन, उनका जादू, उनकी सादगी और उनका मिज़ाज ये सब पकड़ना छोटे बच्चे के हाथों तितली पकड़ने जैसा है। उनके जीवन-लेखन- सिनेमा की यात्रा दरअसल फूलों के रास्ते से होकर गुज़री यात्रा है, जिसमें फैली ख़ुशबू ने जाने कितनी रातों को रतजगों में बदल दिया है। गुलज़ार की ज़िन्दगी के सफ़रनामे के ये रतजगे उनके लाखों प्रशंसकों के हैं।