Jaipur Literature Festival: हर भाषा की अपनी ख़ुशबू होती है -गुलज़ार 

Jaipur Literature Festival: हर भाषा की अपनी ख़ुशबू होती है -गुलज़ार 

Nawal sharma

Ananya soch: Jaipur Literature Festival
अनन्य सोच। Jaipur Literature Festival: Jaipur Literature Festival में आज फ़्रंटलॉन का पहला सत्र “बाल ओ पार” पर सुप्रसिद्ध गीतकार गुलज़ार, लेखिका व अनुवादक रक्षान्दा जलील और लेखक व पूर्व राजनयिक पवन के वर्मा के नाम रहा. बाल ओ पार” हार्पर से प्रकाशित गुलज़ार की नज़्मों के अंग्रेज़ी अनुवाद का संग्रह है जिनका अनुवाद रक्षान्दा ने किया है. इस पुस्तक के विमोचन के बाद रक्षान्दा ने बताया कि इस संग्रह में गुलज़ार साहब की देवनागरी में प्रकाशित छह किताबों चाँद पुखराज का, रात पश्मीने की, पंद्रह  पाँच पिचहत्तर, कुछ और नज़्में, प्लूटो व त्रिवेणी में शामिल नज़्मों का अनुवाद किया गया है. यह गुलज़ार साहब की चार दशक की यात्रा को समेटे है क्योंकि चाँद पुखराज का” 2004  में प्रकाशित हुई थी. इस किताब में पहली बार एकत्रित की गई इन सात सौ नज़्मों को देवनागरी लिपि में मूल कविता और सामने वाले पृष्ठ पर उसका अंग्रेज़ी अनुवाद द्विभाषीय रूप में प्रकाशित किया गया है. रक्षान्दा ने बताया कि वो इस किताब पर चार साल से काम कर रही थी जिसमें कोविड का समय भी आया और उस दौरान गुलज़ार साहब से हर रोज़ तीन बजे से पाँच बजे तक वीडियो कॉल पर चर्चा होती थी. यह मेरे लिये एक नया अनुभव था जब मैंने पहली बार किसी शायर के साथ बैठकर उसकी कविताओं का लाइव अनुवाद किया है. इसी दौरान मैंने यह भी अनुभव किया कि किसी लफ़्ज़ का अर्थ शायर के लिए अलग होता है और पाठक के लिए अलग. यह अनुवाद मेरे लिये एक वर्कशॉप की तरह था. गुलज़ार ने कहा कि अल्फ़ाज़ के कई पहलू होते हैं। उन्होंने बताया कि जैसे “बुडबुड़ बहता रहा है यह बूढ़ा दरिया” अब इसमें बुडबुड़ का अनुवाद क्या होगा, क्योंकि वो एक इमेज है. इस पर मैंने रक्षान्दा से कहा कि ऐसे इमेजनरी शब्दों को उड़ा दीजिये यानी उन्हें हटाकर भी काम चलाया जा सकता है. हटा दिये गये ऐसे वक़्फ़े आपके ज़ेहन में गूंजे तो ये ही शायरी की कामयाबी है. नज़्म में शामिल साउंड्स और साइलेंसेज के अनुवाद संभव नहीं है , उनकी जगह स्पेस रख दें और यह स्पेस अपने आप पाठक को एक अर्थ देता है. मानी को हर पाठक अलग तरह से महसूस कर सके यही कविता की ख़ूबसूरती है. हर भाषा की अपनी ख़ुशबू होती है. अलग मायने होते हैं. उन्होंने कहा कि वक्त के साथ समाज के बदलाव के साथ कल्चर बदलती रहती है और लफ़्ज़ भी बदल जाते हैं. लेखक व पूर्व राजदूत पवन के वर्मा ने कहा कि शायरी का अनुवाद करना आसान नहीं होता है और जब कविताएँ गुलज़ार साहब की हो तो अनुवाद भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. उनके यहाँ बेहद कॉम्प्लिक्ट इमेजनरी होती है जिसमें एक तस्वीर उभरती है. उन भावों का हुबहू अनुवाद करना बहुत मुश्किल होता है। उन्होंने कह कि कविता का अनुवाद करना परफ़्यूम की एक बोतल को दूसरी बोतल में भरने की तरह होता है जहां  हर बार परफ़्यूम की मात्रा कम हो जाती है। इस पर गुलज़ार साहब ने कहा कि परफ़्यूम भले ही थोड़ा कम हो जाता हो लेकिन उसकी ख़ुशबू कम नहीं होती.आपके अनुवाद की यही सफलता है। उन्होंने कहा कि पवन जी ने मेरी कई नज़्मों का अनुवाद किया है और मैंने भी इनकी एक रचना “युधिष्टिर और द्रौपदी “ का अनुवाद कर इनसे बदला लिया है। गुलज़ार साहब ने बताया कि आज छात्रों को टेक्स्ट में ऐसी ग़ज़ल व नज़्में पढ़ाई जा रही है जिन्हें वे रस लेकर पढ़ ही नहीं पा रहे। ऐसे में मैंने 2017 में हिंदुस्तान के मशहूर शायरों की रचनाओं का अनुवाद कर “ए पोएम ए डे” प्रकाशित कराई जिसमें चौंतीस भाषाओं के अस्सी शायरों की लगभग चार सौ ग़ज़ल शामिल है। उन्होंने कहा कि आज हम मुख़्तलिफ़ जबानों की बातों पर लड़ते झगड़ते रहते हैं। हर जबान एक समान है। इनमें हमारे हिंदुस्तान की महान संस्कृति झलकती है। पूरा हिंदुस्तान एक साथ धड़कता है। रक्षान्दा ने कहा कि मीर की तरह गुलज़ार साहब ने भी खूब लिखा है इसलिए आज के मीर हैं गुलज़ार साहब। 
कार्यक्रम में गुलज़ार साहब ने अपनी नई नज़्में भी सुनाई जिनमें “रूह देखी है रूह को कभी महसूस किया है”, मैं गमला ढूँढ रहा हूँ मुझे एक लफ़्ज़ बोना है”, “सूरज ने पैंतालीस डिग्री ऊपर उठकर देखा”, “कभी सी लिंक से गुजरे तो होंगे तुम”, “उदास उदास लड़की तुझको देखकर ज़र्द हो गई शाम”, “वक्त हमेशा एक सा चलता है” और अंत में “ लंबे सफ़र से लौटकर आया समंदर रात साहिल पर”.