दक्षिण भारतीय संगीत की सुर लहरियों ने बढ़ाया सुबह का आनंद
Ananya soch
अनन्य सोच। जयपुर लिटलेचर फेस्टिवल में आज चौथे दिन की शुरुआत कर्नाटक संगीत के सुप्रसिद्ध गायक और फ्यूजन के उस्ताद संदीप नारायण ने अपनी मधुर गायकी से की. संगीत नाटक अकादमी के बिस्मिल्लाह ख़ान अवार्ड से सम्मानित संदीप नारायण की माँ भी शास्त्रीय गायिका हैं और उनकी पत्नी शास्त्रीय नर्तकी हैं. संदीप को अलग अलग ज़ोनर के संगीत को मिक्स कर फ्यूजन बनाने में महारत हासिल है.
उन्होंने आज की सुबह की शुरुआत माँ सरस्वती की कन्नड़ में रचित वंदना “दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती” से की जिसमें उनके साथ एल रामकृष्णन के वायलिन और साई गिरधर के मृदंगम की जुगलबंदी ने चार चाँद लगा दिए. संदीप के गले की लोचदार गायकी ने वातावरण को पवित्र बना दिया. राग आरभि में निबद्ध यह रचना कर्नाटक संगीत के पुरोध पाप नाशम सिवम की कंपोजिशन है.
महान संगीतकार गायक त्यागराजा स्वामी की राग चितरंजनी में संगीतबद्ध कन्नड़ शंकर स्तुति “नाद तनुमनिशम शंकरम” आज की दूसरी प्रस्तुति रही जिसमें मृदंगम की अठखेलियों ने आनंदित कर दिया. इसके बाद कन्नड़ के पितामह पुरंदरदास रचित राग दरबारी कानडा में “चंद्रचूर्ड शिवशंकरम पार्वती रमणने निनगे नमो नमो” पेश की जिसकी गूँज ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. संदीप नारायण ने अपने मधुर गायन से आज यह सिद्ध किया कि संगीत में भाषा की कोई बाध्यता नहीं होती. अगली प्रस्तुति के रूप में उन्होंने राग माँड़ में एक तमिल राम भजन “सीताराम नई भझथाल नोई विनई थिरूमे” सुनाई. कबीर की रचना “नैहरवा हम का न भावे , सांई की नगरी परम की सुंदर अति सुंदर , जहाँ कोई जाये न आवे “ ने श्रोताओं को साथ में सुर मिलाने को मजबूर कर दिया. संदीप नारायण ने कार्यक्रम का समापन एक मराठी अभंग “कानडा राजा पण्डरीचा” से किया.