जो डरता है वो भी ज़िंदा है 

नवल पांडेय

जो डरता है वो भी ज़िंदा है 

Ananya soch

अनन्य सोच। “प्रेम हमेशा मुक्त करता है , जो बांधे वो प्रेम ही नहीं है। आज के इस दौर में भी सत्ता के शोषण की नीतियों के ख़िलाफ़ जो नहीं बोल रहा है वो मुर्दा है क्योंकि जो भले ही डरकर बोल रहा हो लेकिन वो ज़िंदा तो है”। यह कहना है कवि कथाकार राजेन्द्र सजल का जिनके नए कविता संग्रह “इस दौर में प्रेम” का आज जयपुर में प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा राधाकृष्णन पुस्तकालय में लोकार्पण किया गया। लेखक ने कहा कि इस संग्रह में प्रकृति और प्रेम के साथ ही अपने अनुभव की कविताएँ हैं। मेरा बचपन गाँव में बुजुर्ग लोगों के सानिध्य में गुजरा है। उन्हीं के साथ गुज़री रातों में कविता और कहानियों के सूत्र मिलते हैं। मैं कहीं ठहरता नहीं बल्कि चहलक़दमी करता रहता हूँ , कभी लोक में तो कभी शास्त्र में । मैं बच्चे , बूढ़े और जवान सभी के साथ रहता हूँ और बिना डरे बेबाक लिखता हूँ । 
इस अवसर पर लेखक श्रद्धा आढ़ा ने कहा कि इस संग्रह में प्रेम के साथ प्रतिरोध की भी कविताएँ हैं। लेखक के लिए प्रेम व्यष्टि नहीं बल्कि समष्टि है । प्रेम को बचाए रखने के लिए धड़कते रहना बहुत जरूरी है और लेखक ने यहाँ यही काम किया है ।संग्रह में शामिल स्त्री स्वर की कविताओं में लेखक ख़ुद स्त्री मन के भीतर उतर गए हैं। जातियों की दीवारों में बँटे समाज के लिए एक खुली खिड़की है ये कविताएँ । 
कवि प्रेमचंद गांधी ने कहा कि चूँकि लेखक कवि से पहले एक कथाकार है इसलिए उनकी कविताओं में कथा तत्व और कहानी की तरह दृश्यों की डिटेलिंग ज़्यादा है लेकिन दलित , वंचित और शोषित समाज की चिताएं यहाँ मौजूद है। लेखक का प्रेम ख़ुद के लिए नहीं है बल्कि समूची सृष्टि इस प्रेम के केंद्र में है। यह सामाजिक रूप से सजग व्यक्ति का प्रेम है। सजल की कविताएँ राजनैतिक व सामाजिक चेतना को एक सघन दृष्टि के साथ लेकर चलती है। उन्होंने कहा कि सघनता को संश्लिष्टता में बदलते हुए सहज होना चाहिए । लेखन में संवेदनात्मक सरलता के साथ संश्लिष्टता भी बेहद ज़रूरी है।


कवि कैलाश मनहर का कहना था कि राजेंद्र सजल अभिधा के कवि हैं। वे बातों को गहरी व्यंजना में नहीं उलझाते। कवि जिस सहजता से अपनी बात कहते हैं वो सहजता ही धीरे धीरे संश्लिष्टता में बदलती है। राजेंद्र सजल जीवन संघर्षों के कवि है। वे आत्म संघर्ष से जीवन संघर्ष की ओर चलते रहने वाले कवि हैं। वे स्त्रियों और दलितों की चीख को दबाने से उद्वेलित होते हैं। 
आलोचक राजाराम भादू ने कहा कि भययुक्त व्यक्ति ही सच को कह पाता है। कवि के पास ठेठ गाँव का लोकमन है और लोक संस्कृति है ।इनकी कविताओं में ग्राम्य जीवन की डिटेल है। कवि जातिगत हिंसा और स्त्री के प्रति नफ़रत से चिंतित है । उनका कहना था कि स्त्री के प्रति हिंसा को बन्धुत्व से ही रोका जा सकता है। बंधुत्व प्रेम का ही विस्तार है। इन कविताओं में यथार्थ की सच्ची चिंता है। 
आलोचक दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने कहा कि प्रेम भी प्रतिरोध का ही स्वर है। जीवन साहित्य से बड़ा होता है। इस संग्रह में जो जीवन धड़क रहा है वो इसे बड़ा बनाता है। सजल की कविताओं में प्रेम , प्रकृति और प्रतिरोध तीनों स्थितियां हैं। आहत की पुकार , वेदना और दर्द इनमें हैं। 
साहित्यकार नंद भारद्वाज ने कहा कि राजेंद्र सजल ने संकटों में अपने मनोबल को बनाए रखा है। यहाँ बिना किसी मनोवैज्ञानिक दबाव के प्रेम को व्यापक अर्थ में लिखा गया है । मानव सभ्यता का इतिहास प्रेम और शांति पर आधारित है। मनुष्य को धर्म और ईश्वर के नाम पर ठगने की कोशिश हुई है ।सजल की कविताओं में यही दर्द प्रकट हुआ है ।
कार्यक्रम का संयोजन डॉ अजय अनुरागी ने किया।