Natak Maharana Pratap: कलाकारों ने महाराणा प्रताप के बलिदान को किया जीवंत

Ananya soch: Natak Maharana Pratap
अनन्य सोच। Natak Maharana Pratap: रवींद्र मंच के 60 वर्ष पूर्ण होने पर हीरक जयंती महोत्सव के अंतर्गत कला एवं संस्कृति विभाग तथा रवींद्र मंच द्वारा टैगोर थिएटर योजना के अंतर्गत मार्मिक और प्रेरणात्मक नाटक महाराणा प्रताप का मंचन शुक्रवार को हुआ. हरि शर्मा हरीश लिखित एवं महेंद्र शर्मा निर्देशित ये नाटक ऐसे वीर योद्धा की की जीवनी का वर्णन किया गया है, जो आज भी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है.
नाटक की कहानी
उदयपुर के पास उदय सागर की पाल पर महाराणा प्रताप का शिविर लगा हैं. महाराणा अकबर के दूत आंबेर के राजकुमार मानसिंह का इंतजार कर रहे है, जो बादशाह अकबर का कोई महत्वपूर्ण संदेश लेकर आ रहे है. यहां से नाटक का प्रारंभ होता है. मानसिंह अकबर की अधीनता स्वीकार कर लेने के लिए महाराणा को समझाते बुझाते है, लेकिन महाराणा अधीनता स्वीकार नही करते और उन में कुछ तकरार भी हो जाती है. इसके बाद हल्दी घाटी का युद्ध होता है और फिर शुरू होता है, महाराणा का वन वन भटकना.
राज परिवार का घोर कष्ट झेलना और घास की रोटी मिल पाना भी मुश्किल होना. दस वर्ष के वनवास के बाद फिर महाराणा भामाशाह की सहायता से सक्रिय होते है और गोगुंदा, दवेर, कुमलगढ़ आदि स्थान जीत लेते है. महाराणा अपने हारे हुए सारे स्थान जीत लेते है और दस वर्ष का सम्मानपूर्ण सुखी जीवन जीने के बाद 57 वर्ष की आयु में चावंड के महल में प्राण त्याग देते है. उनकी मृत्यु का समाचार सुन कर बादशाह अकबर भी रो पड़ते है और रोते हुए कहते है महाराणा तुम वाकई महाराणा थे. तुम जीत गए, मैं हार गया.
हार नहीं मानना एवं विशाल चुनौतियों का धैर्य एवं साहस से सामना करना और सीमित संसाधनों का समुचित उपयोग करना नाटक में दर्शाया गया है.
इन कलाकारों ने निभाया अहम किरदार
नाटक में उमेश गुर्जर, विकास सैनी, राज योगी, विजय जैन, वीर सराधना, नीतू मिश्रा एवम संगीत एवं नृत्य सीमा कराड ने अहम किरदार निभाया.