देश के नामी लेखकों और विचारकों ने जीवंत की देश के विभिन्न शहरों की संस्कृति

होटल आई टी सी राजपूताना में रविवार को शुरू हुआ दो दिवसीय शहरनामा• कहानी अपने शहरों की ~ ए बुटीक लिट्रेचर फेस्टिवल

देश के नामी लेखकों और विचारकों ने जीवंत की देश के विभिन्न शहरों की संस्कृति

अनन्य सोच, जयपुर। दुनिया भर में ऐतिहासिक धरोहर के लिए लोकप्रिय जयपुर शहर में, रविवार को शहरनामा - कहानी अपने अपने शहरों की, ए बुटीक लिट्रेरी फ़ेस्टिवल का आयोजन किया गया। दिन भर चले विभिन्न सत्रों में देश भर से आए लेखकों, प्रकाशकों और विचारकों ने जयपुर, अजमेर, पुष्कर, उदयपुर, श्रीनगर, बिहार, मथुरा, लखनऊ सहित विविध शहरों की संस्कृति, रहन सहन, खानपान, और इतिहास पर अपने अनुभव और विचार साझा किए। 

दो दिवसीय फ़ेस्टिवल के पहले दिन पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह, फ़ेस्टिवल को डायरेक्टर अपरा कुच्छल, नीलिमा डालमिया आधार, प्रभा खेतान फ़ाउंडेशन की नेशनल एडवाइज़र विनी कक्कड़, और आईटीसी के जनरल मैनेजर रिषि मट्टू ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का भव्य शुभारम्भ किया। अपरा कुच्छल ने अपने उद्बोधन में कहा कि शहरनामा में दो दिनों में 30 से अधिक लेखक, विचारक, पत्रकार, वक्ता और कलाकार अपने पसंदीदा शहरों से जुड़े अनुभव साझा करेंगे। कुच्छल ने कहा कि इस तरह के अनूठे कार्यक्रम के ज़रिए हम सब यह बख़ूबी महसूस करेंगे कि साहित्य में कितनी शक्ति होती है, और यह हमें किस तरह जोड़ता है। 

सूफीवादी क़व्वाली से दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध
 
“हिन्दू मुसलमां एक ही थाली में खाएं, ऐसा हिन्दुस्तान बना दे मौला”, कुछ इस तरह की दिल छू जाने वाली पंक्तियों से सजी सूफीवादी क़व्वाली से शहरनामा कार्यक्रम का आग़ाज़ हुआ। आफ़ताब क़ादरी, तारीक फ़ैज़ और साथियों ने दमादम मस्त क़लन्दर, राग यमन, राग हंसध्वनि और नौबत सहित कई रागों की गायन प्रस्तुति से दर्शकों को मन्त्रमुग्ध कर दिया। 

इंडियन फूड पर अनूठी विशाल की अदिति दुग्गर और मनीष मेहरोत्रा से बातचीत

हर व्यक्ति के जीवन में खाने की यादें जरूर होती हैं।मनीष महरोत्रा ने बताया एक समय ऐसा था कि नाम तो होते थे नरगिसी कोफ्ता, मुगलई पुलाव पर उन्हें बनाया कैसे जाता था, यह कोई नहीं बताता था। अपनी यादें बांटते हुए उन्होने कहा कि एक समय जब मैं अपने उस्ताद से सीखा करता था कुकिंग तो वह अलग-अलग मसालें अपनी जेब में रखा करते थे और किसी ना किसी बहाने से मुझे बाहर भेजकर फिर उस मसाले को मिलाते, ताकि पता ना चले। पर अब ऐसा नहीं है, अब सब बताते हैं कि ये मसाला किस शहर का हैं, अब मेन्यू कार्ड भी बदल रहे हैं। हर व्यक्ति के जीवन में खाने की पुरानी यादें जरूर होती है, जैसे दादी के हाथ का खाना, नानी के हाथ का खाना, पर अब लोग धीरे-धीरे पुराना स्वाद भूल रहे हैं। एक शेफ़ होने के नाते मैं पुराना स्वाद वापस लाना चाहता हूं। वहीं अदिति दुग्गर ने बताया कि भारत के अलग-अलग जगह और गांवों में घूमने के बाद पता चला कितने रीजनल फ़ूड हैं जो लोगों को पता ही नहीं होते, मैंने अपने रेस्टोरेंट में उन्हें उसी तरह पेश किया बिना किसी बदलाव ताकि उनका रूप भी ना बिगड़े और पूरे इंडिया को उस फूड के बारे में पता भी चले। उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व में चूल्हे पर बने खाने को मॉडर्न माना जाता है परंतु राजस्थान में यह तरीक़ा पांच सौ साल पुराना है। आजकल बड़े-बड़े रेस्टोरेंट में आपको चूल्हे का खाना मिल जाएगा।

किसी शहर से आप इतना जुड़ जाते हैं कि उसकी मिट्टी आपको बुलाने लगती है

सत्र में महक माहेश्वरी ने बताया कि बचपन से ही मथुरा से बहुत लगाव रहा।चाहे कितना भी स्ट्रेस हो, मथुरा की जमीन पर कदम रखते ही सब अपने आप दूर हो जाता हैं। यहां की जमीन में एक अलग ही वाइब्रेशन है चाहे प्राकृतिक हो या यहां का आध्यात्मिक असर, पर कुछ तो है जो आपको ठहराव देता है। एक किस्सा बताते हुए उन्होंने कहा कि तानसेन भी कई बार यहां आते थे, मथुरा के पास वृंदावन। उनके संगीत में वृंदावन और मथुरा की खनक मिलती है।

'भोपाल तुझे उसने पानी पर लरज़ता हुआ पाया होगा' वर्तुल सिंह ने एक शेर सुनाते हुए बड़े शायराना अंदाज में भोपाल शहर के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि झीलों की यह नगरी राजा भोज के नाम से भी जानी जाती है, लेकिन इतिहास में राजा भोज और भोपाल का कोई लेना देना था ही नहीं। झील ही है जो भोपाल की जान है। शहरों के बारे में मैं पढ़ता बहुत हूं और भोपाल में तो मेरा बार-बार आना होता रहा है, बहुत कुछ है भोपाल के बारे में बताने को शायद इसीलिए भोपाल-नामा लिखने को प्रेरित हुई

‘ग्वालियर एण्ड लखनऊ - वेटर रॉयल्टी एण्ड कल्चर रेन्स सुप्रीम’ सत्र में सुधा सदानन्द ने महरू ज़फ़र, तथा स्मिता भारद्वाज से चर्चा की