'आषाढ़ का एक दिन' नाटक में दिखा मल्लिका का प्रेम, त्याग और स्वाभिमान
खेला राष्ट्रीय नाट्य समारोह की शुरुआत* रविवार सुबह 11 बजे विख्यात प्रकाश परिकल्पनाकार गौतम भट्टाचार्य और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के निदेशक और सुविख्यात अभिनेता चितरंजन त्रिपाठी रखेंगे विचार रविवार शाम 7 बजे होगा नाटक 'हम तुम' का मंचन
Ananya soch
अनन्य सोच । क्यूरियो की ओर से संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं जवाहर कला केन्द्र के सहयोग से आयोजित 'खेला राष्ट्रीय नाट्य समारोह' का शनिवार को आगाज हुआ. पहले दिन दिनेश प्रधान के निर्देशन में नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक का मंचन किया गया. नाटक के बाद संवाद प्रवाह में दिनेश प्रधान और वरिष्ठ नाट्य निर्देशक राम सहाय पारीक ने अपने विचार रखे, उदयपुर लोक कला मंडल के निदेशक लइक हुसैन भी चर्चा में शामिल हुए.खेला फेस्टिवल कॉर्डिनेटर गगन मिश्रा ने बताया कि रविवार को प्रात: 11 बजे लाइट डिजाइन विषय पर संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली अवॉर्डी विख्यात प्रकाश परिकल्पनाकार गौतम भट्टाचार्य और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के निदेशक और सुविख्यात अभिनेता चितरंजन त्रिपाठी अपने विचार रखेंगे, गोविंद यादव मॉडरेटर रहेंगे. वहीं शाम 7 बजे रंगायन में सुदीप चक्रबर्ती के निर्देशन में नाटक 'हम तुम' खेला जाएगा.
'आषाढ़ का एक दिन' मोहन राकेश की कहानी है जिसके नायक महाकवि कालिदास है लेकिन इसकी केन्द्रीय पात्र मल्लिका है जो प्रेम, स्वाभिमान और त्याग का प्रतीक है. मंच पर गुप्त काल का दृश्य साकार होता है. काले बादलों को आश्रय देने वाले माह आषाढ़ का एक दिन जब कालिदास 'ऋतुसंहार' रचना को पूर्ण करते हैं. इस रचना को प्रसिद्धि मिलती है और कालिदास को उज्जैन दरबार से राज कवि बनने का न्योता आता है. 'मैं दरबार गया तो अपनी जड़ों से दूर हो जाऊंगा', कालिदास संशय में है. वह अपनी मां अंबिका और प्रेमिका मल्लिका को छोड़ना नहीं चाहते हैं. इस पर मल्लिका कालिदास को प्रेरित करती हैं और उसका इंतजार करने के वादे के साथ उसे विदा देती हैं. विलोम नामक पात्र जो कालिदास से बिल्कुल उलट है मल्लिका को कालिदास के खिलाफ भड़काने का भी प्रयास करता है लेकिन मल्लिका अपने प्रेम के प्रति तटस्थ रहती हैं. राजदरबार में जाने के बाद कालिदास कई प्रसिद्ध महाकाव्यों की रचना करते हैं और इन व्यस्तताओं में सभी को भूल बैठते हैं. उज्जैन में राजनीतिक उठापटक के बाद कालिदास नए सिरे से जिंदगी जीने के लिए गांव आते हैं लेकिन यहां सब कुछ बदल चुका होता है. मां के जाने के बाद आजीविका का संकट झेलते-2 मल्लिका वेश्यावृत्ति में उतर जाती है, अब उसकी एक बेटी भी है. फिर वही स्याह बादलों को ओढ़े आषाढ़ का दिन जब कालिदास और मल्लिका का सामना होता है. कालिदास बताते हैं कि दूर होने के बावजूद उनकी सभी रचनाएं मल्लिका पर ही आधारित रही. मल्लिका जो नहीं चाहती कि कालिदास के जीवन पर उसका प्रभाव पड़े और प्रेम की पीड़ा को दिल में लिए वह आगे बढ़ जाती है. नाटक सत्ता, प्रेम और स्त्री मन: स्थिति के जटिल पहलुओं को गहराई से प्रस्तुत करता है.
मंच पर भूमिका चौधरी, भगवंत कौर मिन्हास, गिरीश मिश्रा, धीरज भटनागर, शुभम टांक, अभिषेक चौधरी, हर्षिल काला और नितिन झगीणीया ने विभिन्न किरदार निभाए. देशराज गुर्जर ने प्रकाश व्यवस्था, सरगम भटनागर, दीपांशु शर्मा ने संगीत, अनीता प्रधान ने नृत्य निर्देशन, भुवनेश भटनागर ने रूप सज्जा, कनिष्क प्रधान ने मंच व्यवस्था और नेहा चतुर्वेदी ने वस्त्र विन्यास संभाला. कार्तिक किष्णावत, लखन वैष्णव और कुणाल ने मंच सहायक की भूमिका निभाई.