रंगरीत कला महोत्सव में गोविन्द रामदेव और रामू रामदेव की पचास से अधिक कालजयी पेंटिंग्स का मनोहारी प्रदर्शन

Ananya soch
अनन्य सोच। जवाहर कला केंद्र की अलंकार दीर्घा में आयोजित ‘रंगरीत कला महोत्सव’ में कला प्रेमियों और कलाकारों को पारंपरिक भारतीय कला की एक अद्भुत झलक देखने को मिल रही है. यहां वरिष्ठ चित्रकार गोविन्द रामदेव और रामू रामदेव द्वारा वसली पेपर पर प्राकृतिक एवं खनिज रंगों से सजी पचास से अधिक खूबसूरत पेंटिंग्स प्रदर्शित की गईं, जिन्होंने दर्शकों को भारतीय पौराणिक कथाओं और तत्वमीमांसा की रहस्यमय दुनिया की अनुभूति करवाई.
पौराणिक कथाओं की चित्रात्मक महागाथा
यहां प्रदर्शित गोविन्द रामदेव की पेंटिंग्स में दुर्गा सप्तशती के विविध प्रसंगों का जीवन्त चित्रण किया गया है. इन कृतियों में महिषासुर और रक्तबीज वध, बगलामुखी माता, अर्धनारीश्वर, मां काली, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां कालरात्रि जैसे प्रसंग पारंपरिक शैली में जीवंत हो उठे हैं. रंगों और रेखाओं का ऐसा संयोजन दुर्लभ है, जो पौराणिकता को आधुनिक दर्शक से जोड़ता है.
ढूंढाड़ी शैली में जयपुर की खुशबू
रामू रामदेव ने अपनी ढाई दर्जन से अधिक पेंटिंग्स में पारंपरिक शैली को जयपुर की ढूंढाड़ी शैली की सुगंध से सराबोर किया है. गणपति के बाल स्वरूप की उनकी कृति विशेष आकर्षण का केंद्र है, जिसमें बाल गणेश शिव-पार्वती के संग अठखेलियाँ करते नजर आते हैं.
एक अन्य अनूठी पेंटिंग में पंचमहाभूत — अग्नि, आकाश, जल, वायु और पृथ्वी — भगवान शिव और माता पार्वती के समक्ष सृष्टि निर्माण की आज्ञा लेते दिखाए गए हैं। इस कृति में पंचमहाभूतों की आकृतियाँ उनकी प्रकृति के अनुरूप इतनी सूक्ष्मता से उकेरी गई हैं कि अग्नि की लपटें, जल की धाराएं, आकाश की नीलिमा, वायु की गतिशील रेखाएँ और पृथ्वी का प्राकृतिक सौंदर्य दर्शक को सम्मोहित कर लेता है।
कला और अध्यात्म का संगम
यह प्रदर्शनी केवल चित्रों का प्रदर्शन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और कला का एक जीवंत संगम है। यह अलंकार दीर्घा में 18 मई तक आमजन के लिए निःशुल्क खुली रहेगी।