कलावृत्त द्वारा आयोजित राष्ट्रीय समसामयिक लघु चित्रण कार्यशाला का समापन

कलावृत्त के संस्थापक कलागुरु डॉ. सुमहेन्द्र की स्मृति में उनके जन्मदिवस पर पिछले चार वर्षों से आयोजित हो रही है, इस दस दिवसीय कार्यशाला का यह 5 वां संस्करण था

कलावृत्त द्वारा आयोजित राष्ट्रीय समसामयिक लघु चित्रण कार्यशाला का समापन

Ananya soch

अनन्य सोच। कलावृत्त द्वारा राजस्थान ललित कला अकादमी एवं गैलरी आर्ट, न्यूयॉर्क के संयुक्त तत्वावधान में हुई ऑनलाइन कार्यशाला का समापन हो गया. देशभर के 72 चित्रकारों ने अपने स्टूडियो में बैठकर चित्र बनाएं है. कलावृत्त के अध्यक्ष संदीप सुमहेन्द्र ने बताया कि इन 72 चित्रकारों में से 17 युवा चित्रकार जो पंजाबी विश्विद्यालय, पटियाला के एस.सोभा सिंह फाइन आर्ट विभाग के पूर्व एवं वर्तमान स्टूडेंट्स ने भी भाग लिया है. डॉ. सुमहेन्द्र ने 2004 से 2012 तक कला शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी. उन्हीं के द्वारा लघु चित्रण का पाठ्यक्रम बनाया गया था। उनके समय में लघु चित्रण में पारंगत हुए कई स्टूडेंट्स आज उसी संस्था में शिक्षण कार्य कर लघु चित्रण की विधा को और समृद्ध करने का प्रयास कर रहे है. उन्होंने बताया कि 2004 के प्रथम बैच की चित्रकार जस्मीन कौर ने भी इस कार्यशाला में भाग लिया है जो व्यक्तिगत मेरे लिए बड़े हर्ष का विषय है. जस्मीन कौर ने अपने चित्र में "आत्मचेतना की यात्रा" के भाव का चित्रण किया है तथा अपनी विशेष शैली के साथ समसामयिक चित्रण करती है. पंजाबी विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट विभाग में लघु चित्रण के लिए विषय प्रधान चित्रों का सृजन करने और उससे संबंधित विषयों के चुनाव के लिए विशेष जोर दिया जाता है. यही कारण है कि यहां से शिक्षा प्राप्त चित्रकारों के चित्रों में आधुनिकता के साथ परम्परागत तकनीक का अनोखा ताल-मेल देखने को मिलता है. 

संदीप सुमहेन्द्र ने बताया कि चित्रकारों के आधुनिक और अमूर्त चित्रण के प्रति बढ़ते लगाव के कारण धीरे-धीरे हमारी लघु चित्रण परंपरा की विश्व प्रसिद्ध शैलियां लुप्त सी होने लगी, जिसका मुख्य कारण पुराने बने चित्रों की नकल (कॉपी) अत्याधिक मात्रा में बनने और आमजन में इसकी लोकप्रिय और लगाव में कमी ने आग में घी डालने जैसा काम किया. हर स्तर पर चीजें बदल रही थीं नई नई तकनीकें आ रही थी लेकिन परंपरागत लघु चित्रण में किसी ने उसकी और ध्यान नहीं दिया. डॉ. सुमहेन्द्र ने इस विराम को तोड़ते हुए सर्वप्रथम 1960 में अपनी प्रिय चित्रण शैली "किशनगढ़ शैली" में नए प्रयोग करने आरंभ किए और एक चित्र जिसमें उन्होंने बनिए ठनी को आधुनिक परिवेश में चित्रित किया जहां शीशे के सामने टाई-सूट में बनी ठनी लिपस्टिक लगते हुए चित्रित किया. अपने समय में उन्होंने हर विधा में अपने प्रयोग जारी रखते हुए बहुत चित्र सृजित किए है.