फेस्टिवल का दूसरा दिन शायरी, लोक कल्याण, चीन और लोकतंत्र के नाम रहा

यूथ में दिखा जोश

अनन्य सोच, जयपुर। फेस्टिवल के दूसरे दिन की शुरुआत सूरज की आँख मिचौली और वायलिन व मृदंग की जुगलबंदी से हुई| फेस्टिवल का दूसरा दिन कई महत्वपूर्ण मुद्दों की वजह से ख़ास रहा, जिनमें लोकतंत्र, कृषि, चीन-विवाद के साथ ही शायरों और लोक-कल्याण पर भी खूब खुलकर बात हुई। फेस्टिवल के पहले दिन खिली चटक धूप से धोखा खाकर श्रोता जब दूसरे दिन हलके गर्म कपड़े पहनकर फेस्टिवल में शिरकत करने आये तो ठंडी हवा ने उन्हें जयपुर के दिलफरेब मौसम का मतलब समझा दिया| फ्रंट लॉन में सुबह 9 बजे के म्यूजिक सत्र में सुर के साथ हवा की भी ताल खूब महसूस हो रही थी और यकीन मानिये कोई किसी से हार मानने को तैयार नहीं था| कर्नाटिक संगीत परम्परा से आदित्य प्रकाश ने सुमधुर प्रस्तुति के साथ ही पाश्चात्य और भारतीय संगीत के एक बड़े महत्वपूर्ण अंतर की तरफ इशारा किया| उन्होंने कहा, “पाश्चात्य संगीत में जहाँ हर धुन को पन्ने पर दर्ज किया गया है, वहीं भारतीय संगीत परम्परा में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को ये विरासत गुरुओं के माध्यम से सौंपी जाती है, और इसमें हर गुरु का अपना कुछ प्रभाव शामिल हो जाता हैं। इस कारण हमारा संगीत निरंतर विकसित हो रहा है| इस दौरान यूथ में फेस्ट के प्रति जोश देखने को मिला।