Autobiography 'Meri Kahani, Meri Zubani' launched:पूर्व आईएएस अधिकारी रामेश्वर सिंह के 95वें जन्मदिन पर ऑटोबायोग्राफी 'मेरी कहानी, मेरी जुबानी’ हुई लॉन्च

अविनाश पाराशर। Autobiography 'Meri Kahani, Meri Zubani' launched: सीएम को फायर बिग्रेड न देने पर ट्रांसफर तो हुआ लेकिन उनके ही गृह जिले में कलेक्टर पोस्ट के निमंत्रण के साथ – कैबिनेट मंत्री झाबर सिंह खर्रा समेत कई पूर्व ब्यूरोक्रेट्स हुए शामिल

Autobiography 'Meri Kahani, Meri Zubani' launched:पूर्व आईएएस अधिकारी रामेश्वर सिंह के 95वें जन्मदिन पर ऑटोबायोग्राफी 'मेरी कहानी, मेरी जुबानी’ हुई लॉन्च

Ananya soch: Autobiography 'Meri Kahani, Meri Zubani' launched

अनन्य सोच। Autobiography 'Meri Kahani, Meri Zubani' launched: इमरजेंसी के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री के निजी कार्यक्रम के लिए फायर ब्रिगेड न देने पर ट्रांसफर ऑर्डर आ गया था, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने ही प्रशासनिक कार्यों में दक्षता देखते हुए अपने गृह जिले बांसवाड़ा में कलेक्टर पद संभालने का निमंत्रण भी दिया. हालांकि इससे पहले काफी समय बांसवाड़ा में कलेक्टर पद पर सेवाएं दी थीं इसीलिए नई जगह जाना चुना. पूर्व आईएएस अधिकारी रामेश्वर सिंह ने अपने 95वें जन्मदिन पर अपनी ऑटोबायोग्राफी 'मेरी कहानी, मेरी जुबानी' लॉन्चिंग (Autobiography 'Meri Kahani, Meri Zubani' launched) के दौरान यह संस्मरण सुनाया. आईटीसी राजपूताना में आयोजित हुए इस बुक लॉन्च में मुख्य अतिथि के रूप में कैबिनेट मंत्री झाबर सिंह खर्रा और विशिष्ट अतिथि के रूप में सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर एमएल शर्मा और राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव अरुण कुमार मौजूद रहे.

इस दौरान उनके बेटे डॉ. वीरेंद्र सिंह ने बताया कि हमने कई बार उनसे अपनी आत्मकथा लिखने के लिए अनुरोध किया क्योंकि आज की नई पीढ़ी को उनकी कहानी बहुत मोटिवेट करेगी. हालांकि वे इसे टाल देते थे लेकिन पिछले साल मां पतासी देवी की मृत्यु के कुछ समय बाद जब हमने दोबारा कहा तो उन्होंने इस पर काम शुरू किया. विशिष्ट सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर एमएल शर्मा ने कहा कि बांसवाड़ा में रामेश्वर सिंह कलेक्टर और मैं एसपी था. कलेक्टर-एसपी के बीच कुछ न कुछ टेंशन रहती ही है लेकिन इनके साथ ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ. वहीं पूर्व सीनियर आईएएस आरजे मजीठिया और अरुण कुमार ने उनके द्वारा आजादी के संघर्ष और जागीर प्रथा पर किए काम के बारे में बताया. 

8 साल की उम्र में खोए पिता और बड़े भाई-बहन, 5 रुपए महीना ट्यूशन पढ़ाकर जुटाया पढ़ने का खर्चा 
उन्होंने बताया कि 8 साल की उम्र में पिता और एक साल बाद ही बड़े भाई बहन को खो देने के बाद न के बराबर संसाधनों में पढ़ाई शुरू की. शुरुआत में एक सेठ ने फर्स्ट रैंक लाने की शर्त में 2 रुपए महीने की मदद देना शुरू की लेकिन आठवीं कक्षा तक पहुंचते हुए स्वाभिमान प्रबल होता गया और 5 रुपए महीने की ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जमा करना शुरू किए. 10वीं कक्षा में स्टेट सेकेंड रैंक के बाद एमए तक पढ़ाई में पहली रैंक आई और आरएएस अधिकारी बनकर सेवाएं दी. उत्कृष्ट सेवाओं के कारण बाद में उन्हें आईएएस अधिकारी के रूप में प्रमोट किया गया. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की और चुनाव भी लड़ा. इस मौके पर रामेश्वर सिंह ने कहा कि मेरा 17 साल का पॉलिटिकल करियर 31 साल के सर्विस करियर से ज्यादा अच्छा रहा क्योंकि इस दौरान सीमाओं से आगे बढ़कर लोगों की सेवा कर सका.