Jaipur Literature Festival: सीता ने स्वर्ण मृग को मारने के लिए क्यों कहा?
Nawal sharma
Ananya soch: Jaipur Literature Festival
अनन्य सोच।Jaipur Literature Festival: “वन में रहते हुए आख़िर क्या वजह थी कि सीता ने स्वर्ण से चमकने वाले मृग का शिकार करने के लिए राम से कहा। शिकार किए हुए मृग को उन्हें क्या काम लेना था। इस प्रश्न का उत्तर सब अपने विवेक से देते हैं। हमारे यहाँ सैकड़ों रामायण हैं और सबमें ऐसे प्रसंगों का अर्थ अलग है। वाल्मीकि के युग में खाने पर कोई पाबंदी नहीं थी। सभी तरह का भोजन किया जाता था। लोग मछली। मांस, कन्द, मूल सब खाते थे। कोई डाईट्री चार्ट नहीं थ। इसलिए राम शाकाहारी थे या माँसाहारी यह सवाल ही निरर्थक है।” यह कहना था पौराणिक कथा साहित्य के famous writer Anand Neelakantan का जो आज Jaipur Literature Festival में “द पॉवर ऑफ़ मिथ”( the power of myth) पर सत्यार्थं नायक से बात कर रहे थे। famous writer Anand Neelakantan का कहना था कि हमारे यहाँ अलग अलग भाषाओं में अलग अलग समयों पर हमारे पौराणिक साहित्य का पुनर्लेखन होता रहा है , यही कारण है कि हर काल की रामायण अथवा महाभारत में आपको कहानी में बदलाव मिलेगा। लेखकों ने घटनाओं व प्रसंगों को अपने समय व समाज के प्रचलित ढंगों , रीति-रिवाजों के साथ गढ़ दिया है। कई नयी अंतर्कथाएँ व प्रसंग अपनी ओर से जोड़ दिये गये हैं। यही कारण है कि आपको वाल्मीकि की सीता और तुलसी की सीता अलग अलग दिखाई देती है। वाल्मीकि का काल जहां एक मुक्त समाज था, धर्म के बहुत ज़्यादा प्रतिबंध नहीं थे वहीं तुलसी का समाज व समय मुग़ल काल का था। हिंदू अपनी पहचान पृथक रखना चाहते थे तो उनका खानपान भी अन्य धर्मों से अलग दिखना था। यही वजह है कि वाल्मीकि से तुलसी तक आते आते भारतीय समाज में खानपान, रहनसहन , रीति-रिवाज में बहुत परिवर्तन आ गया। लोगों ने भोजन को धर्म से जोड़ लिया। अकबर ने पर्शियन में रामायण का अनुवाद कराया।इसी तरह केरल में मोपला रामायण है जो मुस्लिम रामायण के नाम से जानी जाती है। इसी तरह फ़िलीपींस के रामायण के राम कैथोलिक हैं तो इंडोनेशिया व थाईलैण्ड की रामायण के राम गॉड नहीं है बल्कि उनके समाज के एक साधारण व्यक्ति हैं। कई रामायण में सीता को रावण की पुत्री बताया गया है यानी सबकी अपनी अपनी रामकथा है। सबने अपने समय व समाज के हिसाब से रामायण को रचा है। रामायण या महाभारत हमारी लिविंग ट्रेडिशन है।
famous writer Anand Neelakantan ने गॉड के अस्तित्व पर कहा कि सबसे पहले तो हमें यह समझना चाहिए कि हमारे देश के आध्यात्मिक साहित्य के बारे में ग़लत धारणाएँ फैलाने का काम ब्रिटिश काल में हुआ। उन लोगों ने दुनिया भर में हमारी आध्यात्मिक सभ्यता की ग़लत व्याख्या कर हमारे बारे में भ्रम फैलाया। भारत के बारे में कई मिथ ब्रिटिश लेखकों द्वारा गढ़ दिये गये । हमारा ईश्वर अंग्रेज़ी वाला गॉड नहीं है। उसी तरह सोल आत्मा नहीं है और रिलीज़न धर्म नहीं है। विश्वास हमारा भगवान है, मूर्ति नहीं। हमारे यहाँ जब जब भगवान की ज़रूरत पड़ी , हमने ख़ुद अपने भगवान बना दिये इसलिए यही सच है कि “मेन क्रिएट द गॉड”। हम हमारी प्यार और भक्ति की कल्पना से ख़ुद अपना भगवान रचते हैं। उसका जेंडर तय करते हैं। और यही हमारे हिंदू धर्म की ख़ूबसूरती है , सौंदर्य है। हम केवल एक ग्रंथ से नहीं चलते । हमारे अनेक मत है , अनेक विचार है और प्रत्येक विचार का एक विपरीत विचार भी है। हमारे यहाँ जाबालि,चार्वाक व लोकायत सरीखे ऋषि भी हैं जो आस्तिक नहीं हैं।